जयपुर.
राजस्थान में कल यानी बुधवार को उपचुनाव के लिए मतदान होगा। इसके बाद प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव होने हैं। इसलिए उपचुनाव के नतीजे अहम हैं। बीजेपी ने उपचुनावों में पूरी ताकत झोंकी है। अपने तमाम मंत्री, विधायक और संगठन को चुनावी मैदान में झोंक दिया। कांग्रेस चुनावी प्रचार में वैसी आक्रामकता नहीं दिखा पाई।
चुनावी परिणाम 23 नवंबर को जारी होंगे। हालांकि, नतीजे जो भी हों राजस्थान विधानसभा में सरकार की स्थिति पर कोई असर आने वाला नहीं है। लेकिन इसके बाद भी बीजेपी ने अपने सारे चुनावी घोड़े मैदान में दौड़ा दिए। इसकी वजह है प्रतिष्ठा। बीजेपी में यह चुनाव सीएम भजनलाल शर्मा के चेहरे पर हो रहे हैं। कांग्रेस की जीत-हार प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कद तय करेगी। वहीं, क्षेत्रीय पार्टियों में आएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल और बीएपी सांसद राजकुमार रोत के लिए भी उपचुनाव अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है। हालांकि, ये दोनों ही नेता चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। लेकिन मुकाबला इन्हीं चेहरों के इर्द-गिर्द लड़ा जा रहा है। सीएम भजनलाल शर्मा: यह उपचुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। हालांकि, उनके सीएम बनने के बाद प्रदेश में लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। लेकिन तब सरकार बिल्कुल नई थी। यही वजह रही कि लोकसभा चुनावों में 11 सीटें हारने का ठीकरा संगठन पर फूट गया। लेकिन अब सरकार को काम करते हुए करीब एक साल हो गया है। सरकार अपने चुनावी वादों में से भी ज्यादातर पूरे होने का दावा कर रही है। राइजिंग राजस्थान जैसी बड़ी निवेश समिट करवाई जा रही है। इसलिए उपचुनाव में जनता का मतदान सरकार के काम पर मुहर होगा।
अकेले पड़े गोविंद सिंह डोटासरा
पूरे उपचुनाव के दौरान प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ही कांग्रेस में सबसे सक्रिय नजर आए। कांग्रेस में प्रदेश स्तरीय नेताओं की संख्या कम नहीं है। लेकिन जहां भाजपा के नेताओं को चुनाव क्षेत्रों में प्रवास तक करवाया गया। वहीं, कांग्रेस के नेता प्रचार के लिए भी नहीं पहुंचे। पूर्व सीएम अशोक गहलोत सिर्फ दौसा और देवली-उनियारा की नामांकन सभाओं में पहुंचे। इसके बाद वे पूरी तरह महाराष्ट्र चुनावों में लग गए। वहीं, सचिन पायलट सिर्फ दौसा, देवली-उनियारा और झुंझुनूं पहुंचे। ये तीनों ही सीटें उनके कैंप के नेताओं से जुड़ी मानी जाती हैं। वहीं, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली पूरी तरह सिर्फ अलवर की रामगढ़ सीट पर ही सक्रिय दिखे। इस लिहाज से यदि चुनाव नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आते हैं तो डोटासरा का कद काफी बढ़ जाएगा।
खींवसर: पूरा चुनाव हनुमान पर फोकस
खींवसर में त्रिकोणीय मुकाबला है। बीजेपी-कांग्रेस और आरएलपी के प्रत्याशियों के बीच टक्कर है। हनुमान बेनीवाल के लोकसभा में जाने के बाद यह सीट खाली हुई है। इस उपचुनाव में उन्होंने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को उतारा है। लेकिन यहां के चुनावों को यदि कम शब्दों में समझा जाए तो यह हनुमान की जीत और हार का चुनाव है। इसके अलावा यहां कोई बड़ी चर्चा नहीं है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों का टारगेट हनुमान बेनीवाल ही हैं और वे अकेले मुकाबले में अपनी जीत के रिकॉर्ड के साथ डटे हैं।
राजकुमार रोत: वागड़ की लड़ाई
भारत आदिवासी पार्टी डूंगरपुर-बांसवाड़ा की चौरासी और उदयपुर की सलूंबर सीट से चुनाव लड़ रही है। लेकिन इसके पीछे जो चेहरा है, वह राजकुमार रोत का है। राजकुमार रोत लोकसभा में बीजेपी नेता महेंद्रजीत मालवीय को हराकर वागड़ में आदिवसियों के बीच विश्वास बना चुके हैं और जिन दो सीटों पर बीएपी उपचुनाव लड़ रही है, उसमें रोत की साख सबसे ज्यादा दावं पर लगी है।
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