Tuesday, 17 September

पहले हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति गुटखा खाया करता था, लेकिन अब तो इसका प्रतिशत भी कम हो गया है। इसके बाद भी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल जैसे कैंसर की राजधानी बन गया है। आंकड़ों के अनुसार मुंह के कैंसर के मामले में यह पूरे देश में दूसरे नंबर पर है। यानि मामला गंभीर है। इसके बावजूद शहर में कैंसर शोध संस्थान तो छोड़ो कैंसर को लेकर कोई गंभीर अभियान तक नहीं चलाया गया है।

आज सुबह एक बार फिर खबर आई कि भोपाल ओरल कैंसर के मामले में देश में दूसरे नंबर पर, ब्रेस्ट कैंसर के मामले में आठवें, जीभ के कैंसर के मामले में सातवें और सर्वाइकल कैंसर के मामले में पंद्रहवें स्थान पर है। और यहां इसके लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं है, दूसरी तरफ ओडिशा 150 करोड़ से 65 एकड़ में डेडिकेटेड कैंसर अस्पताल बना रहा है।

खबर बताती है कि भोपाल में मरीजों की संख्या महिलाएं 110.1मरीज प्रति एक लाख पर, पुरुष 106.7 मरीज प्रति एक लाख पर, बच्चे 9.4 मरीज प्रति एक लाख पर हैं। बीमारी के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर 33.9 2.3 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। पुरुषों में कैंसर की बीमारी औसतन दस प्रतिशत के आसपास बढ़ रही है, जो बेहद चिंताजनक कही जा सकती है।

पहली बात तो यह है कि हम जहां यह मानकर चलते हैं कि भोपाल चिकित्सा का हब बन रहा है, तो वहीं कैंसर के मामले में सिफर जैसा ही लगता है। हालांकि टीबी और फेफड़ों के इलाज के मामले में भी पीछे है, लेकिन जिस दर से यहां कैंसर फैल रहा है, उस अनुपात में तो सुविधाएं बहुत ही कम हैं। कैंसर रोगी के इमेजिंग परीक्षणों में सीटी स्कैन, बोन स्कैन, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई), पॉजिट्रान एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) स्कैन, अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे शामिल हैं। इसके अलावा काफी एडवांस जेनेटिक टेस्ट, जिनोम टेस्टिंग भी है। भोपाल एम्स और हमीदिया में रेडियोथैरेपी की सुविधा है, लेकिन जिनोम सीक्वेंसिंग और जेनेटिक टेस्ट की सुविधा यहां नहीं है। इसके लिए लोगों को बाहर जाना पड़ रहा है।

कुछ मामलों में यहां बेहतर उपचार की खबरें आ जाती हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि कैंसर के लिए विशेष अस्पताल सरकार की तरफ से क्यों नहीं खोला गया? अभी भी हम लगातार मेडिकल कालेज खोल रहे हैं। सरकारी अस्पतालों की सुविधाओं में वृद्धि कर रहे हैं। इलाज का बजट बढ़ रहा है तो उसमें कैंसर को भी जगह मिलना चाहिए।

सबसे पहले तो यह शोध पूरी गंभीरता से किया जाए कि भोपाल में मुंह का कैंसर इतना अधिक क्यों फैलता है। केवल गुटखा खाना ही इसका कारण नहीं है, क्योंकि दर्जनों ऐसे मामले मुंह के कैंसर के सामने आते रहते हैं, जो तंबाकू तो क्या सौंफ तक नहीं खाते और उन्हें कैंसर हुआ। महिलाओं में बे्रस्ट कैंसर बढऩे के अलग कारण हो सकते हैं, लेकिन मुंह और गले के कैंसर के मामले बढऩा अधिक चिंताजनक हैं। इसमें खास बात ये है कि भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में एक गैस कांड हुआ और उस गैस के चलते भी कई लोगों को तमाम बीमारियों के साथ ही कैंसर भी हुआ, लेकिन हम फिर भी कैंसर को लेकर शायद अभी तक गंभीर नहीं हो पाए हैं।

चाहे एम्स हो या गांधी मेडिकल कालेज, या भोपाल मेमोरियल अस्पताल, या फिर कोई निजी मेडिकल कालेज या अस्पताल, कोई भी कैंसर के मामले में पहल तो करे। इसकी यहां बहुत ज्यादा जरूरत है। बाकायदा कैंसर के खिलाफ अभियान चलाने की आवश्यकता भी है। और सबसे बड़ी आवश्यकता है शोध-अनुसंधान के साथ सस्ते इलाज की। यहां एक कैंसर अस्पताल है, लेकिन वहां भी इलाज काफी महंगा है, बिना किसी रियायत के। उसमें भी ठीक होने का प्रतिशत बहुत कम ही है।

एम्स में कैसंर की यूनिट तो है, लेकिन वहां पहली बात तो समय पर इलाज ही शुरू नहीं हो पाता है। एमआरआई-सीटी स्कैन के लिए ही महीनों इंतजार करना पड़ता है। फिर रेडियेशन के लिए लाइन लगानी पड़ती है। नंबर लगाना पड़ता है। आसानी से वहां इलाज ही नहीं मिल पाता। एम्स में भी इस यूनिट के विस्तार के साथ ही शोध के लिए अलग से व्यवस्था की जरूरत है। भोपाल में इतना कैंसर क्यों फैलता है, इसके पीछे एक सामान्य कारण यहां की धूल और पानी में आयरन की मात्रा अधिक मानी जाती है। यह तो आम आदमी की मान्यता है। चिकित्सीय शोध क्या कहते हैं, इसके लिए लंबे अनुसंधान की जरूरत है। इसलिए केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार, दोनों को ही मिलकर भोपाल में कैंसर को फैलने से रोकने की पहल करना चाहिए। और इसमें सामाजिक व स्वयंसेवी संगठन भी अपना योगदान देते हैं, तो बेहतर होगा। इलाज के साथ ही बीमारी को रोकने की पहल ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।

संजय सक्सेना

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