सनातन धर्म में विभिन्न प्रकार के त्यौहारों एवं पर्वों का अपना महत्व है जिसमें श्रावण मास को मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माह कहा जाता है। जिसमें सनातन धर्मावलंबियों के द्वारा भगवान औघढदानी को प्रसन्न करने के लिये विशेष पूजनार्चन किया जाता है। सम्पूर्ण देश के कौने-कौने में इस माह में विशेष पूजन का दौर चलता है देश ही नहीं विश्व के उन क्षैत्रों में जहां-जहां सनातन धर्म के अनुयायी निवास करते है इस धार्मिक पर्व को बडे ही धूमधाम से मनाते है।
ओम नमः शिवाय से गूंजेगे मंदिर
श्रावण सोमवार के इस महान पर्व पर आज जहां चारों ओर शिव भक्त भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने में व्यस्त रहेंगे तो जिले में भी यही माहौल रहेगा। शिवालयों को जहां विशेष रूप से सजाया गया है तो विभिन्न प्रकार की विद्युत साज-सजा की गयी है जिसे देखकर एक अलग ही आभास होता है। मंदिरों में भक्तों की जहां भारी भीड रहेगी।
दमोह जिला मुख्यालय से मात्र 15-16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बांदकपुर के जागेश्वर धाम में हजारों लोगों की भीड रहेगी। प्रतिबर्ष यहां लाखों भक्त पहुंचते हैं और हर-हर महादेव,बम-बम महादेव सहित ओम नमः शिवाय के जयकारों से सारा क्षैत्र दिन रात गूंजता रहता है। घंटो और घडियालों के साथ श्रृंगी एवं डमरू की गूंज से सारा वातावरण धर्ममय बनेगा।
औद्यढदानी शिव का प्रिय मास
इस पवित्र माह में पार्थिव शिवलिंग के निर्माण की भी परंपरा है वहीं सोमवार का विशेष महत्व बतलाया गया है। धर्माचार्यों के अनुसार अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूबा, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, कनेर, राई, फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की रोग के रूप में धतूरा, भांग और और श्रीफल महादेव को चढाया जाता हे हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म पार्वती में देवी सती ने युवावस्था कें सावन में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया। जिसके बाद ही महादेव के लिए ये विशेष हो गया । भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढाते है। कथा के अनुसार जब 89 हजार त्रषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रहमा से पूछी तो ब्रहमदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढाने से जितने प्रसन्न होते है, उतना ही एक नीलकमल चढाने पर होते है। ऐसे ही एक हजार नीलक मल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महात्व होता है।
स्वयं-भू शिवलिंग
इतिहास कारों के अनुसार स्वयं-भू शिवलिंग का प्रादुर्भाव 1711 में हुआ था। बतलाया जाता है कि दीवान बालाजीराव चांदोकर जब भ्रमण पर इस क्षैत्र में निकले तो उन्होने इसी स्थान पर अपने घोडे को बांध दिया एवं स्नान ध्यान करने के पश्चात् भगवान शिव ने स्वयं उन्हे यह आभास कराया कि जहां तुम्हारा अश्व बंधा है वहां पर में स्वयं हूं। जाकर देखने पर घोडे ने कूंद-कूंदकर टापें मारना प्रारंभ कर दिया। विशाल वट वृक्ष के नीचे देखने पर शिवलिंग का कुछ अंश दिखलायी देने पर उनके आश्चर्य एवं खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मजदूरों द्वारा यहां उत्खन करने पर कोई छोड नहीं मिला। बतलाया जाता है कि लगभग 30 फुट गहराई खोदने पर भी कोई छोड नहीं मिला। वहीं चारों ओर दिवालें खडी कर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। शिवलिंग निरंतर आज भी बढने की बात जानकार प्रमाण सहित बतलाते हैं। अगर कोई भी भक्त अपनी भुजाओं में इन्हे लपेटने की कोशिश करता है तो वह इसकी मोटाई के कारण एैसा नहीं कर सकता।
दमोह नगर में बनवाया था मंदिर स्वयं-भू
शिवलिंग के लिये एक विशाल मंदिर का निर्माण स्थानीय दीवान जी की तलैया के समीप स्वयं दीवान चांदोकर जी ने बनवाया था। शिव लिंग को वहां से अलग नहीं कर सकने पर जहां बांदकपुर में मंदिर का निर्माण करवाया तो वहीं मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु श्री राम लखन एवं सीता की मूर्तियों को दमोह में स्थापित किया गया।
मां पार्वती का विशाल मंदिर
शिव मंदिर के ठीक सामने एक विशाल मंदिर माता पार्वती का स्थित है जिसमें विराजमान माता जी की दृष्टि सीधे शिवलिंग एवं जागेश्वर जी की नजर पार्वती जी पढती है। दोनो के मध्य एक विशाल पाषांढ के नंदी विराजमान है।
देश के कोने-कोने से आते हैं भक्त
देश के कोने-कोने से भक्तों का गवान औद्याडदानी जागेश्वर नाथ के दर्शन लाभ लेने के लिये आने का सिलसिला बर्ष भर लगा रहता है। लेकिन विशेष पर्वों जैसे महाशिवरात्रि,बसंत पचंमी,मकर संक्रांति,बैशाख मास एवं श्रावण मास में भक्तों की संख्या हजारों मेें हो जाती है।
(लेखक: डा.लक्ष्मी नारायण वैष्णव)