Sunday, 8 September

बहुरूपदर्शी (Kaleidoscope) प्रकाशीय कालीनों, दीवारों और रंगीन कपड़ों पर छपाई के लिए सुंदर डिजाइन पैदा करने के काम आता है. इसका आविष्कार सन् 1816 में स्काटलैंड के सर डेविड बूस्टर (Sir David Brewster) नामक भौतिकशास्त्री ने किया था. सन् 1817 में उन्होंने इसे एक खिलौने के रूप में पेटेंट कराया था.

बहुरूपदर्शी झुके हुए समतल दर्पणों से होने वाले परावर्तनों से बनने वाले प्रतिविम्बों के सिद्धांत पर कार्य करता है. यदि 10° पर झुके हुए दो समतल दर्पणों के बीच कोई वस्तु रख दी जाए तो उसके तीन प्रतिविग्य बनते हैं. इसी प्रकार 60° पर झुके हुए दो समतल दर्पणों के बीच रखी वस्तु से आने काली किरणों के परावर्तन द्वारा पांच एक जैसे प्रतिक्सि अनते हैं. सुके हुए दर्पणों से होने वाले अनेक परावर्तनों से बनने वाले प्रतिवियों के इसी सिद्धांत पर बहुरूपदर्शी का निर्माण किया गया है.

बहुरूपदर्शी में समतल दर्पणों की पट्टियां काम में लाई जाती हैं. पट्टियां एक दूसरे के साथ 60 अंश के कोणों पर झुकी होती हैं. इन दर्पणों को एक बेलनाकार नली में लगा दिया जाता है. गली का एक सिरा कांच की एक पिसी हुई प्लेट से बंद कर दिया जाता है और दूसरा सिरा कार्ड बोर्ड के टुकड़े में एक छोटा-सा छेद करके बंद कर दिया जाता है. तीन दर्पणों के बीच में रंगीन कांच या चूड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़े डाल दिए जाते हैं. जब गते में हुए छेद से इन टुकड़ों को देखा जाता है, तो दर्पणों द्वारा अनेक परावर्तनों से बने हुए इन टुकड़ों के प्रतिबिंब दिखाई देते हैं. ये प्रतिबिंब बहुत ही सुंदर रंगीन डिजाइनों के रूप में दिखाई पड़ते हैं.

जब बहुरूपदर्शी को घुमा दिया जाता है, तो कांच के टुकड़ों की स्थिति बदल जाती है. तदनुसार प्रतिविव का रूप भी बदल जाता है और हमें एक नया डिजाइन दिखाई देने लगता है. इस प्रकार बहुरूपदर्शी की नलिका को घुमाने से असंख्य मनमोहक डिजाइन बनाए जा सकते हैं.

अधिकतर बहुरूपदर्शियों में प्रयोग आने वाली नली की लंबाई लगभग 25 सेमी. और व्यास 5 से 8 सेमी, होता है. यह बच्चों का बड़ा ही दिलचस्प खिलौना है, लेकिन डिजाइन बनाने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी उपकरण भी है.

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