Sunday, 8 September

दूध (Milk) एक पौष्टिक पदार्थ है, जिसे माताएं अपने बच्चों को पिलाती हैं. इसमें शारीरिक विकास के लिए आवश्यक सभी तत्व होते हैं. जन्म से कुछ महीनों तक स्तनपायी पशुओं का बच्चा दूध पर ही पलता है. वास्तव में किसी भी जाति के स्तनपायी के शिशु के लिए दूध एक तरह से पूर्ण आहार होता है. यही स्थिति मानव-शिशु के विषय में भी सच है, क्योंकि यह हजम भी बहुत आसानी से होता है, इसलिए बच्चों के लिए इससे अधिक आदर्श भोजन कोई नहीं होता.

दूध स्तनपायी की मादा के शरीर में एक विशेष ग्रंथि (Gland) में बनता है, जिसे मैमरी ग्लैंड (Mammary Gland) कहते हैं. सभी मादाओं की छातियों पर दो छोटे-छोटे निप्पल होते हैं, जिनसे बच्चे दूध चूसते हैं. ये निपल बहुत महीन नलिकाओं द्वारा मैमरी ग्लैंड से जुड़े होते हैं.

यद्यपि सभी स्तनपायी पशुओं के दूध में वही तत्व होते हैं, लेकिन इनके अनुपात में अंतर होता है. दूध में 80 से 90 प्रतिशत तक पानी होता। है. इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, चिकनाई, विटामिन और अनेक खनिज होते हैं. इन पदार्थों की आवश्यकता शरीर-संबंधी अनेक कामों में पड़ती हैं, जैसे हड्डियों और तंतुओं का विकास करना और मजबूत बनाना, एंड्रोक्राइन ग्लैंड्स को, जिनमें हार्मोंस (Harmones) बनते हैं, व्यवस्थित रखना. ये हामाँस शरीर का विकास करते हैं. प्रोटीन (केसीन और एल्बुमिन विशेषतौर से) जो शरीर के विकास के लिए सभी एमिनो एसिडों का स्रोत है, भी दूध में काफी मात्रा में होते हैं. कार्बोहाइड्रेट (लैक्टोज और शक्कर) शरीर को ताकत देते हैं. ये शरीर में कैल्शियम और फास्फोरस को अवशोषित करने में मदद करते हैं. दूध में चिकनाई छोटे दानों के रूप में होती है. दूध बच्चों के पेट में जाकर दही में परिवर्तित हो जाता है. इससे पाचन क्रिया आसान हो जाती है और चिकनाई वाले पदार्थ पेट में जाकर जो हलचल पैदा करते हैं, वह शांत हो जाती है.

दूध में विटामिन भी होते हैं-ए, बी, सी, डी, ई, के और नायसीन, ये विटामिन और दूध में पाए जाने वाले खनिज, विशेषतौर से कैल्शियम और फास्फोरस, भी हड्डियों और तंतुओं (Muscles) को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक होते हैं.

यदि माता को पौष्टिक तत्वों से पूर्ण खाना मिलता है, तो बच्चा भी दूध के जरिये वे सभी तत्व प्राप्त करता है. दूध से उसे बीमारियों के खिलाफ आवश्यक अवरोधक शक्ति भी प्राप्त होती है. जन्म लेने के फौरन बाद से बच्चे को हर या चार घंटे के बाद भोजन मिलना आवश्यक होता है. इसे एक दिन में लगभग 600 मिली लीटर दूध चाहिए, छः हफ्तों के बाद दुग्धपान का समय बढ़ जाता है. इसके बाद पूरी रात बिना दूध मांगे बच्चे रह लेता है.

मनुष्यों में यदि माता दूध पिलाने योग्य न हो तो उसे बोतल का दूध दिया जाता है. यह गाय का पैस्च्यूराइज्ड (Pasteurized) दूध होता है, जिसमें मीठा डालकर और पानी मिलाकर रखा जाता है. यह दूध माता के दूध जितना ही पौष्टिक होता है. बोतल द्वारा दूध पिलाने में कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं. जैसे यदि बोतल को ठीक से साफ न किया जाए तो इसमें बहुत से बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं. इसमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि दूध बहुत गाढ़ा न हो, जिससे बच्चा उसे पचा न सके.

कुछ माताएं सोचती है कि अधिक गाढ़ा दूध बच्चों को सोने में मदद करता है और उनके शरीर को जल्दी बढ़ाता है. पर यह धारणा गलत है. गाढ़े दूध में सोडियम बहुत होता है और बच्चे के गुर्दों को इसे निकालने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है. इससे (Dehydration) यानी पानी की कमी हो सकती है. गाढ़े दूध से हो सकता है कि बच्चा जल्दी-जल्दी बढ़ता हुआ मालूम पड़े पर वास्तविकता यह होती है कि बच्चे की चर्बी ही बढ़ती है, परंतु उसकी हड्डियां और मांसपेशियां कमजोर रह जाती हैं. चर्बी चढ़ना अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण नहीं है. विभिन्न देशों में बकरी, भैंस, रॅडियर, भेड़, ऊंट, लामा और खरगोश का दूध भी बच्चों को पिलाया जाता है. 17वीं सदी में दूध के स्थान पर डबलरोटी को पानी या बीअर में पकाकर बच्चों को पिलाकर कुछ परीक्षण किए गए, लेकिन ये प्रयोग कुछ विशेष लाभदायक सिद्ध नहीं हुए.

बच्चा जब छः महीने से ऊपर हो जाता है, तो उसे दूध की जगह थोड़ा-थोड़ा ठोस खाना (रोटी इत्यादि) देना शुरू कर देते हैं. एक महत्वपूर्ण बात यह है कि एक संतुलित भोजन जिसमें सभी पौष्टिक तत्व हों, बच्चों को दिए जाने चाहिए, साथ ही शक्कर आवश्यकता से अधिक नहीं देनी चाहिए, शुद्ध रूप से शक्कर शरीर पर चर्बी बहुत बढ़ाती है.

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