Friday, 18 October

भारत में लोक-सभा तथा राज्य सभा संसद या केंद्रीय विधान-परिषद के दो सदन हैं. राष्ट्रपति का पद संसदीय लोकतंत्र का एक हिस्सा होते हुए भी कुछ अर्थों में संसद से ऊपर है. उदाहरण के लिए दोनों सभाओं से पास बिल पर राष्ट्रपति की सहमति लेना जरूरी है. उनकी सहमति के बाद ही यह बिल कानून का रूप धारण करता है. संसद के साल में कम से कम दो अधिवेशन जरूरी हैं. दोनों अधिवेशनों के होने के बीच का अंतराल छः महीने से अधिक नहीं होना चाहिए,

संसद के निम्न सदन (The Lower House or House of the People) को लोक-सभा के नाम से पुकारा जाता है. इसमें संपूर्ण भारत की जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि बैठते हैं. भारत के संविधान द्वारा निर्धारित लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 है। संविधान के अनुच्छेद 81 में यह प्रावधान है कि राज्यों से 530 और केंद्र शासित प्रदेशों से 20 से अधिक सदस्य नहीं चुने जा सकते. राज्य सभा की सदस्य संख्या की अधिकतम सीमा 250 है (12 इसमें मनोनीत सदस्य होते हैं).

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लोक सभा की अन्दर की तस्वीर

लोक-सभा का कार्यकाल पांच वर्ष होता है. इसके सदस्यों को संसद सदस्य कहा जाता है. भारत का हर नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है अपने मत द्वारा संसद सदस्यों का चुनाव करता है. लोक-सभा की सदस्यता के लिए प्रत्याशो के रूप में खड़े होने के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति (i) भारत का नागरिक हो, (ii) उसका नाम मतदाता सूची में हो, (iii) उसकी आयु कम से कम 25 वर्ष हो, (iv) उसमें वे योग्यताएं हों, जो संसद को मान्य हैं.

लोक-सभा अपने दो सदस्यों को स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुनती है, जो लोक सभा के कार्यकाल के लिए होते हैं. स्पीकर लोक सभा का चेयरमैन होता है. वह सामान्य रूप से वोट नहीं देता है, लेकिन यदि किसी प्रस्ताव पर दोनों तरफ के वोट बराबर हो जाएं तो वह वोट डाल कर फैसला करा सकता है. लोक सभा और राज्य सभा के मिले- जुले अधिवेशन की अध्यक्षता भी वही करता है.

स्पीकर या डिप्टी स्पीकर उनके स्वयं के हटाए जाने के सिलसिले में हो रही बहस के समय अध्यक्षता नहीं कर सकते.

दोनों सदनों में से वैसे लोक-सभा अधिक शक्ति-शाली है, लेकिन कोई भी बिल बिना दोनों सदनों में पास हुए कानून नहीं बन सकता. संविधान के किसी भी संशोधन को लोक-सभा और राज्य सभा मिलकर ही पास करती हैं. लोक सभा राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग भी लगा सकती है. लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य ही उप राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं.

राज्य-सभा संसद का उच्च सदन कहलाता है. यह स्थायी सदन है और इसके सदस्य देश के गण्यमान्य नेता होते हैं. इसके एक तिहाई सदस्य हर दो वर्ष बाद रिटायर होते रहते हैं. इस प्रकार प्रत्येक सदस्य 6 वर्ष के लिए इसमें रहता है.

राज्य-सभा की सदस्यता के लिए प्रत्याशी को भारत का नागरिक होना चाहिए, उसकी उम्र कम से कम तीस वर्ष होनी चाहिए. उसके पास संसद द्वारा निर्धारित अन्य योग्यताओं का होना भी जरूरी है. भारत का उपराष्ट्रपति अपने पद के कारण ही राज्य-सभा का सभापति होता है, किंतु वह राज्य सभा का सदस्य नहीं होता.

मुद्रा संबंधी (धन से संबंधित) कोई भी बिल राज्य-सभा से शुरू नहीं होता. ऐसे सभी बिल लोक- सभा द्वारा पारित होकर राज्य सभा में राय के लिए आते हैं. ऐसे सभी बिल राय के साथ 14 दिन में वापस हो जाने चाहिए, यदि ऐसा नहीं होता तो बिल को पास मान लिया जाता है.

राज्य-सभा लोक-सभा के साथ संविधान का संशोधन कर सकती है. यह मुद्रा बिलों को छोड़कर कोई दूसरा बिल पास कर सकती है. राज्य सभा के सदस्य राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में भाग लेते हैं.

संसद की कई शक्तियां हैं जैसे आर्थिक तथा वित्तीय, संविधान संशोधन संबंधी, राज्य सूची से संबंधित तथा साधारण विधेयकों से संबंधित. संसद राष्ट्रपति पर महाभियोग तथा उच्चतम और उच्च न्यायालयों के जजों को हटाने की भी शक्ति रखती है.

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