Sunday, 8 September

अम्ल (Acid) या तेजाब ऐसे पदार्थ हैं, जिनका स्वाद खट्टा होता है, तथा ये नीले लिटमस को लाल कर देते हैं. कुछ धातुओं के साथ क्रिया करके ये हाइड्रोजन गैस बनाते हैं. क्षारों के साथ क्रिया करके ये लवण बनाते हैं. अम्ल मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है: अकार्बनिक अम्ल और कार्बनिक अम्ल. कार्बनिक अम्लों में विशेषकर कार्बन होता है और अकार्बनिक अम्लों में कार्बन नहीं होता. कोई भी अम्ल पानी में घुलने पर हाइड्रोजन आयन पैदा करता है. नमक गंधक और शोरे के अम्ल अकार्बनिक अम्लों की श्रेणी में आते हैं. ये बहुत ही तेज अम्ल हैं. फार्मिक अम्ल, ऐसिटिक अम्ल आदि कार्बनिक अम्लों के उदाहदण हैं. ये अम्ल तेज नहीं होते.

कार्बनिक अम्लों का त्वचा पर अधिक प्रभाव नहीं होता, लेकिन अकार्बनिक अम्ल त्वचा के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं. ये अम्ल यदि शरीर पर गिर जाएं तो त्वचा को बुरी तरह जला देते हैं. त्वचा पर गहरे घाव बन जाते हैं. क्या तुम जानते हो कि अम्लों से शरीर क्यों जल जाता है?

अकार्बनिक अम्लों में पानी सोखने का गुण होता है. जब ये अम्ल पानी को करते हैं, तो इस क्रिया में काफी गर्मी पैदा होती है. चूंकि हमारे की कोशिकाओं में पानी होता है और जैसे ही शरीर पर नमक, गंधक या शोरे का तेज अम्ल गिरता है, तो यह कोशिकाओं में पानी को अवशोषित करके काफी मात्रा में ऊष्मा पैदा करता है. परिणाम यह होता है कि कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं. त्वचा की कोशिकाओं के नष्ट होने की इसी क्रिया को हम जलना कहते हैं, अम्लों के जलने से गहरे घाव हो सकते हैं. ठीक हो जाने पर जले हुए

स्थान पर छोटी-छोटी गांठें और सफेद निशान बन जाते हैं, यद्यपि त्वचा पर गिरने पर अम्ल इसे जला देते हैं, लेकिन फिर भी अम्ल हमारे शरीर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. हमारे पेट में नमक का अम्ल होता है, जो एंजाइमों की सहायता से भोजन को पचाने का काम करता है. पेट में इस अम्ल के आवश्यकता से अधिक बनने से अल्सर हो जाता है. यह वास्तव में अम्ल द्वारा पेट अंदर की सतह के जल जाने से ही होता है. अमीनो अम्ल हमारे शरीर के लिए प्रोटीन के रूप में काम आते हैं. हमारे शरीर को आठ प्रकार के अमीनो अम्लों की आवश्यकता होती है.

अम्लों का महत्व आज के उद्योगों में बहुत अधिक है. लाखों टन गंधक अम्ल हर वर्ष संसार में बनाया जाता है और उद्योगों में प्रयोग होता है. अम्लों से खाद, रंग, रोगन, प्लास्टिक और अनेक पदार्थ बनाए जाते हैं. अम्लों में गंधक के अम्ल का विशेष स्थान है, क्योंकि इसका उपयोग सर्वाधिक है. एक्वारीजिया जो कि नमक और शोरे के अम्ल को 2:1 के अनुपात में मिलाकर बनाया जाता है, सोने और प्लेटीनम जैसी धातुओं को घोलने के काम आता है. अम्ल का प्रयोग लोहे के जंग को हटाने के कामों भी होने लगा है.

अम्लों के साथ काम करने वाले लोगों को विशेष सावधानियां बरतनी पड़ती हैं. वे विशेष प्रकार के कपड़े पहनते हैं, जिससे अम्ल के गिरने से त्वचा को जलने से बचाया जा सके. हाथों में वे विशेष प्रकार के दस्ताने पहनते हैं. अम्लों के प्रयोग में एक विशेष सावधानी यह बरतनी होती है कि अम्लों को पानी में धीरे-धीरे डाल कर घोलना चाहिए. अम्ल में पानी कभी भूलकर भी नहीं डालना चाहिए. ऐसा करने से बहुत ऊष्मा पैदा होती है. अम्ल से जल जाने की स्थिति में त्वचा को बहुत सारे पानी से धो डालना चाहिए और उसके बाद अमोनिया के हल्के घोल से धोना चाहिए. ऐसा करने से अम्ल उदासीन हो जाता है. यदि अम्ल आंखों पर गिर गया हो तो आंखों पर पानी के छपके लगाने चाहिए और फिर सोडियम बाइकार्बोनेट के घोल से धोना चाहिए, आंखों पर अमोनिया का घोल प्रयोग करना हानिकारक होता है.

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