Saturday, 21 December

चुनावी बान्ड की जानकारी तो डाल दी गई, लेकिन इसका तब तक कोई औचित्य सिद्ध नहीं हो सकता, जब तक यह पता नहीं चले कि किसे किस कंपनी ने कितना चंदा दिया है। यानि चंदा लेने और देने वालों के नाम एकसाथ होना चाहिए। बैंक ने जिस तरह से कोर्ट को जानकारी दी है, उसे लेकर कई प्रकार के सवाल उठ रहे हैं। देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग इस पर आगे क्या कदम उठाता है?

जो जानकारी सामने आई है, उसके हिसाब से चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा देने वालों में अनिल अग्रवाल की वेदांता लिमिटेड, आदित्य बिड़ला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग लिमिटेड और डीएलएफ जैसे बड़े नाम शामिल हैं। दिग्गज कंपनियों की लिस्ट में बजाज ऑटो और भारती एयरटेल भी शामिल हैं। बड़े नामों में से बजाज ऑटो ने 25 करोड़, जिंदल स्टेनलेस ने 30 करोड़, ग्रासिम इंडस्ट्रीज ने 33 करोड़ और अल्ट्राटेक ने 15 करोड़ के बॉन्ड खरीदे।

टॉप 20 चंदा देने वालों में सबसे आगे 1368 करोड़ रुपये के साथ सबसे आगे फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड है। जांच एजेंसियों के रेडार पर रही इस कंपनी का मुख्य कारोबार लॉटरी से जुड़ा रहा है, लेकिन इसने होटल और हैल्थ जैसे सेक्टरों में भी पांव पसार लिए हैं। इससे चुनावी बान्ड का उद्देश्य समझ में आ जाता है। ज्यादा चंदा देने के मामले में दूसरे नंबर पर मौजूद मेघा इंजिनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर ने 966 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे। हैदराबाद की इस कंपनी को जोजिला टनल सहित कई प्रोजेक्ट हाल के वर्षों में मिले हैं। इसने ये बॉन्ड 2019-20 से 2023-24 के बीच खरीदे। इसी दौरान 2020 में इसे जम्मू कश्मीर में ऑल वेदर रोड टनल बनाने का ठेका और कुछ शहरों में रिटेल सीएनजी और पाइप्ड कुकिंग गैस के ठेके मिले थे।

खुद को वेयरहाउसिंग और स्टोरेज यूनिट मैन्युफैक्चरर बताने वाली क्विक सप्लाई चेन ने 410 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे। 2022-23 में क्विक की आमदनी करीब 500 करोड़ थी। 2021-22 में इसने 360 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे थे। उस साल इसका नेट प्रॉफिट 21.72 करोड़ रुपये ही था। 2023-24 में इसने और 50 करोड़ के बॉन्ड खरीदे। पावर सेक्टर से जुड़ी हल्दिया एनर्जी लिमिटेड ने 377 करोड़, माइनिंग दिग्गज वेदांता लिमिटेड ने 376 करोड़, एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज ने 225 करोड़ और वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन ने 220 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे। भारती एयरटेल ने 198 करोड़, केवेंटर फूड पार्क इंफ्रा लिमिटेड ने 195 करोड़, एमकेजे एंटरप्राइजेज ने 192 करोड़ और मदनलाल लिमिटेड ने 186 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे। उत्कल एलुमिना ने 145 करोड़, डीएलएफ कमर्शियल ने 130 करोड़, जिंदल स्टील एंड पावर ने 123 करोड़, बीजी शिर्के कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी ने 119 करोड़ रुपये और धारीवाल इंफ्रास्ट्रक्चर ने 115 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे। टॉप 20 डोनर्स में शामिल अवीस ट्रेडिंग फाइनैंस ने 113 करोड, टोरेंट पावर ने 107 करोड़ और बिड़ला कार्बन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 105 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे।

अब आते हैं अहम मुद्दे पर। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसबीआई ने बंद लिफाफे में एक पेनड्राइव दी थी, जिसमें दो पासवर्ड प्रोटेक्टेड पीडीएफ फाइल्स थीं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की और दूसरी फाइल में इन बॉन्ड्स को कैश कराने वाली पॉलिटिकल पार्टियों की जानकारी है। दरअसल, एसबीआई ने अभी बॉन्ड्स के खरीदार और उन्हें कैश कराने वाली पार्टियों की डिटेल अलग-अलग दी है। आपस में मिलान न होने की वजह से ये साफ नहीं हैं कि किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितने रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड दिए हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि एसबीआई अगर ये दोनों डेटा लिंक कर देता तो काम आसान हो जाता। ये बात सामने आ जाती कि किस व्यक्ति या कंपनी ने किस पॉलिटिकल पार्टी को किस तारीख को कितना चंदा दिया। अब इसे लिंक करने का एक ही तरीका है। इलेक्टोरल बॉन्ड अलग-अलग फेज में बिका है, यानी एसबीआई इसकी बिक्री के लिए बाकायदा तारीख जारी करता है कि इस तारीख से इस तारीख तक इलेक्टोरल बॉन्ड बिकेंगे।

अगर एसबीआई कह रहा है कि अभी वे ऑडिटिंग कर रहे हैं। फिर भी ऑडिटिंग नहीं हो रही, तो आखिर क्यों नहीं हो रही? सबसे अहम सवाल यह कि बिना ऑडिटिंग के वो आरटीआई में डेटा कैसे दे रहे हैं? एसबीआई कहीं न कहीं तो आंकड़ों का मिलान कर रहा है। तभी तो वे चुनाव आयोग से लेकर आरटीटाई तक, हर जगह बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं। बॉन्ड का यूनीक नंबर बहुत अहम पॉइंट है। ये सीरियल नंबर कहीं तो फीड किए जा रहे होंगे।

एक बड़ा मुद्दा यह भी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के डेटा में शेल कंपनियां भी शामिल हो सकती हैं। विशेषज्ञों का दावा है- ये बिल्कुल मुमकिन है, क्योंकि आरबीआई भी इसे लेकर मनी लॉन्ड्रिंग के खतरे का अंदेशा जताकर आपत्ति जता चुका है। चुनाव आयोग ने भी शेल कंपनी के खतरे का मुद्दा उठाया था। फेक और शेल कंपनियों के बनने की पूरी संभावना है, जो सिर्फ पैसे डोनेट करने के लिए बना दी जाएं। क्योंकि नाम से कैसे पता चलेगा कि कंपनी असल में है भी या शैल कंपनी है?

सभी मानते हैं कि इस मुद्दे पर आगे काम होना चाहिए। आखिर हम यही तो जानना चाहते हैं कि किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। इस डेटा से अगर हम यही नहीं जान पा रहे तो फिर इसका क्या फायदा। इसलिए एसबीआई से वो कम्पाइल डेटा मिलना चाहिए। कोर्ट इसके लिए पहल करता है या नहीं, यह भी देखना होगा। दूसरी बात चुनाव आयोग पर इस मामले में नजर तो रहेगी, भले ही वो कुछ ठोस करे या न करे।

– संजय सक्सेना

Share.
Exit mobile version