दौसा.
राजस्थान में विधानसभा के उपचुनावों की तैयारियां तेज हो गई हैं। बीजेपी ने सभी 7 सीटों पर 3-3 नामों का पैनल तैयार कर लिया है। कांग्रेस भी अपने नामों को लेकर पहले बैठक कर चुकी है। नवंबर में सातों सीटों पर चुनाव करवाए जा सकते हैं। रामगढ़ और सलूंबर के अलावा उपचुनाव के लिए प्रस्तावित पांच सीटों वो हैं, जहां के विधायक लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन के टिकट पर सांसद बन गए हैं। इनमें खींवसर, झुंझुनूं, दौसा, देवली-उनियारा और चौरासी हैं।
हालांकि कांग्रेस और बीजेपी में नामों की दावेदारी शुरू हो गई है, लेकिन इन 7 सीटों में से 5 सीट ऐसी हैं जहां भाजपा या कांग्रेस से जुड़े सियासी परिवारों का दबदबा है।
यहां दिखेगी विरासत की सियासत —
दौसा- कांग्रेस विधायक मुरारी लाल मीणा अब सांसद है। उनके परिवार में पत्नी सविता मीणा और बेटी दावेदार हैं। सविता 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। इधर, भाजपा के दिग्गज नेता डॉ.किरोड़ लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा भी दावेदारी में नजर आ रहे हैं।
झुंझुनूं- कांग्रेस के ओला परिवार के सियासी गढ़ में विधायक चुने गए बृजेन्द्र ओला अब सांसद बन चुके हैं। पुत्र अमित ओला टिकट की कतार में हैं। फिलहाल पंचायत समिति सदस्य हैं। भाजपा से 2023 का चुनाव हारे निशित चौधरी फिर दावा कर रहे हैं।
सलूंबर- दिवंगत विधायक अमृत लाल मीणा के बाद चर्चा है कि भाजपा उनके परिवार में ही टिकट देकर सहानुभूति लहर का फायदा ले सकती है। मीणा की पत्नी अभी सरपंच हैं और राजनीति में सक्रिय हैं। कांग्रेस की ओर से परंपरागत तौर पर दिग्गज नेता रघुवीर मीणा की दावेदारी है।
खींवसर- सांसद हनुमान बेनीवाल की परंपरागत सीट पर फिर बेनीवाल परिवार का दावा है। भाई नारायण बेनीवाल पहले विधायक रह चुके हैं। इस बार हनुमान की पत्नी की चर्चा भी है। नागौर के दिग्गज सियासी परिवार मिर्धा फैमिली से ज्योति मिर्धा फिर एक बार दौड़ हैं। पूर्व में वह विधानसभा और लोकसभा का चुनाव हार चुकी हैं।
चौरासी- चौरासी सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी का दबदबा है। यहां से विधानसभा चुनाव जीते बीएपी के राजकुमार रोत अब सांसद बन चुके हैं। इसलिए यह सीट चुनाव के लिए खाली हुई है। बीएपी ने इस सीट पर अपनी कैंपेनिंग शुरू भी कर दी है। राजकुमार रोत लगातार इस सीट पर दौरे कर रहे हैं। बीएपी सिर्फ यहीं नहीं बल्कि कुछ अन्य एसटी बाहुल्य सीटों पर भी अपने प्रत्याशी उतार सकती है।
रामगढ़- हाल में रामगढ़ से विधायक रहे जुबेर खान का निधन हो गया था। इसके बाद यह सीट उपचुनाव के लिए खाली हो गई। बीते 3 दशक से कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में इस सीट पर परिवारवाद हावी रहा है। कांग्रेस ने जहां 1990 से यहां जुबेर खान को ही प्रत्याशी बनाया वहीं। बीजेपी ने हर बार ज्ञानदेव आहूजा को उनके सामने उतारा। इस बार यहां कांग्रेस से इमरान टिकट के बड़े दावेदार हैं वहीं बीजेपी अपने बागी सुखविंदर पर दांव लगा सकती है।
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