Sunday, 8 September

सन् 1960 में अमेरिका के खगोलशास्त्री ए. आर. ससेनडेगे (A.R. Sandage) ने बाह्य अंतरिक्ष में कुछ नये खगोलीय पिंडों का पता लगाया है, जिन्हें क्वासर (Quasars) या क्वासी स्टैलर सोर्सेज या क्वासी स्टैलर ऑबजेक्ट (QSO) कहते हैं. इन पिंडों के चित्र तारों से मिलते-जुलते हैं, लेकिन वास्तव में ये तारे नहीं हैं. इनकी एक विशेषता यह है कि इनके स्पैक्ट्रम में रेड शिफ्ट देखने को मिलती है. चित्र में ये तारों की भांति इसलिए दिखते हैं, क्योंकि इनके कोणीय व्यास लगभग एक आर्क सेकेंड के बराबर होते हैं. इतने छोटे कोणीय व्यास को हमारे दूरदर्शी रिजौल्व नहीं कर पाते, क्योंकि यह उनकी सीमा के बाहर की चीज होती है. तारों के कोणीय व्यास इससे भी कम होते हैं, इसलिए उनके चित्र भो बिंदुओं के रूप में ही मिलते हैं.

क्वासरों का आविष्कार सन् 1960 में हुआ था. वैज्ञानिकों ने देखा कि आकाश की किसी एक ही दिशा से बहुत तेज रेडियो विकिरण आते हैं. इनकी स्थिति ज्ञात करने से पता चला कि ये तारे नहीं हैं, बल्कि नये खगोलीय पिंड हैं, जिनका अब तक किसी को पता नहीं था.

सन् 1962 3सी 272 नामक क्वासर का पता लगाया गया. इसका पता आस्ट्रेलिया में एक रेडियो दूरदर्शी द्वारा लगाया गया था. इसकी रेड शिफ्ट लगभग 0.158 थी. यह रेड शिफ्ट नीहारिकाओं की सामान्य रेड शिफ्ट से कहीं अधिक थी. इस निरीक्षण से क्वासरों का अस्तित्व बिना किसी संदेह के पक्का हो गया. है. इनवासराला तारों से कहीं अधिक नीलापन होता स्टार से कम होता है.

क्वासरों के नीलेपन से यह साबित हो गया है कि बहुत से नीले दीखने वाले पिंड तारे नहीं, बल्कि क्वासर हैं. सन् 1995 तक वैज्ञानिकों ने लगभग 1000 क्वासरों का पता लगा लिया था. लेकिन क्वासरों की प्रकृति और पृथ्वी से उनकी वास्तविक दूरी अब भी एक पहेली बनी हुई है. वैज्ञानिक संसारभर में इस पहेली को हल करने में जुटे हैं.

क्वासरों का नाभिक बहुत ही भारी होता है. इस नाभिक का आकार एक प्रकाश वर्ष से कुछ कम होता है. नाभिक के चारों ओर गैसें होती हैं. केंद्रीय हिस्से से आने वाले विकिरणों से ये गैसें उत्तेजित हो जाती हैं. केंद्रीय भाग यानी नाभिक से बहुत से विकिरण निकलते हैं. कुछ क्वासरों से 30 मैगाहर्ज से 100 मैगाहर्ज की आवृत्ति तक के विकिरण निकलते हैं. यह विश्वास किया जाता है कि क्वासरों से निकलने वाली ऊर्जा नाभिकीय नहीं है, बल्कि गुरुत्वीय ऊर्जा है. इन पिंडों का जीवन काल लगभग 10 वर्ष होता है और इस अवधि में इनसे लगभग 10% अर्ग ऊर्जा उत्सर्जित होती है.

अब तक वैज्ञानिक धरती से इन पिंडों की सही दूरी नहीं माप सके हैं. इनके नीहारिकाओं से कुछ मिलते जुलते गुण इस तथ्य को प्रदर्शित करते हैं कि ये पिंड नीहारिकाओं के क्रियाशील केंद्र हैं.

कुछ अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि लगभग 10 वर्ष पहले ब्रह्मांड में क्वासरों की संख्या कहीं अधिक थी. यह अवधि वह है, जब नीहारिकाओं का जन्म हुआ था. अतः संभव है कि क्वासरों का नीहारिकाओं के जन्म से कोई संबंध हो.

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