घरेलू मक्खी (Domestica) सभी कीड़ों तुलना में सबसे अधिक पाई जाती है. हमारे स्वास्थ्य के लिए शायद यह सबसे अधिक खतरनाक है विशेषकर उन देशों में जहां सफाई संबंधी स्थितियां अच्छी नहीं होतीं.
मक्खी का शरीर हल्का भूरा और रोएंदार होता है. इसकी लंबाई लगभग 7 मिमी. होती है. इसकी दो लाल रंग की आंखें होती हैं. यह मुंह से काट नहीं सकती. इसका मुंह दो स्पंजी गद्दियों से बना होता भोजन करने का इसका तरीका बहुत विचित्र होता है. पहले यह लार तथा अन्य पाचक रस भोजन पर टपकाती है. इस रस से जो घोल बनता है, उसे यह चूस लेती है. मक्खी की लार में बहुत से कीटाणु होते हैं, जिन्हें यह भोजन पर छोड़कर उसे दूषित कर देती है. इस भोजन में अनेक घातक बीमारियों के कीटाणु मिल जाने से और उसे खाने से हर साल लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है.
हम मक्खियों को रोज अपने पैर आपस में रगड़ते देखते हैं. क्या आप जानते हो कि वे ऐसा क्यों करती हैं ?
वास्तव में मक्खी के पूरे शरीर पर (जबड़ों और गद्देदार पैरों समेत) बहुत से बारीक रोए होते हैं. इसकी जीभ पर भी एक चिपचिपे पदार्थ की परत चढ़ी होती है. मक्खी खुद को साफ करने के लिए अपने पैर रगड़ती है. इस प्रक्रिया में मक्खी अपने रोओं पर चिपके मैल का कुछ अंश हमारे भोजन पर डाल देती है. इस मैल में रोगों के कीटाणु होते हैं, जो मैल के साथ भोजन में मिल जाते हैं. इस भोजन को खाने वाले लोग बीमार पड़ते हैं और अकसर मर जाते हैं. सामान्य रूप से मक्खी जिन बीमारियों को फैलाती हैं, उनमें मियादी बुखार, तपेदिक और हैजा मुख्य हैं. मक्खियां ये कीटाणु मैल के ढेर और नालियों से अपने साथ लाती हैं.
मक्खियां अधिकतर कूड़े के आसपास और शौचादि पर रहती हैं और वहीं अंडे देती हैं. मादा मक्खी एक बार में 100 और पूरे जीवन-काल में लगभग 1000 अंडे देती हैं. अंडे 12 से 30 घंटों में लार्वा बन जाते हैं. इन अंडों से प्यूपा बनने से पहले, कई बार छिलका उतरता है. कुछ ही दिनों में प्यूपा बन जाता है और यही क्रम दोबारा शुरू हो जाता है. अधिकांश मक्खियों का जीवन गर्मियों में 30 दिन और ठंडे मौसम में इससे कुछ अधिक होता है. ठंडा मौसम मक्खियों को मार देता है, पर लार्वा और प्यूपा इस मौसम में बचे रहते हैं.