Sunday, 22 December

जमशेदपुर.

रतन टाटा के निधन से पूरे देश में एक शोक की लहर है, लेकिन झारखंड का जमशेदपुर शहर विशेष रूप से शोक में डूबा हुआ है। जमशेदपुर को, जिसे ‘टाटानगर’ के नाम से भी जाना जाता है, इसे टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा ने बसाया था। रतन टाटा ने जमशेदपुर के विकास को नई गति दी और इसे वैश्विक मानचित्र पर लाकर खड़ा किया।

रतन टाटा के निधन पर झारखंड में एक दिन के शोक का एलान किया गया है। झारखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र को नई दिशा देने में जमशेदपुर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जमशेदपुर में ही टाटा का स्टील प्लांट है। रतन टाटा साल 1963 में पहली बार जमशेदपुर आए थे। इसके बाद वे 1965 में अपने पायलट कौशल को निखारने के लिए शहर आए। जैसे ही रतन टाटा के निधन की खबर फैली, शहर में मातम छा गया। सुबह से ही, विभिन्न क्षेत्रों के लोग टाटा सेंटर में श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंच रहे हैं। रतन टाटा का बुधवार रात को 86 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। रतन टाटा जब सक्रिय थे तो लगभग हर साल 3 मार्च को जमशेदजी टाटा की जयंती के अवसर पर जमशेदपुर में आयोजित होने वाले समारोह में भाग जरूर लेते थे। रतन टाटा आखिरी बार झारखंड मार्च 2021 में आए थे, जब उन्होंने टाटा समूह के 182वें संस्थापक दिवस समारोह में शिरकत की थी। जमशेदपुर में उनका दूसरा आखिरी दौरा 2019 में हुआ था, जब मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल (एमटीएमएच) को अपग्रेड किया गया था। यह टाटा स्टील ही है जिसने जमशेदपुर में देश का पहला औद्योगिक शहर विकसित किया, जो अविभाजित बिहार का हिस्सा था। शुरुआत में अंग्रेजी शासन इस उद्यम की सफलता को लेकर सशंकित थे, लेकिन यह संयंत्र प्रथम विश्व युद्ध के दौरान मित्र देशों की सेनाओं को स्टील और बख्तरबंद वाहनों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया। जिसके बाद अंग्रेजों ने स्वर्गीय जमशेदजी के सम्मान में साकची का नाम बदलकर जमशेदपुर रखकर टाटा परिवार को सम्मानित किया। रतन टाटा को भारत रत्न देने की मांग करते हुए टाटा समूह श्रमिक संघ के अध्यक्ष राकेश्वर पांडे ने कहा कि जेआरडी टाटा के बाद रतन टाटा ही थे जिन्होंने जमशेदपुर और टाटा श्रमिकों के लिए अपना दिल और आत्मा समर्पित की।


Source : Agency

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