मध्य प्रदेश संस्कृति, साहित्य, शौर्य, वीरता व भक्ति से समृद्ध है। प्रदेश की मिट्टी में कई महान राजाओं, साहित्यकारों व विद्वानों ने जन्म लिया और मध्य प्रदेश का नाम विश्व पटल में रोशन किया है। मध्य प्रदेश में साहित्य अति प्राचीन काल से फलता फूलता रहा है। यहां के साहित्य ने न केवल रचना काल बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को जीवन जीने की राह दिखाई है। प्राचीन काल के अलावा भी मध्य प्रदेश में कई श्रेष्ठ कवियों का जन्म हुआ, जिन्होंने अपनी रचनाओं से जनमानस को दिशा दिखाई। इन कवियों की रचनाओं में प्रदेश की संस्कृति, कला, वीरता और भक्ति भाव परिलक्षित होता है।
मध्य प्रदेश के कवि
मध्यप्रदेश में जन्मे इन साहित्यकारों ने हिन्दी साहित्य के जगत विशेष छाप छोड़ी उनकी रचनाओं के लिए उन्हें हिन्दी साहित्य के साथ ही भारत के सर्वश्रेष्ठ सम्मानों से नवाजा गया।
कालिदास
संस्कृत के महान विद्वान व कवि कालिदास उज्जैन के महान राजा विक्रमादित्य के नव रत्नों में से एक थे। कालीदास की विद्वता को देखते हुए उन्हें भारत का शेक्सपियर कहा जाता है।कालिदास ने संस्कृत भाषा में कई रचनाएं रची हैं।इनकी रचनाओं का अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में किया गया है।
अटल बिहारी वाजपेयी
ग्वालियर में 25 दिसंबर 1927 में जन्में अटल बिहारी वाजपेयी देश के 10 वें प्रधान मंत्री बने। उन्हें एक राजनेता या प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं बल्कि एक साहित्य प्रेमी के रूप में भी पहचाना जाता है। उन्हें आर्ट में भी महारत हासिल थी। उन्होंने सामाजिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक उत्थान के लिए भी विशेष कार्यों के लिए जाना जाता है।इनमें बिन्दु – बिन्दु विकारा 1997, डिसिसिव डेस 1999 और हील द वुंडस शामिल हैं।
वाजपेयी ने आसाम ट्रेजेडी को 1983 में सांसद में उठाया। उन्होंने 4 पुस्तके लिखीं। इनमें इंडियाज फॉरेन पॉलिसी : न्यू डायमेंशन 1997, आसाम प्रॉब्लम रिप्रेशन नो सॉल्यूशन 1981, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, चुने हुए भाषण 2000 और वेल्यूज, विजन और वर्सेस ऑफ वाजपेयी : इंडियाज मेन ऑफ डेस्टिनी 2001 शामिल हैं। उनकी कविताओं को लेकर भी वे काफी उत्साहित रहे। उनकी लिखी कविताएं व्यापक स्तर पर सराही गई। उन्होंने 7 काव्य संग्रह रचे। इनमें से दो नई दिशा और संवेदना की कविताओं को स्वर्गीय जगजीत सिंह ने गाया और एलबम तैयार किया। जितना उन्हें बेहतर प्रधानमंत्री और राजनेता के रूप में जाना जाता है। उतना ही उनके लेखन के रूप में भी उन्हें सम्मान दिया जाता है।
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माखनलाल चतुर्वेदी
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फेका मातृ-भूमि पर शीश चड़ाने जिस पथ पर जावे वीर अनेक माखनलाल चतुर्वेदी
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित बाबई गांव में जन्मे माखनलाल चतुर्वेदी का हिन्दी साहित्य में विशेष योगदान रहा है।वे एक लेखक, निबंधकार, कवि, नाटककार और पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। एक साधारण बच्चा जो 16 साल की उम्र में ही स्कूल शिक्षक बन गया। फिर कुछ बड़ा हुआ तो नेशनल जर्नल्स प्रभा, प्रताप और कर्मवीर में संपादक बने। ब्रिटिश युग के पत्रकार पंडित जी के लिए कहा जाता है कि उनकी कलम हमेशा समाज में पनप रहे शोषण के खिलाफ उठी। समाज में पसरी असमानता और भेदभाव को खत्म कर समानता स्थापित करने के लिए उठी। उनकी विशेष रचनाओं में दीप से दीप जले,साहित्य देवता,युग चरण, कैसा चाद बना देती है आदि रचनाएं शामिल हैं।
हिन्दी लेखन के लिए उन्हें उनकी रचना तरगिनी के लिए 1955 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।1963 में पद्म भूषण से सम्मानित किए गए। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में उनके सम्मान में जर्नलिज्म कॉलेज शुरू किया गया। मध्यप्रदेश कल्चरल काउंसिल यानी मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी भी उन्हीं के सम्मान में शुरू की गई। जो 1987 से आज तक हर साल माखनलाल चतुर्वेदी समारोह का आयोजन करती है। उन्हीं के सम्मान में कवियों को बेस्ट पोएट्री के लिए माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
पंडित कवि प्रदीप
