कन्फ्यूशियस (551-479 ईसा पूर्व) प्राचीन चीन का एक महान विचारक और नैतिक गुरु थे
आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व जब महात्मा बुद्ध और जैन तीर्थंकर महावीर अपने-अपने धर्मसूत्रों का प्रचार भारत में कर रहे थे, लगभग उसी काल में, संत कन्फ्यूशियस चीन में धर्म की पुनर्स्थापना करने का प्रयास कर रहे थे. इसे एक विडंबना ही माना जाएगा कि जहां जैन और बौद्ध धर्म को भारत में तत्काल मान्यता प्राप्त हुई, कन्फ्यूशियस के धर्म को मान्यता लगभग 500 वर्ष बाद मिली.
कन्फ्यूशियस अपने समय के महान नैतिकवादी विचारक और समाज-सुधारक थे. विश्व के चोटी के दार्शनिकों में उनकी गणना होती है. उनका जन्म ईसा से 551 वर्ष पूर्व चीन के शानतुंग प्रदेश में हुआ था. उनका जन्म का नाम कुंग फुत्जू था. जो बाद में कैथोलिक ईसाइयों द्वारा बिगाड़कर कन्फ्यूशियस बोला जाने लगा. अब संसार उन्हें इसी नाम से जानता है.
आरंभ काल से ही वे बहुत अध्ययनशील थे. 20 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने चीन के लगभग सभी धर्मग्रंथों का अध्ययन कर डाला, जिससे उनकी नैतिकता संबंधी धारणाएं बहुत स्पष्ट और दृढ़ हो गई. उनके समय में चीन की जनता बहुत गरीब थी. लोग आपस में बहुत लड़ते-झगड़ते थे. यों तो चीन पर एक सम्राट का शासन था, पर वह नाममात्र का ही राजा था. यानी लगभग शक्तिहीन था. साराराज-काज रियासतों के लालची और निर्दयी सामंतों के हाथ में था. इनके मन में प्रजा की भलाई और प्रगति का कोई विचार न था. कन्फ्यूशियस को इस सरकार से गहरी वितृष्णा हुई, उन्होंने धर्मग्रंथों से प्राप्त शिक्षाओं को जनता और राजकुमारों को देना शुरू कर दिया. जो भी उनके पास आता वे उसे नैतिकता-संबंधी शिक्षा देते. 2500 वर्ष पहले दी गई उनकी शिक्षाएं आज भी पहले की तरह ही सार्थक हैं. चीनी सभ्यता के निर्माण में उनका योगदान रहा है.
कन्फ्यूशियस के बचपन के विषय में बहुत कम जानकारी प्राप्त है, पर इतना अवश्य माना जाता है कि वे ऊंचे कुल के थे, जो निर्धन हो गया था. उनके माता-पिता का, बचपन में ही देहांत हो गया था. बचपन के दिन उन्होंने बहुत गरीबी में बिताए, उनका सारा अध्ययन उनके अपने प्रयास का फल था, जिसके आधार पर वह दुनिया के श्रेष्ठतम विद्वानों में गिने जाते हैं. 19 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हुआ.
विवाह के तीन वर्ष बाद ही उन्होंने नैतिक शिक्षाओं का प्रचार शुरू कर दिया. वह इन्हें ‘सुखी जीवन बिताने के तरीके’ कहा करते थे. उनका कहना था कि’ औरों से वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम स्वयं से कराना पसंद करते हो और अपने पड़ोसी से उतना ही प्यार करो जितना तुम स्वयं से करते हो’. वे स्वभाव से इतने विनीत थे कि हमेशा यही कहते थे कि मैं कुछ नया नहीं सिखा रहा, यह सब हमारे धर्मग्रंथों में लिखा है.
कुछ वर्ष वे ‘लू’ (Lu) नामक राज्य के सरकारी पदाधिकारी भी रहे. उन दिनों वे समाज-सुधार का कार्य अधिक आसानी से कर सके. वे अपने विचारों को कार्यरूप देने के लिए अलग-अलग प्रकार के प्रयोग किया करते थे. कुछ सालों तक वे अपने प्रदेश के गवर्नर भी रहे. उस काल में, ऐसा माना जाता है कि उन्होंने चोर- लुटेरों का अपने प्रदेश से सफाया कर दिया था और लोगों का जोवन-स्तर बेहतर बना दिया था. प्रशासन में नियुक्त लोगों को सुधारने का भी उन्होंने भरपूर प्रयास किया. ऐसा भी कहा जाता है कि कन्फ्यूशियस के विचारों से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें मंत्री बना दिया था. लेकिन समय बीतते-बीतते उन्हें महसूस हुआ कि बुराई की जड़ समाज में बहुत गहरी है. कोई भी एक आदमी पूरे समाज को नहीं सुधार सकता. सरकार में अधिकांश लोग भ्रष्ट और अत्याचारी हैं. जनता गरीबी के कारण पथभ्रष्ट और अनैतिक है. जब बहुत प्रयास करने पर भी इन सब बुराइयों को दूर करने में उन्होंने स्वयं को असफल पाया तो 54 वर्ष की अवस्था में सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया. अगले 13 वर्ष वे पूरे चीन में एक ऐसे आदमी की
तलाश में घूमते रहे, जो उनकी शिक्षाओं को सही-सही समझ सके और लोगों को समझा सके. पर निराशा ही उनके हाथ लगी और 479 ई. पू. में इस निराश संत ने 71 वर्ष की आयु में देह त्याग दी. उसके बाद कन्फ्यूशियस के शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को लुन यू (Lun Yo) नामक पुस्तक में संग्रहीत किया.
कन्फ्यूशियस अपने जीवन-काल में सफल नहीं हो पाए, पर उनके मरने के 500 वर्ष के अंदर ही उनके विचारों को पूरे चीन ने ग्रहण किया. मंदिरों में वे चंद्र-सूर्य की तरह पूजे जाने लगे. चीन में कन्फ्यूशियस धर्म के अनुयायी आज भी हैं और आज भी उनकी शिक्षाएं ‘सुखी जीवन कैसे बिताएं’? का रहस्य समझाती हैं.