जब से चिकित्सा विज्ञान में शल्य चिकित्सा का आरंभ हुआ है, कई तरह की जड़ी-बूटियां, गैस, तेल और दवाइयां दर्द से छुटकारा पाने के लिए प्रयोग होती रही हैं. लेकिन इनमें से कोई भी औषधि पूरी तरह सफल नहीं हुई. इसलिए आपरेशन किसी भी मरीज के लिए बेहद दर्दनाक सिद्ध होता रहा है. कभी-कभी तो इसमें होने वाले दर्द और सदमें से मरीज की मौत तक हो गई है. पर जब से बेहोश करने की औषधियों का आधुनिक विज्ञान ने आविष्कार किया है, इस क्षेत्र में अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है.
सबसे पहले आपरेशन में बेहोश करने वाली दवा का इस्तेमाल
बेहोश करने वाली दवा एक ऐसा पदार्थ है, जो व्यक्ति में से महसूस करने की शक्ति अस्थायी तौर पर समाप्त कर देता है. 1799 में एक अंग्रेज रसायनशास्त्री सर हम्फ्री डेवी काफी मात्रा में’ लॉफिंग गैस’ (Nitrous Oxide) सूंघ गए तो उन्हें इससे बेहोशी आ गई. डेवी ने अपने इस अनुभव को प्रकाशित कराया और 1844 में संयुक्त राज्य अमेरिका के होरेस वेल्स (Horace Wells) ने दांतों का पहला आपरेशन नाइट्रस ऑक्साइड से बेहोश करके किया, इससे दो साल पहले यानी 1842 में क्राफर्ड डब्ल्यू. लौंग ने ईथर को संज्ञाहारी औषध की तरह प्रयोग करते हुए एक आपरेशन किया था, जिसमें कोई दर्द नहीं हुआ था. 1847 में बलोरोफार्म को बेहोश करने की दवा घोषित किया गया. इस प्रकार शल्य चिकित्सकों ने बिना दर्द के लंबे से लंबे आपरेशन करने के लिए बेहोश करने की औषधियों का आविष्कार किया.
आज कई तरह की बेहोश करने की औषधियों का विकास हो चुका है. इनका प्रयोग दो तरह से होता है: पूरे शरीर पर या शरीर के किसी विशेष हिस्से पर. दूसरी प्रकार में शरीर के किसी एक हिस्से को सुन्न कर दिया जाता है. इसमें जिस हिस्से पर आपरेशन करना होता है, उस तक संवेदों को लाने वाले विद्युत-संवेगों का रास्ता रोक दिया जाता है. यानी उस स्थान पर इंजेक्शन लगाया जाता है. इस तरह की पहली सुम्न करने की औषधि कोकीन थी. सन् 1905 में प्रोकेन नाम की औषध इससे बेहतर सिद्ध हुई. प्रोकेन से बनी अनेक औषधियां जैसे लिग्नोकेन इत्यादि आजकल प्रयोग की जाती हैं.
सामान्य संज्ञाहारी औषधियां पूरे शरीर को अचेत कर देती हैं. नाइट्रस ऑक्साइड, ईथर और क्लोरोफार्म इसी प्रकार की बेहोश करने की औषधियां हैं. हाल ही में विकसित औषधि हैलोथेन भी इसी श्रेणी में आती है. सूंघने के कुछ सेकेंड बाद इनका प्रभाव होने लगता है. पर इनको नाक पर से हटाने के साथ ही इनका प्रभाव होने लगता है. अब इसकी बजाय एथरेन (Ethrane) का उपयोग किया जाता है, क्योंकि हैलोथेन का जिगर पर खराब असर पड़ता है.
सारे शरीर के बेहोश होने की दशा में मरीज की सांस को बाहर से कंट्रोल किया जा सकता है. इसके दो कारण है. पहला यह कि यह औषधि दिमाग के उस हिस्से को सुन्न करती है, जो आदमी की सांस को कंट्रोल करता है.
दूसरे, कुछ आप्रेशनों में मरीज की मांसपेशियों को दौला छोड़ना जरूरी होता है, जिसके लिए कुरारी नाम की एक दवा मरीज को दी जाती है.
एनेस्थेटिस्ट कौन होता है?
एनेस्थेटिस्ट (Anaesthetist) उस व्यक्ति को कहते हैं, जो यह बताता है कि किस आपरेशन में कितनी मात्रा में बेहोशी की दवा दी जाए, आपरेशन के समय एक एनेस्थेटिस्ट हमेशा ही उपस्थित रहता है.