सांची स्तूप के ऊपर पत्थरों पर भगवान बुद्ध के जीवन की घटनाएं चित्रों के रूप में खुदी हुई हैं
सांची के स्तूप बौद्धकालीन शिल्प कला के बेहतरीन नमूने हैं. सांची मध्य प्रदेश में बेतवा नदी के पश्चिम में भोपाल से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर रायसेन जिले का एक विश्व धरोहर स्थल नगर है. यह 90 मीटर ऊंची एक बलुआ चट्टान पर स्थित है. बौद्ध धर्म के ये धर्म-प्रतीक चिह्न एक लंबे समय से इस नगर की गरिमा और महत्व बढ़ा रहे हैं. यह नगर मीलों से दूर दिखाई देता है.
सांची के तीन प्रमुख स्तूप हैं. इन्हें स्तूप-1, स्तूप-2 और स्तूप-3 कहते हैं. स्तूप-1 विशाल स्तूप (Great Stupa) भी कहलाता है. माना जाता है कि इसमें में भगवान बुद्ध के अवशेष हैं इस स्तूप की स्थापना सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में कराई थी. इसके चारों ओर पत्थरों से निर्मित चहारदीवारी है, जिसमें चार विशाल दरवाजे हैं. इन दरवाजों पर महात्मा बुद्ध के जीवन के विभिन्न दृष्टांत अंकित हैं. प्रत्येक दरवाजे पर पशुओं की विशाल मूर्तियां बनी हैं. स्तूप एक विशाल गोल गुंबद के आकार का है, जो धरती पर छाए आकाश के स्वरूप को प्रतिबिम्बित करता है. गुंबद को वर्गाकार रेलिंग घेरे हुए है. बीच में लगा एक मस्तूल ब्रह्मांड के अक्ष का प्रतीक है. मस्तूल अनेक छत्रों से आच्छादित है, जो देवलोकों की कल्पना को सजीव करते हैं.
स्तूप-2 का निर्माण ईसा पूर्व पहली सदी में था. यह शुंग काल का धर्म-प्रतीक है. शिल्पकला और चित्रकारी की दृष्टि से यह भी अद्भुत है.
स्तूप-3 प्रथम शताब्दी के अंत में बनाया गया था. माना जाता है कि स्तूप-3 में सारिपुत्त और महामौगलायन के अवशेष हैं. इसमें केवल एक दरवाजा है.
सांची के तीनों ही स्तूप अपने-अपने समय की शिल्प और मूर्तिकला के श्रेष्ठतम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं. हजारों लोग प्रतिवर्ष इन्हें देखने आते हैं.
सांची में एक लाट (Pillar) भी है जिसे सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व 235-238 में बनवाया था. लगभग 5वीं शताब्दी में गुप्त राजवंश द्वारा बनवाया गया एक प्रसिद्ध मंदिर भी यहां है.