मुंगेर।
शेखपुरा के चर्चित नरसंहार मूडवरिया कांड के सभी 38 अभियुक्त को साक्ष्य के अभाव में शेखपुरा न्यायालय ने बरी कर दिए गए। घटना 1993 के जनवरी महीने में दो जातियों के बीच आपसी वर्चस्व को लेकर हुई थी, जिसमें एक पक्ष के चार और दूसरे पक्ष के एक लोगों की हत्या हुई थी।
इस मामले में महिलाओं के साथ दुष्कर्म तथा एक दर्जन से ज्यादा लोगों के घायल होने के आरोप में 100 से ज्यादा लोगों को अभियुक्त बनाया गया था। इनमें से कई की मृत्यु और कई की रिहाई पहले ही विभिन्न न्यायालयों द्वारा की जा चुकी थी। 30 साल की लंबी न्यायिक कार्रवाई के बाद इस मामले का पटाक्षेप अभियुक्तों की रिहाई के साथ हुआ। न्यायाधीश ने नरसंहार मामले में बच्चू धानुक, रामगुलाम महतो, रामजी महतो, रामनाथ महतो, प्रताप महतो, रामू महतो, जगदीश महतो, रक्षा महतो, विभीषण महतो, पदार्थ उर्फ राम पदारथ महतो, विजय महतो, रामविलास महतो, अवध महतो, चांदो महतो, दुखी महतो, नरसिंह महतो, अनिक महतो, तनिक महतो, प्रकाश महतो, किशोरी महतो, मिथिलेश महतो, बिनो महतो, रूपन महतो, दारो महतो, इंद्रर महतो, अयोध्या महतो, किशोरी महतो, विष्णु देव महतो, लखिंदर महतो, भागीरथ महतो, विष्णु देव महतो, सुखो महतो, चनीरक महतो, रामाश्रय महतो, अर्जुन महतो, सागर महतो और रामबालक महतो को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। दूसरे पक्ष के लोगों को आजीवन कारावास व अर्थदंड सुनाई गई थी। सजा चर्चित मूडवरिया कांड में दूसरे पक्ष के कई लोगों को न्यायालय सजा सुना चुकी है। इसी साल 16 अगस्त को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम मधु अग्रवाल ने हत्या के एक मामले में घाटकुसुम्भा प्रखंड अंतर्गत मुडवरिया गांव के मोती ढाढी को आजीवन कारावास की सजा और 20,000 रुपये का अर्थदंड सुनाई थी। 30 साल पुराने इस नरसंहार के मामले में कानूनी दांव पेच के बाद इसे यह सजा सुनाई गई थी। इस मामले के अन्य अभियुक्त को पहले ही सजा सुनाई जा चुकी थी।
मामला शेखपुरा में हुआ खत्म
बुधवार को चर्चित मूडवरिया कांड के फैसले सुनने को लेकर लोग सुबह से ही शेखपुरा न्यायालय में पहुंचे हुए थे। अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निषेध अधिनियम के विशेष न्यायाधीश मधु अग्रवाल ने खचाखच भरे न्यायालय में अपना निर्णय सुनाया। इस संबंध में अभियुक्तों के अधिवक्ता ने बताया कि 1993 के इस जघन्य नरसंहार का मामला मुंगेर न्यायालय में शुरू हुआ था। यहां जिला न्यायालय की स्थापना के बाद मामले का न्यायिक विचारण यहां शुरू हुआ।
1990 के दौर में जातीय संघर्ष व नरसंहार के मामले बढ़े थे
बता दें कि शेखपुरा में 1990 के बाद जातीय संघर्ष और उसके परिणीत नरसंहार के मामले बढ़ गए थे, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव टाल क्षेत्रों में देखा गया। यह वह दौर था जब अति पिछड़ा व दलितों के बीच उठे जातीय उन्माद में कई नरसंहार हुए, जिसमें तत्कालीन शेखपुरा प्रखंड व वर्तमान में घाटकुसुम्भा प्रखंड के मूडवरिया नरसंहार भी एक है। चर्चित मूडवरिया नरसंहार 1993 में घटित हुई थी। 30 साल पूर्व हुए मूडवरिया नरसंहार में खुलेआम हत्या व महिलाओं के साथ हुए दुष्कर्म की घटना ने देश और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। नरसंहार की घटना की तपिश आज भी लोगों को महसूस होती है।
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