Saturday, 21 December

जलालु‌द्दीन मुहम्मद अकबर (Jalaluddin Muhammad Akbar) ने, जो मुगलों के सबसे बड़े बादशाह थे, सन् 1582 में एक नया धर्म चलाया, जो दीने-इलाही के नाम से जाना जाता है. इस धर्म में हिंदू और धर्म की सभी उत्तम बातें सम्मिलित की गई थीं. वास्तव में दीन-ए-इलाही हिंदू और इस्लाम धर्म की अच्छाइयों का मिला-जुला रूप था. इस धर्म को स्थापित करने में अकबर का उद्देश्य एक ऐसे धर्म को लाना था, जिसे हिंदू और मुसलमान दोनों ही आदर भाव से मानें और एक ही पूजा-स्थल में श्रद्धाभाव से एक ही ईश्वर की पूजा अर्चना कर सकें. लेकिन इस धर्म ने लोगों को अधिक प्रभावित नहीं किया. केवल कुछ लोग ही दीन-ए-इलाही के अनुयायो बने. अकबर की मृत्यु के साथ-साथ यह धर्म भी लुप्त हो गया.

वास्तव में दीने-इलाही नीति-व्यवस्था सिखाने वाला धर्म था. इसमें प्रतिपादित किया गया था कि मनुष्य को भोग, विलास, ईर्ष्या और अभिमान का त्याग कर देना चाहिए, साथ ही दया, व्यवहारकुशलता, कर्तव्यपरायणता जैसे गुणों को अपना लेना चाहिए. निरंतर ईश्वर की पूजा और भक्ति से अपनी आत्मा की शुद्धि करते रहना चाहिए. इस धर्म में जानवरों का वध करना भी पाप माना गया था. इस धर्म के के लिए कोई ग्रंथ नहीं था. और न ही इस धर्म में उपदेश देने वाले पुजारियों के लिए ही कोई स्थान था.

अकबर महान (1542-1605) हुमायूं के पुत्र और बाबर के पोते थे. इनका जन्म अमरकोट (सिंध) में 15 अक्तूबर सन् 1542 में हुआ था. यह स्थान अब पाकिस्तान में है. ये 13 वर्ष की उम्र में पंजाब के गवर्नर बना दिए गए थे. सन् 1556 यानी चौदह साल की उम्र में ये पिता हुमायूं की मृत्यु के कारण राजसिंहासन पर बैठ गए थे. अपने विशिष्ट गुणों के कारण थोड़े ही समय में इन्होंने अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों को हरा दिया और सन् 1562 तक पंजाब, मुल्तान, गंगा और यमुना के मैदानों, ग्वालियर तथा अफगानिस्तान में काबुल पर अपना कब्जा कर लिया था. इसके बाद नर्वदा नदी को पार करके ये दक्षिण तक बढ़ गए. सन् 1605 तक उनके राज्य अधिकार में 15 रियासतें आ गई थीं. इनका साम्राज्य हिंदुकुश पर्वत से गोदावरी तक और बंगाल से गुजरात तक फैला हुआ था.

अपने साम्राज्य में एकता स्थापित करने के उद्देश्य से अकबर दूसरे धर्मों के प्रति बहुत विनम्र थे. इसलिए इन्हें हिंदुओं और दूसरी जातियों का विश्वास भी प्राप्त था. इन्होंने अपनी केंद्रीय प्रशासन प्रणालियों में बहुत से सुधार किए. इन्होंने मुद्रा विनिमय पद्धति में भी अनेक सुधार किए, कर-संचय के तरीकों में भी अकबर ने बहुत से परिवर्तन किए.

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