Tuesday, 17 December

भोपाल
 मध्य प्रदेश में जल्द ही सड़कें और मजबूत बनेंगी। पीडब्ल्यूडी खराब सड़कों की समस्या से निपटने के लिए व्हाइट टॉपिंग तकनीक अपना रहा है। इस तकनीक से बनी सड़कें ज़्यादा टिकाऊ होती हैं और लंबे समय तक चलती हैं। शुरुआत में 21 जिलों की 41 सड़कों पर इस तकनीक का इस्तेमाल होगा। काम इसी महीने शुरू हो जाएगा और चार महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। इससे बारिश में सड़कों के उखड़ने की समस्या से निजात मिलेगी।

लोक निर्माण विभाग ने खराब सड़कों की बढ़ती शिकायतों के बाद यह कदम उठाया है। बारिश में सड़कें टूटने से लोगों को काफी परेशानी होती है। व्हाइट टॉपिंग तकनीक से बनी सड़कें इस समस्या का समाधान करेंगी। इस तकनीक से करीब 108 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई जाएंगी। प्रोजेक्ट नवंबर अंत तक शुरू होकर अगले चार महीनों में पूरा हो जाएगा।सड़क निर्माण में नई क्रांति

व्हाइट टॉपिंग तकनीक सड़क निर्माण में एक नया मोड़ है। यह तकनीक सड़कों को मजबूत और टिकाऊ बनाती है। इससे सड़कों का रखरखाव भी आसान हो जाता है। यह तकनीक लंबे समय में पैसा भी बचाती है। सरकार का यह कदम प्रदेश की सड़कों की दशा सुधारने में मददगार साबित होगा। इससे लोगों को आवागमन में सुविधा होगी और राज्य के विकास को गति मिलेगी। यह तकनीक भविष्य में सड़क निर्माण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती है। यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है। यह सड़कों को गर्मी से बचाती है. इससे शहरों का तापमान भी कम रहता है। व्हाइट टॉपिंग तकनीक से बेहतर सड़कें और बेहतर भविष्य की उम्मीद है।लोगों को मिलेगा बेहतर यात्रा का अनुभव

भोपाल में वल्लभ भवन मार्ग और सीएम हाउस मार्ग समेत 14 सड़कों को चिह्नित किया गया है। PWD ने 15 अन्य जिलों में भी एक-एक सड़क पर इस तकनीक का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। इन जिलों में इंदौर, नर्मदापुरम, नीमच, बैतूल से लेकर मुरैना, रतलाम, रायसेन, रीवा, सतना,आगर मालवा, उमरिया, खंडवा, गुना, छतरपुर, देवास और हरदा शामिल हैं। इससे इन जिलों की सड़कों की हालत में सुधार होगा। लोगों को बेहतर यात्रा का अनुभव मिलेगा।जानें क्या है व्हाइट टॉपिंग तकनीक

व्हाइट टॉपिंग तकनीक में पुरानी सड़क की ऊपरी परत हटाकर कंक्रीट की मोटी परत बिछाई जाती है। इसमें M-40 ग्रेड सीमेंट और फाइबर बुरादा का इस्तेमाल होता है। 6 से 8 इंच मोटी यह परत सड़क को मजबूत बनाती है। भारी ट्रैफ़िक और खराब मौसम का भी इस पर कम असर होता है। इससे सड़क की उम्र 20 से 25 साल तक बढ़ जाती है। यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल भी है। कंक्रीट की सतह डामर से ज़्यादा ठंडी रहती है। इससे रखरखाव का खर्च भी कम आता है।


Source : Agency

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