ल्यूकेमिया (Leucamia) या ब्लड-कैंसर रक्त-गड़बड़ी होने के कारण होने वाला एक घातक रोग है. यह स्त्री-पुरुषों दोनों में किसी भी उम्र में हो सकता है. ब्लड कैंसर क्यों होता है, इसका कारण अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है. क्या आप जानते हैं कि इस घातक बीमारी में क्या होता है?
रक्त हमारे शरीर के हर भाग में प्रवाहित होकर जीवन का संचार करता रहता है. रक्त के अवयवों का अपना-अपना विशेष कार्य है. रक्त में सबसे अधिक संख्या लाल रक्त कोशिकाओं की होती है. उसके बाद श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या होती है. लाल रक्त-कोशिकाएं सारे शरीर में स्थित ऊतकों को ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करती हैं. श्वेत रक्त कोशिकाओं पर शरीर को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी है. श्वेत रक्त- कोशिकाओं का निर्माण मुख्य रूप से अस्थि मज्जा अर्थात् बोन-मैरो (Bone Marrow) और लसीका ग्रंथि में होता है.
ल्यूकेमिया रोग में कुछ ऐसी असामान्यता पैदा हो जाती है कि श्वेत रक्त कोशिकाएं ऊतकों में बनने लगती हैं. ये अतिरिक्त उत्पादित श्वेत रक्त कोशिकाएं रक्त- संरचना के अनुपात को असाधारण रूप से बिगाड़ देती हैं. ल्यूकेमिया से पीड़ित व्यक्ति में स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में 30 से 60 गुना तक अधिक श्वेत रक्त-कोशिकाएं जाती हैं. के लाल रक्त- कोशिकाओं के उत्पन्न होने का अनुपात बहुत कम हो जाता है, जिसके कारण रक्तक्षीणता हो जाती है.
शरीर में विद्यमान लिंग-कोशिकाएं भी असाधारण व्यवहार करने लग जाती हैं. पीड़ित व्यक्ति के संक्रमण की स्थिति में कभी-कभी नाक, मसूड़ों और शरीर के आंतरिक अवयवों से रक्त स्राव होने लगता है. लसीका ग्रंथियां और तिल्ली में सूजन आ जाती है. रोगी को बुखार और पैरों में दर्द होने लगता है.
ब्लड-कैंसर के दो मुख्य प्रकार हैं- माइटोजेनस तथा लिम्फेटिक. दोनों ही अतिघातक या चिरकालिक रोग हैं. घातक अवस्था में यह रोग कुछ सप्ताह या महीनों में ही रोगी को मौत की गोद में सुला देता है, जबकि दीर्घकालिक अवस्था में रोगी तीन से दस वर्ष तक की अवधि में धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ता है.
चिकित्सा-विज्ञान ने ल्यूकेमिया के उपचार में कुछ हद तक प्रगति कर ली है. असाधारण रूप से बढ़ने वाली श्वेत कोशिकाओं को औषधि से नष्ट कर रोगी का उपचार एक्स-किरणों (chemotherapy) और रेडियोएक्टिव आइसोटोप्स (रेडियोधर्मी समस्थानिक) द्वारा किया जाता है. कभी-कभी डॉक्टरों को रोगी को रक्त देना पड़ता है. एक्स-किरणों के उद्भासन और परमाणु विकिरण के प्रभाव से भी ल्यूकेमिया रोग का संक्रमण होते देखा गया है. कुछ पशुओं में यह रोग वाइरस के कारण भी होते देखा गया है. लेकिन मनुष्य में यह रोग वाइरस के कारण होता है, इसकी अब तक पहचान नहीं हो सकी है.
ल्यूकेमिया के लिए बोन-मैरोचिकित्सा का आविष्कार किया जा चुका है. इस रोग के लिए यह काफी सफल सिद्ध हुई है.