चंडीगढ़.
भारतीय जनता पार्टी ने दूसरी पार्टियों से बड़े-बड़े दिग्गजों को लाकर ग्रामीण हलकों में उतरने का जो दांव खेला, वह पूरी तरह विफल साबित हुआ है। चार में से तीन सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। इनमें मनप्रीत बादल भी शामिल हैं। इस हार से पार्टी में एक बार फिर से यह बहस छिड़नी तय है कि क्या पार्टी को अपने काडर पर भरोसा करना चाहिए या दूसरी पार्टी की बैसाखियों पर चलना चाहिए।
लोकसभा में मिले थे 18 प्रतिशत वोट
लोकसभा में पार्टी को 18 प्रतिशत वोट मिले थे और इस बार अकाली दल के चुनाव न लड़ने से उम्मीद थी कि इस वोट बैंक के सहारे भाजपा को कुछ न कुछ सफलता जरूर मिलेगी। लोकसभा के मुकाबले इस बार भाजपा के उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार करने में भी कोई दिक्कत नहीं आई जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा था।
हालांकि इस बार धान की खरीद न होने और डीएपी खाद न मिलने से किसानी वर्ग नाराज जरूर था। उन्होंने रस्मी विरोध जरूर किया लेकिन उन्होंने भाजपा उम्मीदवारों के प्रचार में कोई खलल नहीं डाला, इसके बावजूद भाजपा के उम्मीदवार पार्टी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाए। उन्हें लोकसभा में मिले वोट से भी कम वोट मिले।
काडर पर विश्वास न करना पड़ा भारी
खास बात यह थी कि लोकसभा में पार्टी ने अपने काडर के नेताओं को उतारा था लेकिन इन चुनाव में तो सीधे दूसरी पार्टियों से आए उम्मीदवार ही उतारे गए। किसी एक भी सीट पर पार्टी ने अपने काडर पर विश्वास नहीं जताया। बरनाला और गिद्दड़बाहा सीट पर पार्टी को पूरी उम्मीद थी। यहां पर कांग्रेस से भाजपा में आए दो दिग्गज मनप्रीत बादल और केवल ढिल्लों चुनाव लड़ रहे थे। दोनों उम्मीदवारों ने इन सीटों को पहले से क्रमश: चार और दो बार जीत हासिल की है।
गिद्दड़बाहा में बादल को नहीं मिला ज्यादा वोट
गिद्दड़बाहा सीट से मनप्रीत बादल को मात्र 12,227 वोट मिले जबकि लोकसभा चुनाव में किसानों के सबसे ज्यादा विरोध का सामना कर रहे पार्टी के उम्मीदवार हंसराज हंस को 14,850 वोट मिले थे। भाजपा के एक सीनियर नेता ने कहा कि गिद्दड़ाबाहा मंडी भी मनप्रीत बादल को ज्यादा वोट नहीं मिले क्योंकि मंडी के लोग उनकी पुरानी धक्केशाही के कारण काफी नाराज थे। ग्रामीण क्षेत्रों में हमें किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा।
बरनाला सीट पर बच गई जमानत
बरनाला सीट पर पार्टी की जमानत तो बच गई लेकिन उनके उम्मीदवार केवल ढिल्लों को केवल 17,958 वोट मिले थे जबकि लोकसभा चुनाव के दौरान उनके उम्मीदवार अरविंद खन्ना को 19,218 वोट मिले थे। खन्ना का अपना हलका संगरूर है जबकि केवल ढिल्लों बरनाला के ही हैं। इसके बावजूद उनका वोट प्रतिशत लोकसभा के मुकाबले काफी कम हो गया।
चब्बेवाल में जमानत नहीं बचा पाई भाजपा
चब्बेवाल सीट पर पार्टी ने पूर्व अकाली मंत्री सोहन सिंह ठंडल को पार्टी में शामिल करके मैदान में उतार दिया। सोहन सिंह ठंडल को मात्र 8,692 वोट मिले। इससे पहले ठंडल ने शिअद की टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था तब उन्हें यहां से 11,935 वोट मिले थे। इस बार भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने के दौरान न तो भाजपा काडर ने उनका साथ दिया और न ही शिअद वोटरों ने। इसी कारण उनकी जमानत जब्त हो गई।
डेरा बाबा नानक सीट पर भी बुरा हाल
डेरा बाबा नानक सीट पर भी पार्टी ने पूर्व स्पीकर निर्मल सिंह काहलों के बेटे रवि करण काहलों को उतारकर दांव खेला लेकिन यहां भी पार्टी उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई। चार सीटों पर उपचुनाव में से केवल ढिल्लों ही एक ऐसे प्रत्याशी हैं जिन्हें लोकसभा के भाजपा उम्मीदवार से ज्यादा वोट मिले। काहलों को 6,505 वोट मिले जबकि पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी दिनेश बब्बू को 5981 वोट मिले थे।
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