कवि प्रदीप भारतीय कवि एवं गीतकार वे जो देशभक्ति गीत ऐ मेरे वतन के लोगों की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धाजलि में ये गीत लिखा था। कवि प्रदीप का मूल नाम ‘रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी’ था । उनका जन्म मध्य प्रदेश प्रांत के उज्जैन में बड़नगर नामक स्थान में हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया।पांच दशक के अपने पेशे में कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे।
नरेश मेहता
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हिन्दी के यशस्वी कवि नरेश मेहता उन शीर्षस्थ लेखकों में शामिल थे जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि के लिए जाने जाते थे। नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नई व्यंजना के साथ नया आयाम दिया। रागात्मकता, संवेदन और उदात्तता उनकी सर्जना के मूल तत्त्व है,जो उन्हें प्रकृति और समूची सृष्टि के प्रति पर्युत्सुक बनाते हैं। आर्श परम्परा और साहित्य को नरेश मेहता के काव्य में नई दृष्टि मिली। साथ ही, प्रचलित साहित्यिक रुझानों से एक तरह की दूरी ने उनकी काव्य-शैली और संरचना को विशिष्टता दी।
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डॉ.बशीर बद्र
डॉ .बशीर बद्र को उर्दू का वह शायर माना जाता है, जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लंबी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है।साहित्य और नाटक अकादमी में किए गए योगदानों के लिए उन्हें 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
डॉ.बशीर का पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है।भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्ध का जन्म कानपुर में हुआ था। डॉ बशीर बद्र 56 साल तक हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायरों में शुमार रहे। वह दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं। जिंदगी की आम बातों को बेहद खूबसूरती और सलीके से अपनी गजलों में कह जाना बशीर बद्र साहब की खासियत है। उन्होंने उर्दू गजल को एक नया लहजा दिया।यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई।
हरिशंकर परसाई
साहित्यअकादमी पुरस्कार से सम्मानित हरिशंकर परसाई का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में हुआ। उन्हें उनकी काव्य रचना विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।अपनी अपनी बीमारी, ऐसा भी सोचा जाता है, आवारा भीड़ खतरे, पगडंडियों का जमाना, इंस्पेक्टर मतादीन ऑन मून के साथ उनकी चुनिंदा रचनाओं में से एक है ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ और ‘जैसे उनके दिन फिरे’ आदि शीर्षक वाली पुस्तकें शामिल हैं।
निदा फाजली
1938 में ग्वालियर जन्में निदा फाजली का पूरा नाम मुक्तिदा हसन निदा फाजली है । वे हिन्दी और उर्दू कवि के रूप में जाने जाते हैं उन्होंने बॉलीवुड मूवीज में दिल को छु जाने वाले कई गीत लिखे ।
माधवराव सप्रे
हिन्दी के आरंभिक कहानीकारों में से एक , सुप्रसिद्ध अनुवादक एवं हिन्दी के आरंभिक संपादकों में प्रमुख स्थान रखने वाले हैं।वे हिन्दी के प्रथम कहानी लेखक के रूप में जाने जाते हैं।माधवराव सप्रे का जन्म 1871 में दमोह जिले के पथरिया ग्राम में हुआ बिलासपुर में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद मैट्रिक शासकीय विद्यालय रायपुर से उत्तीर्ण किया।
1899 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रूप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन सप्रे ने भी देश भक्ति प्रदर्शित करते हुए अंग्रेजों की शासकीय नौकरी परवाह न की।1900 में जब समूचे छत्तीसगढ़ में प्रिंटिंग प्रेस नही था तब इन्होंने बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ नामक मासिक पत्रिका निकाली।हालांकि यह पत्रिका सिर्फ तीन साल ही चल पाई।
सप्रे जी ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी को यहां हिंदी केसरी रूप में छापना प्रारंभ किया तथा साथ साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए नागपुर से हिंदी ग्रंथमाला प्रकाशित की।उन्होंने में भी कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई। सप्रे जी की कहानी एक टोकरी भर मिट्टी को हिंदी की पहली कहानी होने श्रेय प्राप्त है।
सप्रे जी ने मौलिक लेखन के साथ-साथ विख्यात संत समर्थ रामदास के मूलतः मराठी में रचित ‘दासबोध’, लोकमान्य तिलक रचित ‘गीतारहस्य’ तथा चिन्तामणि विनायक वैद्य रचित ‘महाभारत – मीमांसा’ जैसे ग्रंथ रत्नो के अतिरिक्त दत्त भार्गव, श्री राम चरित्र, एकनाथ चरित्र और आत्म विद्या जैसे मराठी ग्रंथों, पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी बखूबी किया।