Monday, 16 December

जबलपुर। माता-पिता की देखभाल और भरण-पोषण को एक नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी बताते हुए जबलपुर हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने हाल में सुनाए एक फैसले में दोहराते हुए कहा कि माता-पिता की देखभाल करना संतान का न केवल नैतिक, बल्कि कानूनी जिम्मेदारी है. कोर्ट ने आगे कहा कि मां-बाप का भरण-पोषण करना सिर्फ एक आर्थिक दायित्व नहीं है, बल्कि एक सामाजिक व नैतिक जिम्मेदारी भी है, जिसे निभाना बच्चों का फर्ज है.

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मां-बाप का भरण-पोषण किसी भी परिस्थिति में टाला नहीं जा सकता. यदि कोई संतान माता-पिता द्वारा संपत्ति के असमान वितरण से असंतुष्ट है, तो उसके पास सिविल मुकदमे का रास्ता खुला है, लेकिन वह इस आधार पर भरण-पोषण से मुंह नहीं मोड़ सकता है.

हाई कोर्ट ने मां को 8000 रुपए गुजारा भत्ता देने के फैसले को रखा बरकरार

गौरतलब है हाल में जबलपुर हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकलपीठ ने एक फैसले में चारों बेटों को अपनी मां को 8,000 रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. एकलपीठ ने उक्त फैसला नरसिंहपुर के अपर कलेक्टर द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखते हुए दिया है.

मां को भरण-पोषण देने के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने की थी अपील

दरअसल, मां को भरण पोषण देने से इनकार करते हुए एक याचिकाकर्ता को नरसिंहपुर के अपर कलेक्टर द्वारा मां को भरण-पोषण के लिए 8000 रुपए देने का आदेश पारित किया था, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अपील करते हुए तर्क दिया था कि उसकी मां ने उसे संपत्ति में हिस्सा नहीं दिया, इसलिए वह भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार नहीं है.

माता-पिता की जरूरतों के प्रति बच्चों की जिम्मेदारी एक कानूनी दायित्व है

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के उक्त तर्क को खारिज करते हुए कहा कि माता-पिता की देखभाल और गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी इस पर निर्भर नहीं करती कि बच्चों को कितनी संपत्ति मिली है. यह एक कानूनी दायित्व है जो माता-पिता की जरूरतों के प्रति बच्चों की जिम्मेदारी को दर्शाता है.

नरसिंहपुर के अपर कलेक्टर द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखते हुए जबलपुर हाई कोर्ट ने जारी आदेश में कहा है कि चारों बेटों को अपनी मां को भरण-पोषण के लिए 8000 रुपए महीने देने होंगे और उक्त रकम प्रत्येक बेटे के हिस्से में 2,000 रुपए आएगी.

माता-पिता के भरण-पोषण और कल्याण एक्ट, 2007 के तहत सुनाया फैसला

हाई कोर्ट का यह फैसला माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत सुनाया गया. यह अधिनियम बुजुर्गों और माता-पिता के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाया गया है, ताकि उन्हें अपने जीवन के अंतिम चरण में किसी प्रकार की आर्थिक या सामाजिक कठिनाई का सामना न करना पड़े.

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