Sunday, 8 September

मास स्पेक्ट्रोग्राफ (Mass Spectrograph) पदाथों के विश्लेषण के लिए काम आने वाला बहुत ही उपयोगी उपकरण है. इससे किसी पदार्थ में उपस्थित विभिन्न प्रकार के अणुओं और परमाणुओं का तो पता चलता ही है, साथ ही उनकी मात्रा का भी पता लग जाता है. विद्युत और चुंबकीय बलों द्वारा इस यंत्र में विभिन्न द्रव्यमानों के आयनों को अलग कर लिया जाता है. पदार्थ विश्लेषण के इस यंत्र का अपना ही महत्व है.

मास स्पेक्ट्रोग्राफ किस प्रकार कार्य करता है?

सबसे पहला मास स्पेक्ट्रोग्राफ ब्रिटेन के वैज्ञानिक विलियम फ्रांसिस आस्टन ने विकसित किया था. उन्हें इस विकास के लिए सन् 1922 का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. इसके बाद कई दूसरे वैज्ञानिकों ने जैसे डॅपस्टर, बेनब्रिज, नीर आदि ने कई प्रकार के मास स्पेक्ट्रोग्राफ विकसित किए, लेकिन ये सभी आस्टन द्वारा विकसित उपकरण के विकसित रूप मात्र थे.

मास स्पेक्ट्रोग्राफ से किसी पदार्थ का अध्ययन करने के लिए पहले उसे गर्म करके गैस में बदला जाता है. इस गैस को एक निर्वात-कक्ष से गुजारा जाता है. वाष्प पर यहां इलेक्ट्रोनों की बौछार की जाती है, जिससे पदार्थ के परमाणु और अणु आयनों (Ions) में बदल जाते हैं. इन आयनों को विद्युत क्षेत्र से गुजार कर त्वरित किया जाता है. इसके बाद चुंबकीय क्षेत्र से गुजारा जाता है. चूंकि ये आयन आवेशित होते हैं। अतः ये चुंबकीय क्षेत्र द्वारा अपने रास्ते विचलित हो जाते हैं.

धनात्मक आवेशित आयन एक ओर विचलित होते हैं, तो ऋणात्मक दूसरी ओर. विचलित होना आयनों के द्रव्यमान पर निर्भर करता है. आयन जितने अधिक भारी होते हैं, उतने ही कम विचलित होते हैं. इस प्रकार अलग-अलग द्रव्यमान के आयन एक दूसरे से अलग हो जाते हैं. इन आयनों को अब एक फोटोग्राफिक प्लेट पर डाला जाता है. अलग- अलग आयन प्लेट पर अलग-अलग प्रभाव पैदा करते हैं. इस फोटोप्लेट से यह पता लगा लिया जाता है कि अमुक प्रकार के कितने आयन हैं.

मास स्पेक्ट्रोग्राफ का प्रयोग भूगर्भशास्त्र, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान तथा नाभिकीय भौतिकी में हो रहा है. आइसोटोप अलग करने के लिए यह बहुत ही उपयोगी उपकरण है. आस्टन ने स्वयं प्राकृतिक रूप से मिलने वाले 287 आइसोटोपों में से 212 आइसोटोपों का पता लगाया था. मास स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग वेक्यूम लीक डिटेक्टर (Vacuum Leak Detector) के रूप में भी किया जाता है.

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