Friday, 27 December

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाके में एक चार मंजिला मकान को प्राइवेट पीजी यानि पेइंग गेस्ट होस्टल के रूप में परिवर्तित करके उसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाता है। हर मंजिल पर दड़बे जैसे छोटे-छोटे कमरे बनाकर उन्हें किराए पर चढ़ा दिए जाते हैं, जिनमें 35 लड़कियां रहती हैं। स्टिल्ट पार्किंग में ई-रिक्शे पार्क किए जाते हैं। छत पर किचन चलाई जाती है। सीढिय़ों के नीचे बिजली के मीटर लगा दिए जाते हैं और फायर सेफ्टी का कोई इंतजाम नहीं किया जाता है। बुधवार देर शाम जब पीजी में आग लगती है, तो कुछ लड़कियां अंदर ही फंसी रह जाती हैं और बड़ी मुश्किल से उनकी जान बचाई जाती है।

अगले दिन जब सवाल उठता है कि ऐसी घटना न हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी है, तो दिल्ली पुलिस, एमसीडी, डीडीए और जिला प्रशासन से लेकर बिजली विभाग और दिल्ली फायर सर्विस तक सब अपना पल्ला झाड़ते हुए नजर आते हैं। हर एजेंसी के अधिकारियों की ओर से यही कहा जाता है कि दिल्ली में चल रहे स्टूडेंट पीजी हाउसों के संबंध में कोई स्पष्ट नियम नहीं बने हैं और इसलिए इस मामले में उनकी कोई सीधी जिम्मेदारी नहीं बनती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि दिल्ली में 700 से ज्यादा पीजी होस्टल चल रहे हैं, लेकिन इन्हें रेगुलेट करने की जिम्मेदारी किसी एजेंसी के पास नहीं है। ऐसे में जब कोई घटना होती है, तो तमाम एजेंसियों के लिए भी जवाबदेही से बचना आसान हो जाता है।

महानगर पालिका के अधिकारियों का कहना है कि उनका काम केवल बिल्डिंग प्लान पास करने का है। फायर डिपार्टमेंट कहता है कि 15 मीटर से ऊंची बिल्डिंग होने पर ही फायर एनओसी लेने की जरूरत पड़ती है। दिल्ली पुलिस की लाइसेंसिंग ब्रांच के अधिकारियों का कहना है कि स्टूडेंट पीजी के लिए दिल्ली पुलिस लाइसेंस जारी नहीं करती है। बिजली विभाग का कहना है कि मकान मालिकों से लगातार अपील की जा रही है कि वे स्टिल्ट पार्किंग से बिजली के मीटर हटा कर उन्हें बाहर लगवाएं। डीडीए और जिला प्रशासन भी नियमों की अस्पष्टता का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं।

पिछले साल दिल्ली सरकार ने स्टूडेंट पीजी को नियमों के दायरे में लाने के लिए एक पहल की थी। इसके तहत पीजी चलाने के लिए दिल्ली पुलिस और फायर विभाग की एनओसी को अनिवार्य किए जाने की योजना थी, ताकि प्रॉपर्टी मालिक पीजी में रहने वाले बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम करें। इस बात पर भी विचार किया गया था कि पहले बिल्डिंग प्लान और लेआउट प्लान की कॉपी जमा करवा के यह देखा जाएगा कि कितने कमरों का इस्तेमाल पीजी के रूप में किया जाएगा, उनमें कितने स्टूडेंट्स के रहने की व्यवस्था की जाएगी, उनकी सुरक्षा के क्या इंतजाम किए जाएंगे और उसी आधार पर एनओसी दी जाए। इस पहल को अमलीजामा पहनाने के लिए दिल्ली पुलिस, दिल्ली फायर सर्विस, एमसीडी और दिल्ली सरकार के गृह विभाग को आपसी सहमति बनानी थी, ताकि दिल्ली पुलिस की लाइसेंस यूनिट पीजी के लिए नियम बना सकें, लेकिन सूत्रों का कहना है कि अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है।

आग लगने से बुधवार को हुए हादसे से मुखर्जी नगर के तमाम पीजी में रह रही लड़कियों के दिलोदिमाग पर डर गहरा गया है। आसपास के बच्चे भी सेफ्टी को लेकर सकते में हैं। जांच में पता चला कि पूरी बिल्डिंग में कहीं भी आग बुझाने वाले उपकरण मौजूद नहीं थे। न ही कोई वेंटिलेशन था। इमरजेंसी एग्जिट गेट भी नहीं था। एक ही गेट से एंट्री और एग्जिट था। बिल्डिंग का मालिक ने किसी और शख्स को पीजी चलाने के लिए एकमुश्त महीने की रकम पर किराए पर दिया हुआ था। पीजी के अंदर प्लाईवुड से अलग-अलग रहने के हिस्से बनाए हुए थे। केयरटेकर के पास प्रॉपर एंट्री रजिस्टर भी नहीं मिला है। पीजी में अधिकतर लड़कियां कॉम्पिटिशन की तैयारी कर रही हैं। हादसे के बारे में दमकल विभाग के एक अफसर ने कहा कि, जिस बिल्डिंग की हाइट 15 मीटर से कम होती है, उसे एनओसी की जरूरत नहीं होती है। इसी का फायदा उठाकर ऐसी इमारतों में एक्टिविटी चलती हैं। मौके की छानबीन में पता चला कि इसकी छत पर किचन थी। सीढ़ी के बराबर में मीटर लगा हुआ था।

 बार-बार लगने वाली आग साफतौर पर रेजिडेंशल एरिया को कर्मशल बनाने की बदइंतजामी, सुरक्षा और पीजी बनाने के नियमों के उल्लंघन को रोकने से सिस्टम की लापरवाही और नाकामयाबी पर इशारा करती है। और सबसे ज्यादा चिंता और आश्चर्य की बात यह है कि यह हालात राष्ट्रीय राजधानी के हैं। मुम्बई, बेंगलुरू, पुणे पहले से पीजी होस्टल के आदी हो चुके हैं। और दूसरी बात ये है कि पुणे को छोड़ दें तो मुम्बई, बेंगलुरू के बाद गुडग़ांव, नोएडा आदि नव विकसित शहरों में पीजी होस्टल की परंपरा है, और वहां भी इस तरह के नियमों की जरूरत है। नव विकसित और कंपनियों के हब बने शहरों में पढऩे या अन्य कोर्स करने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, पर नौकरी करने वाले युवा भी यहां बहुत हैं।

नौकरी वाले युवा थोड़ा बेहतर माहौल देखकर पीजी होस्टल लेते हैं, लेकिन जो बच्चे प्रतियोगिताओं के लिए शहरों में रहते हैं, उनके लिए अधिक किराया देना बड़ी समस्या है, इसलिए वे किसी भी तरह से एडजस्ट करके रहने को मजबूर होते हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं से बचा जा सके, इसके लिए दिल्ली सहित सभी शहरों में पीजी होस्टल के लिए कोई स्थाई प्रावधान बनाए जाने की जरूरत है। जानबूझ कर हमारी युवा शक्ति को इस तरह खतरे में झोंकने का क्या मतलब?

– संजय सक्सेना

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