टोंक
राजस्थान के टोंक स्थित देवली में विजयदशमी के अवसर पर बंगाली समाज की महिलाओं ने पारंपरिक ‘सिंदूर खेला’ की परंपरा का पालन किया। महिलाओं ने एक-दूसरे के गाल और माथे पर सिंदूर लगाकर बधाई दी। मूलतः पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला परंपरा का पालन किया जाता है। ये वर्षों पुराना रिवाज है। जो पति की लंबी उम्र और खुशहाल परिवार की कामना के साथ मनाया जाता है। टोंक में भी ऐसा ही कुछ दिखा। नवरात्रि के बाद विजयादशमी पर्व पर मां दुर्गा सेवा समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में महिलाएं अपनी परंपराओं को निभाने में सक्रिय रहीं।
मान्यता है कि मां दुर्गा नवरात्र में अपने मायके आती हैं और दसवें दिन अपने ससुराल विदा होती हैं। इस विदाई को यादगार बनाने के लिए ही सिंदूर खेला का आयोजन किया जाता है। इस दिन, हर सुहागन यही मनोकामना करती है कि उसके सुहाग पर आने वाले हर संकट को मां टाल दें। सिंदूर उड़ाते हुए महिलाएं एक-दूसरे के गले लगती हैं जो माहौल को भक्तिमय बना देता है। इस दौरान, नवविवाहित बेटियां भी अपने मायके आती हैं और सिंदूर खेला कार्यक्रम के बाद उनको विदा किया जाता है।
मां दुर्गा सेवा समिति के अशोक मंडल ने बताया कि इस कार्यक्रम में महिलाओं ने पहले मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित किया। इसके बाद, उन्होंने एक-दूसरे को सिंदूर लगाया और मंगल गीत गाए। सभी ने मां से सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद मांगा।
बता दें कि बंगाल में मान्यता है कि मां दुर्गा 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। इसी उपलक्ष्य में बड़े-बड़े पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है। बंगाली समुदाय में दुर्गा पूजा पंचमी तिथि से शुरू होती है। सिंदूर खेला की परंपरा लगभग 450 साल पुरानी मानी जाती है। कहा जाता है कि इस रस्म की शुरुआत जमींदारों की दुर्गा पूजा के दौरान हुई। मान्यता है कि जब कोई महिला इस रस्म में हिस्सा लेती है, तो अखंड सौभाग्यवती रहती है। यह रस्म महिलाओं की ताकत का प्रतीक है।
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