Friday, 27 December

भोपाल। रिश्वत लेते पकड़े जाओ… रिश्वत देकर छूट जाओ…! शायद मध्यप्रदेश में यही कुछ चल रहा है। भ्रष्टाचार के जीरो टॉलरेंस की कहानी यही है, छोटे कर्मचारियों को पकड़ो। कैसे चलाओ। फिर अधिकांश को बरी करवाओ। कई मामले तो फाइलों में ही दफन कर दो। 

आज की खबर है। सरकारी अफसर-कर्मचारी के यहां छापा पड़ता है। लोकायुक्त संगठन दावा करता है- करोड़ों की बेनामी प्रॉपर्टी मिली। फिर… भ्रष्ट अफसर-कर्मचारी का कुछ नहीं बिगड़ता। सजा मिलना तो दूर मामले कोर्ट तक ही नहीं पहुंच पाते क्योंकि लोकायुक्त की जांच ‘तसल्ली’ से चलती रहती है… सालों तक। और लोकायुक्त अगर केस बनाता भी है तो चालान पेश करने की अनुमति सरकार नहीं देती। 

प्रदेश में पिछले पांच साल में 76 अफसर-कर्मचारियों के यहां पड़े छापों की हकीकत ये है कि 62 मामलों में अभी तक जांच ही चल रही है। जिन 6 मामलों की जांच पूरी हो गई, उनमें सरकार ने कोर्ट में केस चलाने की मंजूरी नहीं दी। बाकी 8 मामले अदालत में चल रहे हैं।

फिलहाल, विधानसभा चुनाव के पहले से छापे की कार्रवाई रुकी हुई है। अब लोकसभा चुनाव के बाद ही लोकायुक्त की टीम मैदान में उतरेगी।

इंदौर में सहायक आबकारी आयुक्त आलोक खरे के यहां छापे में 100 करोड़ रुपए से अधिक की चल-अचल संपत्ति मिली थी। घर पर थिएटर और अन्य बेशकीमती सामान मिला था। कैलाश पार्क इंदौर में 1500 वर्ग फीट का प्लॉट, श्री बिल्डर्स एंड डेवलपर्स में 5056 वर्ग फीट का आलीशान बंगला, सेंचुरी 21 मॉल में 1890 वर्ग फीट का एक ऑफिस का पता चला था। इसके अलावा खरे ने कई अन्य जगह निवेश किया था। अभी भी जांच चल रही है।

 हेमा मीणा, प्रभारी सहायक यंत्री, पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन, भोपाल के यहां छापा  11 मई 2023 को मारा गया था। हेमा मीणा 98 एकड़ जमीन की मालकिन निकली थीं। विदिशा के देवराजपुर में 56 एकड़ में वेयरहाउस, मुड़ियाखेड़ा में 14 एकड़ का फार्म हाउस, रायसेन के मेहगांव में 28 एकड़ जमीन-पॉली हाउस मिला था। सेवा से बर्खास्त हो चुकी हेमा की सैलरी 30 हजार महीना थी और 30 लाख का एलईडी टीवी और एक करोड़ का बंगला मिला था।

खनिज अधिकारी के यहां 4 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी 

इंदौर में पदस्थ रहे खनिज अधिकारी प्रदीप खन्ना के यहां छापेमारी में 4 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी मिली थी। सर्चिग में टीम को जमीन से जुड़े कई दस्तावेज, भोपाल में बंगला, 13 लाख की ज्वेलरी, एक किलो चांदी, 9 लाख रुपए नकद, दो कार और चार दोपहिया वाहन मिले। इंदौर में एक फ्लैट, बायपास पर नया मकान और भोपाल में भी बंगला मिला। बाद में इस अधिकारी को टर्मिनेट कर दिया गया।

बेलदार के पास पेंट हाउस के साथ करोड़ों की प्रॉपर्टी मिली

इंदौर नगर निगम के चर्चित बेलदार रियाज उल हक के यहां पड़े छापे में करोड़ों रुपए की संपत्ति मिली थी। बर्खास्त हो चुके बेलदार के पास स्नेहलतागंज स्थित देवछाया मल्टी में तीन फ्लैट, दो प्लॉट, 12 बैंक खाते, एक पेंट हाउस, पाकीजा लाइफ स्टाइल में एक निर्माणाधीन मकान और 50 हजार रुपए नकद मिले थे। डस्टर कार और दो पहिया वाहन, बीमा पॉलिसी और बैंक खाते भी पता चले थे।

ये कुछ चर्चित मामले हैं, जिनके आधार पर कहा जाता रहा है कि मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार का जीरो टॉलरेंस है। लेकिन हश्र क्या हुआ..? लोकायुक्त संगठन में लंबे समय तक सेवाएं दे चुके एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो आर्थिक अपराध के मामलों में जांच के बाद कार्रवाई करने के अधिकार रखती हैं। इनके द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) में भ्रष्ट लोकसेवकों के विरुद्ध जांच के बाद कार्यवाही की जाती है। इस एक्ट में आरोपी के दोष सिद्ध होने के बाद चार से सात साल तक की सजा और जुर्माना दोनों के प्रावधान हैं।

चुनाव के चलते कार्रवाई रुकी…

विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक मध्यप्रदेश में लोकायुक्त संगठन ने एक भी अधिकारी-कर्मचारी के यहां छापा नहीं मारा है। इस बारे में लोकायुक्त संगठन से जुड़े अफसरों का कहना है कि चुनाव के दौरान इस तरह की कार्रवाई से बचने की कोशिश होती है ताकि कोई राजनीतिक रंग न दिया जा सके। अभी लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने वाली है। लोकसभा चुनाव के बाद ही बड़ी कार्रवाई हो पाएगी।

 लोकायुक्त संगठन में भी विजिलेंस अफसर हों

आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैं- मप्र लोकायुक्त और लोकायुक्त संगठन पर जितने करोड़ रुपए का बजट खर्च होता है, उतना पैसा भी भ्रष्ट सरकारी अफसरों से वसूल नहीं हो पाता क्योंकि सजा का प्रतिशत बेहद कम है। इसके लिए वर्षों से जमे लोकायुक्त अफसर जिम्मेदार हैं। लोकायुक्त संगठन में भी विजिलेंस अफसर होना चाहिए। 2011 में मप्र सरकार द्वारा बनाए राजसात कानून के तहत भी भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति राजसात नहीं हो रही है।

कारण कुछ भी हों, लेकिन लोकायुक्त संगठन की कार्रवाई ही संदेह के घेरे में आती दिख रही है। पिछले बीस सालों के दौरान एक भी आईएएस या आईपीएस या अन्य सेवा के किसी बड़े अधिकारी पर हाथ नही डाला गया। छोटी मछलियां ही पकड़ी गईं, उनमें से भी आधे से ज्यादा मुक्त हो गए। ऐसी कार्रवाई से क्या मतलब निकला..? 

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