महाकवि कालिदास भारत के महानतम कवि और नाटककार थे. संस्कृत भाषा में इनकी बराबरी करने वाला दूसरा कोई भी कवि अब तक नहीं हुआ है. इनकी तुलना आमतौर पर इंग्लैंड के महान नाटककार और कवि शेक्सपीयर (Shakespeare) से की जाती है. कालिदास की रचनाएं विश्व भर में प्रसिद्ध हैं.
कालिदास जीवन परिचय (Kalidas Biography in Hindi)
कालिदास के बचपन तथा मां-बाप के विषय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. एक मत यह है कि छठी शताब्दी में कुमारदास के राज्यकाल में लंका में इनका देहांत हुआ था. एक किंवदंती के अनुसार कालिदास उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक थे. यह निश्चय है कि महान कवि अग्निमित्रा साम्राज्य (ई.पू. 170) और अइहोल साम्राज्य काल (634 ईस्वी) के बीच में हुए थे. बहुत से विद्वानों के अनुसार यह माना जाता है कि कालिदास चंद्रगुप्त द्वितीय (380-415 ईस्वी) के दौरान हुए थे.
कहा जाता है कि कालिदास जन्म से ब्राह्मण थे और बाल्यावस्था में ही इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था इनका लालन-पालन एक ग्वाले ने किया था. वह बचपन से ही एकदम मूर्ख थे और पढ़े लिखे बिल्कुल नहीं थे. युवा होने पर भी कालिदास इधर- उधर ऐसे ही घूमा करते थे. विद्योत्तमा नाम की कन्या ने प्रतिज्ञा की थी कि जो विद्वान उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा वह उसी के साथ विवाह करेगी. विद्योत्तमा ने अनेक विद्वानों को हरा दिया. जिससे समाज का एक वर्ग उससे नाराज हो गया. अतः उन्होंने कालिदास जैसे मूर्ख को सामने रखकर विद्योत्तमा को मौन शास्त्रार्थ कपट से हराकर उसका विवाह कालिदास के साथ करा दिया. विद्योत्तमा जल्दी ही कालिदास के विषय में जान गई. उसने उन्हें अपमानित करके घर से निकाल दिया. घर से निकलकर जंगलों में जाकर उन्होंने अखंड अध्ययन किया और जल्दी ही सरस्वती के वरदान से परम विद्वान हो गये.
विद्वान हो जाने के बाद कालिदास घर लौट आये. वह एक सभ्य और सुसंस्कृत व्यक्ति थे. उनका स्वभाव हंसमुख और विनोदी था. नारी जाति के प्रति उनमें सम्मान की भावना थी. उनके काव्य से उनका प्रकृति प्रेम झलकता है जिस विषय का भी उन्होंने वर्णन किया है उसकी छोटी से छोटी बात को प्रकट कर दिया है.
कालिदास की रचनाएं
कालिदास सात पुस्तकों की रचना की ये सातों पुस्तकें विश्वप्रसिद्ध, जिनमें से तीन नाटक हैं और चार काव्य हैं. नाटकों में अभिज्ञान शाकुंतलम्, विक्रमोर्वशी, मालविकाग्निमित्र,
कालिदास के तीन नाटक हैं: अभिज्ञान शाकुंतलम्, विक्रमोर्वशी, मालविकाग्निमित्र
- ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है. यह विश्वविख्यात नाटक है, जिसमें आठ अंकों में दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम- विवाह की कथा का वर्णन है.
- ‘विक्रमोर्वशी’ उनका दूसरा नाटक है. इसमें पांच अंक हैं. इसमें राजा पुरुरवा तथा उर्वशी के प्रेम और उनके विवाह की कथा है.
- ‘मालविकाग्निमित्र’ इनका तीसरा नाटक है. जिसमें पांच अंक हैं. इसमें विदिशा के राजा अग्निमित्र तथा मालवदेश की राजकुमारी मालविका का प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है.
कालिदास के चार काव्यग्रंथ हैं: रघुवंश, मेघदूत, कुमारसंभव और ऋतुसंहार,
- ‘रघुवंश’ उन्नीस सर्गों में लिखा गया महाकाव्य है. इसमें भगवान रामचंद्र के पूर्वज महाराज रघु के जन्म से लेकर उसके बाद के सभी राजाओं की कथा है.
- ‘मेघदूत’ एक खंडकाव्य है. इसमें एक वियोगी यक्ष का अपनी विरहिणी पत्नी के पास बादल द्वारा संदेश भेजने का बड़ा ही सुंदर वर्णन है.
- ‘कुमारसंभव’ सत्रह सर्गों का महाकाव्य है, जिसमें शिव-पार्वती के विवाह, कुमार स्वामि कार्तिकेय का जन्म तथा कुमार द्वारा तारकासुर के वध की कथा है.
- ‘ऋतुसंहार’ में छः ऋतुओं का बड़ा ही मनोरम वर्णन है.
कालिदास के साहित्य से उस समय के सामाजिक और सामंतशाही जीवन की झलक मिलती है. संस्कृत की सेवा में कालिदास का योगदान श्रेष्ठतम है. शायद ही आने वाले समय में भी संस्कृत भाषा का इतना महान कवि कभी पैदा होगा. कालिदास के विषय में यह उक्ति सर्वथा सच है – न भूतो न भविष्यति.