Sunday, 8 September

एक सफल मानव जीवन के लिए सद्भाव का होना किसी वरदान से कम नहीं….

मानव जीवन सदा ही निर्मल एवम उत्तम माना गया है , आज के दौर में जीवन कठिन भी होता चला जा रहा है लेकिन भारतीय संस्कृति की नीव जिस सनातन धर्म के आधार पर रखी गई है वह सद्भाव का वह पाठ पढ़ाता है जो एक मानव के जीवन को सफल बना देता है, एक गुरु का कर्तव्य है की वह अपने शिष्यों में सद्भाव जगाए जो सनातन धर्म से प्रेरित हो , सनातन इतिहास सदा अपने सद्भाव पूर्ण कार्यों के लिए ही प्रसिद्ध रहा है, प्रभु श्रीराम का लोगो से स्नेह एवं शत्रुओं के प्रति आदर, श्री कृष्ण द्वारा धर्म रक्षा का ज्ञान, राजा बलि का दानी स्वभाव, शिव पार्वती के प्रेम की गाथा एवं श्रवण कुमार की मातृ पितृ भक्ति यह सभी आज के दौर में सद्भाव का जीता जागता उदाहरण है , इंसान अगर चाहे तो सद्भाव से वह सम्पूर्ण विश्व को जीत सकता है , आज भारत के इसी सद्भाव को देखकर विश्व के महान देश अपना मस्तक झुकाते है, भारत से प्रेम करते है ।

सद्भाव केवल एक भाव ही नही अपितु चरित्र निर्माण में भी सार्थक है हर मां बाप चाहते है की उनके बच्चो में सद्भाव हो और बड़े बुजुर्ग कहते है की बच्चो को सनातन पाठ पढ़ाना इसीलिए जरूरी है क्योंकि उनमें वह सद्भाव बचपन से जागृत हो सके , एक शिक्षक होने के नाते मेरा कर्तव्य है की मैं सबको प्रेरित करू की हम सभी को सनातन धर्म को आधार मानकर एक दूसरे और आने वाली पीढ़ी में सद्भाव जागृत करना चाहिए क्योंकि हम सब जिस भारत को विश्वगुरु बनते देखना चाहते है वह अपने इन्ही गुणों से बनेगा और जिस राम राज की स्थापना का सपना सरकार देखती है वह सनातन शिक्षा एवं उसका अनुसरण करने से ही स्थापित हो सकता है।

लेखक : प्रो पर्व परमार

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