Tuesday, 24 September

जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का त्योहार मनाया जाता है। आज 27 अगस्त, मंगलवार को पूरे देश में दही हांडी का उत्सव मनाया जा रहा है। दही हांडी का पर्व विशेष रूप से कृष्ण भक्तों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। दही हांडी पर बच्चे और किशोर कृष्ण और उनके सखाओं की पोशाक धारण करके दही हांडी के उत्सव में भाग लेते हैं। दही हांडी का उत्सव वैसे तो पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन यह महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के कई स्थानों जैसे मथुरा, वृंदावन और गोकुल में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आइये जानते हैं दही हांडी का महत्व और दही हांडी की कहानी।

द्वापर युग से मनाया जा रहा है दही हांडी का पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को दही हांडी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दही हांडी महोत्सव द्वापर युग से ही मनाया जाता है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण बचपन में बाल लीलाएँ करते थे। इन बाल लीलाओं में माखन की हांडियां तोड़ना भी शामिल था।

दही हांडी का महत्व दही हांडी का पर्व साधु की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। द्वापर युग में साबुत श्रीकृष्ण को माखन बहुत पसंद था। वे अपने दोस्तों के साथ मिलकर घर-घर बेचने वाले दही-माखन की हांडिया ऑर्केस्ट्रा से माखन चुराकर खाना खाते थे। प्राचीन समय में दही और माखन जैसी चीजें एक मिट्टी की हांडी में रखी जाती थीं। दही हांडी का पर्व श्रीकृष्ण के बचपन के दिनों को एक बार फिर से याद कर उनकी आराधना करना है। इस कारण से श्रीकृष्ण के भक्त दही-हांडी के उत्सव में शामिल होते हैं।

समय के साथ बनाई जाती हैं दही हांडी ज़मीन पर लटका दिया जाता है। इसके 20-30 या फिर इससे भी ज्यादा लोगों का ग्रुप श्रीकृष्ण की पोशाक में तैयार होता है। चारों ओर सजावट की जाती है। फिर मानव पिरामिड जीवों को एक-दूसरे के कंधे पर चढ़ाकर इस हांडी को इसमें से दही-माखन को खा लिया जाता है। हांडी को तोड़ने के साथ ही दही हांडी का पर्व पूरा माना जाता है। इसके बाद श्रीकृष्ण के भजन गाकर वातावरण को भक्तिमय बनाया जाता है।


Source : Agency

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