Monday, 23 December

भोपाल

कैंसर सेल्स पर सीधे वार करने वाली दवाइयों का पता लगाकर भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) भोपाल के विज्ञानी प्रो. विशाल राय ने देशभर में नाम कमाया है। प्रो. राय ने प्रोटीन इंजीनियरिंग पर काम कर कैंसर सेल्स पर सीधे वार करने वाली दवाइयों का पता लगाया है।

एंटीबाडी-ड्रग कंजुगेट (एडीसी) तकनीक की मदद से अब यह दवाइयां सीधे कैंसर सेल्स पर वार करेगी। इससे कीमोथैरेपी से होने वाले नुकसान के साथ कैंसर का इलाज भी आसान हो जाएगा। प्रो. विशाल राय ने बताया कि यह खोज भारतीय बायोफार्मा क्षेत्र को आगे बढ़ाने में मदद करेगा।कैंसर के खिलाफ लड़ाई को लेकर अहम खोज

उन्होंने कहा कि अभी हमारे शरीर का एंटीबाडी शरीर की बीमारियों से लड़ने का काम करता है। यह एंटीबाडी एक प्रकार का प्रोटीन है, लेकिन कैंसर के मामले में हमारे शरीर का एंटीबाडी उस बीमारी से लड़ने में सक्षम नहीं हो पाता है। इसके बाद मरीज को कीमोथैरेपी का सहारा लेना होता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब एंटीबाडी-ड्रग कंजुगेट की मदद से एंटीबाडी और ड्रग को एक साथ मर्ज किया जा सकेगा।

प्रो. राय के अनुसार, कैंसर का ड्रग एक प्रकार का जहर होता है। अगर इसे शरीर में इंजेक्ट किया जाए तो यह कैंसर सेल्स के साथ बाकी सेल्स को भी नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन एडीसी तकनीक में हम एंटीबाडी के साथ ड्रग को मर्ज कर देते हैं। इसमें एंटीबाडी को पता होता है कि शरीर के अंदर बीमारी कहां है, इसिलए वह सीधे टारगेट सेल्स यानी कैंसर सेल्स के पास पहुंच जाता है। वहां पहुंचने पर ड्रग उस कैंसर सेल्स को खत्म कर देता है।राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

इनके इसी काम के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुरुवार को इन्हें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया है। प्रोफेसर राय लखनऊ के रहने वाले हैं और 2011 से आईसर में पदस्थ हैं। इनके साथ ही आईसर की ही जैविक विज्ञान विभाग की प्रो. आर महालक्ष्मी को भी विज्ञान युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

दोनों विज्ञानियों की विशिष्ट उपलब्धि पर मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने इन्हें शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में इन दोनों विज्ञानियों ने अभूतपूर्व योगदान दिया है। दोनों वैज्ञानिकों को मिले इस सम्मान से सम्पूर्ण मध्यप्रदेश गौरवान्वित हुआ है।माइटोकोन्ड्रिया के निष्क्रिय होने से होती हैं मानसिक बीमारियां

प्रो. आर महालक्ष्मी को यह पुरस्कार माइटोकोन्ड्रियल मेम्ब्रेन प्रोटीन फोल्डिंग और स्वास्थ्य में इसकी भूमिका विषय पर शोध के लिए प्रदान किया गया है। महालक्ष्मी कोयम्बटूर की रहने वाली हैं। वह 2009 से आइसर के जैविक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। प्रो. महालक्ष्मी ने बताया कि माइटोकोन्ड्रिया की बाहरी झिल्ली में आवश्यक प्रोटीन होते हैं, जिसके निष्क्रिय होने पर कई प्रकार की मानसिक बीमारियां हो सकती हैं। शोध में इनके निष्क्रिय रहने के कारणों के बारे में भी बताया गया है।


Source : Agency

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