भोपाल। पिछली शिवराज सरकार ने जिस तरह रेवड़ियों की तरह बोर्ड और मंडलों का गठन किया था, वो अब सरकार के लिए सर दर्द बन गया है। सरकार इनके लिए कार्यालय और कर्मचारियों का खर्चा उठाने को स्थिति में नहीं है। सूत्र बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद तमाम बोर्ड और मंडल खत्म किए जा सकते हैं। हाल ही में मोहन यादव सरकार ने पुराने अधिकांश निगम मंडल और प्राधिकरणों के पदाधिकारियों को हटाया है।
सूत्र बताते हैं कि इस फैसले पर सहमति बन चुकी है, लेकिन मुहर लोकसभा चुनाव के बाद लगेगी। इसकी वजह यह है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। सूत्र ये भी बताते हैं कि इन बोर्ड को खत्म करने के बाद नए सिरे से फिर गठन पर विचार किया जाएगा। इसमें बोर्ड और उनके अध्यक्ष-उपाध्यक्षों को पावरफुल बनाया जाएगा।
इन बोर्ड को खत्म करने के पीछे ये भी तर्क है कि चुनाव से पहले ये बोर्ड आनन-फानन में अस्तित्व में लाए गए थे। इनका न तो कोई ऑफिस है और न ही अफसर। न ही कर्मचारियों की पोस्टिंग की गई है।
डॉ. मोहन यादव सरकार 13 फरवरी को आदेश जारी कर 46 निगम, मंडल और प्राधिकरण में अध्यक्ष और उपाध्यक्षों की नियुक्तियों को निरस्त कर चुकी है। इन सभी की नियुक्ति शिवराज सरकार के समय हुई थी।
निगम-मंडल, प्राधिकरण के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों को कैबिनेट व राज्यमंत्रियों का दर्जा प्राप्त था।आचार संहिता लगने से पहले 14 बोर्ड के गठन को दी थी मंजूरी … मध्य प्रदेश विश्वकर्मा कल्याण बोर्ड, मध्य प्रदेश रजक कल्याण बोर्ड, मध्य प्रदेश स्वर्णकला कल्याण बोर्ड, मध्य प्रदेश तेलघानी कल्याण बोर्ड, मध्य प्रदेश कुश कल्याण बोर्ड, मध्य प्रदेश वीर तेजाजी कल्याण बोर्ड, मध्य प्रदेश महाराणा प्रताप कल्याण बोर्ड, परशुराम कल्याण बोर्ड , जय मीनेश कल्याण बोर्ड, मां पूरी बाई कीर कल्याण बोर्ड, मध्य प्रदेश देवनारायण बोर्ड, सहरिया विकास प्राधिकरण, भारिया विकास प्राधिकरण, कोल जनजाति विकास प्राधिकरण।