Friday, 3 January

भोपाल । मीडिया में आई खबरों को आधार बनाकर अयोग्य अतिथि विद्वान के चयन पर उच्च शिक्षा विभाग ने एडी सागर को पत्र लिखकर वस्तुतस्थिति की जानकारी मांगी है, लेकिन जांच उसे ही सौंप दी है, जो आरोपों के घेरे में है। 50 हजार रु महीना मानदेय के इस चयन में 6 माह की मानदेय राशि के बराबर रकम (03 लाख रु) का सत्यापन समिति व प्राचार्य के बीच बंदरबांट की खबर है। 

एडी सागर ने संबंधित महाविद्यालय के प्राचार्य को मामले की जांच कर प्रतिवेदन देने के लिए लिखा है। इसमें दस्तावेज सत्यापन समिति ने प्राचार्य की मिलीभगत से उच्च शिक्षा विभाग के नियमों में धूल झोंक कर समाजशास्त्र विषय में पीएचडी धारक आवेदक को  स्पोर्ट्स विषय में चयन के लिए योग्य ठहरा दिया।जिस प्राचार्य ने गलत दस्तावेजों का सत्यापन कराया उसी ने अपने कॉलेज में जॉइनिंग करा दी।

मजे की बात ये है कि राजधानी की मीडिया में धांधली उजागर होने पर उच्च शिक्षा विभाग ने एडी सागर को जांच के निर्देश दिए। और एडी ने मामले की जांच भी उसी प्राचार्य को सौंपी जिसने दस्तावेजों का गलत सत्यापन कर चयन में भूमिका निभाई।यानि चोर को ही चोरी का पता लगाने की जिम्मेदारी दे दी गई!

ऐसे में सवाल उठता है कि 

– जब संबंधित विषय में पीएचडी अनिवार्य योग्यता है तो अन्य विषय में पीएचडी धारक के दस्तावेज सही ठहराकर सत्यापित कैसे कर दिए गए?

-महाविद्यालय की सत्यापन समिति ने किसके दबाव में उक्त गलत सत्यापन किया?

– एकबार गलत सत्यापन होने पर चयन के बाद जॉइनिग के समय दस्तावेजों का नियम अनुसार परीक्षण/ सत्यापन क्यों और किसके दबाव में नहीं किया गया?

–  धांधली सामने आने के बाद एडी ने मामले की जांच स्वतंत्र रूप से नहीं कराकर उसी महाविद्यालय के प्राचार्य से क्यों और किसके दबाव में कराई ?     

इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया गया, लेकिन  चर्चा नही हो सकी। 

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