भारत में खेती में क्रांति लाने वाला यह शख्स अब हम लोगों के बीच नहीं है। तभी तो देश में जब भी हरित क्रांति का जिक्र होता है, सबसे पहले एमएस स्वामीनाथन का नाम आता है। देश के बेहतरीन साइंटिस्ट में शुमार होने वाले एमएस स्वामीनाथन अपने पीछे एक पूरी विरासत छोड़ गए हैं। 98 साल के हो चुके स्वामीनाथन ने एक हफ्ते पहले ही चेन्नई में आखिरी सांस ली। हालांकि वो अभी मैदानी तौर पर सक्रिय नहीं थे, लेकिन उनकी मौजूदगी ही देश के लिए मायने रखती थी।
स्वामीनाथ का जन्म 7 अगस्त 1925 को केरल के कुंभकोणम में हुआ था। मोनकोंबू संबासिवन स्वामीनाथन ने भारत में हरित क्रांति की अगुवाई की थी। उनकी तैयार की गई चावल और गेहूं की उन्नत किस्मों से देश में खेती की सूरत पूरी तरह से बदल गई। कई रोगों का सामना कर रहे थे लेकिन इसके बाद भी एक्टिव थे. अपने देश में तो उनका नाम एक तरह से कृषि का पर्याय बन चुका था. कहना चाहिए कि देश में खुशहाल कृषि की जो भी तस्वीर हम सभी के सामने है, उसे लाने वाले वही थे, जो दरअसल कृषि विज्ञानी थे लेकिन जरूरतों और समय ने उन्हें इस काम में ऐसा लगाया कि वो इसके एक्सपर्ट हो गए। देश अगर आज दुनियाभर में कृषि के मामले में सबसे शीर्ष देशों में है और ये क्षेत्र उसकी सबसे बड़ी ताकत है तो इसका श्रेय भारत के कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन को जाता है, जिन्हें भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है.
मूल रूप से वह आनुवांशिक विज्ञान के वैज्ञानिक थे लेकिन जो कृषि की ओर मुड़े और देश के सबसे प्रसिद्ध कृषि विज्ञानी की पहचान बनाई. पूरी दुनिया में उनके काम को सराहना मिली। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा उन्हें आर्थिक पारिस्थितिकी के जनक के रूप में संबोधित किया गया। स्वामीनाथन ने देश में धान की फसल को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में बड़ा योगदान दिया था। इस पहल के चलते पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को काफी मदद मिली थी।
स्वामीनाथन अपने कार्यकाल के दौरान कई प्रमुख पदों पर काबिज रहे थे। वो भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का निदेशक (1961-1972), आईसीआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव (1972-79), कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव (1979-80) नियुक्त किया गया था। स्वामीनाथन को 1987 में प्रथम खाद्य पुरस्कार दिया गया था। स्वामीनाथन जूलॉजी और एग्रीकल्चर दोनों से ग्रेजुएट थे। उन्होंने धान की ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को डेवलप करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत के कम आय वाले किसान ज्यादा फसल पैदा करें। इसके अलावा 1960 के अकाल के दौरान स्वामीनाथन ने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग और दूसरे कई वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च पैदावार वाली किस्म के बीज भी विकसित किए थे। स्वामीनाथन को 1971 में रेमन मैग्सेसे और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें 1967 में पद्मश्री, 1972 में पद्मभूषण और 1989 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में 1972 से 1979 तक और अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में 1982 से 88 तक महानिदेशक रहे।
स्वामीनाथन ने अपने महान मिशन को कायम रखने और स्थायी प्रभाव पैदा करने के लिए, एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने भूख और गरीबी उन्मूलन के लिए अपना अथक प्रयास जारी रखा। फाउंडेशन देश में कृषि के क्षेत्र में आशा की किरण के रूप में कार्य करता है। संस्थान किसानों को ज्ञान और नवीन कृषि तकनीकों से सशक्त बनाता है। स्वामीनाथन ने अपने करियर में प्रशासन में अनेक पदों पर काम किया। किसानों के आत्महत्या के मामलों के बीच किसान संकट को देखने के लिए एक आयोग की स्थापना की गई। आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। आयोग ने अपनी सिफारिशों में सुझाव दिया कि न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) उत्पादन की भारित औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक होना चाहिए।
किसानों के साथ स्वामीनाथन के सीधे काम किया। इससे किसानों की निरक्षरता और औपचारिक शिक्षा की कमी बाधा नहीं बनी। स्वामीनाथन ने भारतीयों की एक पीढ़ी को आधुनिक कृषि की प्रभावशीलता के बारे में ज्ञान प्रदान किया। हालांकि उनके द्वारा स्थापित रिसर्च फाउंडेशन काम कर रहा है और वहां कई कृषि वैज्ञानिक बेहतर काम कर रहे हैं। फिर भी स्वामीनाथन की लाइन को आगे बढ़ाने के लिए समाज और सरकार दोनों का और प्रयास करने होंगे। आज भी किसानों की आत्महत्या का दौर थमा नहीं है। हर पार्टी किसानों की बात करती है, फिर भी उनकी समस्याएं जस की तस हैं। मामूली सुधार होने की बात मानी जा सकती है, लेकिन कोई बड़े सुधार की झलक नहीं मिल रही है। कृषि क्षेत्र को आज एक और स्वामीनाथन की दरकार है।
– संजय सक्सेना