Wednesday, 15 January

Bhopal। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बीजेपी 15 साल बाद विधानसभा चुनाव लड़वाने जा रही है, पर राजनीतिक जानकार कह रहे हैं कि नरेंद्र तोमर चक्रव्यूह में फंस गए हैं। दिमनी भले ही उनका गृह क्षेत्र हो लेकिन यहां उनकी जीतने की संभावना बहुत ही कम है। 

बीते दिनों बीजेपी ने अपनी दूसरी सूची जारी की, जिसमें 39 उम्मीदवारों को विधानसभा चुनाव लड़ने टिकट दिए गए हैं. पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में लगातार 9 साल से मंत्री बने हुए नरेंद्र सिंह तोमर को दिमनी विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है. नरेंद्र सिंह तोमर वर्तमान में मुरैना-श्योपुर संसदीय सीट से सांसद हैं और दिमनी विधानसभा इसी संसदीय सीट के अंतर्गत आती है. लेकिन राजनीतिक हलकों में नरेंद्र सिंह तोमर को दिमनी सीट से टिकट देने के पीछे कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं।

जिस दिमनी विधानसभा सीट पर नरेंद्र सिंह तोमर को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है, वह कांग्रेस की कब्जे वाली मजबूत सीट है. वर्तमान में इस सीट पर कांग्रेस के विधायक रविंद्र सिंह तोमर काबिज हैं. 2013 से दिमनी सीट बीजेपी से दूर है. यहां पर 2013 में एक बार बसपा और शेष सभी चुनावों में कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत मिली है।

दिमनी का इतिहास

1998 से लेकर 2008 तक दिमनी सीट बीजेपी के पास रही. तब यह आरक्षित सीट होती थी. 2008 में जब यह सीट सामान्य हो गई तब भी सीट पर बीजेपी उम्मीदवार जीतते रहे. लेकिन 2013 के चुनाव में बसपा उम्मीदवार बलबीर सिंह दंडोतिया विजयी रहे. 2018 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार गिर्राज दंडोतिया जीते जो सिंधिया समर्थक हैं लेकिन सिंधिया के कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में आने के बाद वे भी बीजेपी में आ गए थे. 2020 के उप चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी रविंद्र सिंह तोमर विजयी रहे।

निर्णायक वोटर तोमर राजपूत हैं यहां पर

दिमनी सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 201517 है. लेकिन इनमें सबसे निर्णायक वोटर हैं तोमर राजपूत. इनकी संख्या लगभग 65 हजार से भी ऊपर है. दूसरे नंबर पर ब्राह्मण और एससी वोटर्स हैं. दिमनी सीट को इसलिए तंवरघार भी बोला जाता है. क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार विनोद त्रिपाठी बताते हैं कि कांग्रेस के कब्जे और प्रभाव वाली दिमनी सीट पर नरेंद्र सिंह तोमर को लाने की वजह ही उनका तोमर होना और दिमनी में तोमर वोटरों का निर्णायक होना है. दूसरी बड़ी वजह है कि नरेंद्र सिंह तोमर बड़े नेता हैं और उनके चंबल के अंदर चुनाव लड़ने की वजह से चंबल क्षेत्र की दूसरी सीटों पर भी बीजेपी प्रत्याशियों के लिए एक माहौल बनेगा. बीजेपी हर हाल में ग्वालियर-चंबल से अधिक सीटें जीतना चाहती है, क्योंकि यहां की 34 में से 26 सीटें जीतकर ही कांग्रेस ने 2018 में अपनी सरकार बना ली थी।

रविंद्र तोमर नरेंद्र पर भारी…?

जानकारी के अनुसार दिमनी सीट पर नरेंद्र तोमर के खिलाफ कांग्रेस उप चुनाव में जीते रविन्द्र तोमर पर ही भरोसा करेगी। रविन्द्र तोमर का इस क्षेत्र में तोमर राजपूत समाज में काफी प्रभाव है और सम्मान भी। लेकिन नरेंद्र सिंह तोमर को उनका समाज कितना महत्व देता है, यह बाद में पता चलेगा। बीजेपी कुछ भी दावा करे, पर उस क्षेत्र के लोग नरेंद्र तोमर और उनकी कार्य प्रणाली से खुश नहीं दिखते। ये ग्रह क्षेत्र होने के बावजूद उन्होंने यहां के लिए कुछ नहीं किया, ऐसा लोगों का दावा है। ग्राउंड रिपोर्ट कहती है कि रविंद्र तोमर केंद्रीय मंत्री पर भारी पड़ेंगे। 

तीसरा मोर्चा भी खुलेगा? 

माना जा रहा है कि दिमनी से बसपा बलवीर दंडोतिया को चुनाव लडा सकती है। बलवीर पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं और जीत भी चुके हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं के यदि बलवीर लड़े और उन्हें ब्राह्मण के साथ दलित वोट एकतरफा मिले, जैसी कि संभावना है, तो बलवीर चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसे में नरेंद्र तोमर का तीसरे स्थान पर खिसकने की आशंका भी है। 

कृषि मंत्री के रूप में फ्लॉप रहे? 

किसान आंदोलन के समय नरेंद्र तोमर ही कृषि मंत्री थे, लेकिन आंदोलनकारियों से बातचीत से लेकर अन्य मुद्दों पर उनकी भूमिका नगण्य ही नजर आई। सूत्र बताते हैं कि तोमर की कार्यप्रणाली से पीएम मोदी भी खुश नहीं रहे। इसलिए उन्होंने केंद्रीय मंत्री पियूष गोयल को टीम के सभी विभाग देखने का जिम्मा दे दिया था। तोमर कुछ समय से नाम मात्र के ही मंत्री थे। 

ग्वालियर में भी जनाधार घटा

तोमर अपना क्षेत्र ग्वालियर मानते हैं लेकिन ग्वालियर में उनका जनाधार बढ़ने के बजाय घटता चला गया। वे अपने बेटे को टिकट दिलाना चाह रहे थे।पर नेतृत्व ने उन्हें खुद ही न चाहते हुए टिकट दे दिया। 

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