Sunday, 8 September

टाइफाइड (Typhoid) एक भयानक संक्रामक रोग है, जो एक प्रकार के जीवाणु (Bacteria) से फैलता है. आयुर्विज्ञान की भाषा में इसे बैसिलस सेलमोनेला टायफोसा कहते हैं. यह गंदे भोजन या गंदे पानी के साथ शरीर में प्रवेश कर के खून तक पहुंच जाता है, यह खून को प्रभावित करके पूरी रक्त व्यवस्था को दूषित कर देता है.

टाइफाइड का कारण

टाइफाइड दूषित पानी, दूध या भोजन से होता है. टाइफाइड के जीवाणु पकने से पहले भोजन सामग्री में भी वाहक द्वारा पहुंच सकते हैं. मक्खियां भी इन जीवाणुओं को इधर से उधर पहुंचाती हैं. टाइफाइड की बीमारी के ठीक हो जाने के बाद भी शरीर में ये जीवाणु बचे रह जाते हैं.

टाइफाइड के लक्षण

टाइफाइड बीमारी में बुखार, खांसी, खाल का उधड़ना, तिल्ली का बढ़ जाना और सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी हो जाना आदि होता है. इस बीमारी में भूख भी कम लगती है. लगातार बुखार रहता है, जो 39.4° सेंटीग्रेड से 40°C तक पहुंच जाता है. या दो सप्ताह बाद बुखार कम होना शुरू हो जाता है. लगभग तीस दिन में शरीर का तापमान सामान्य होता है.

टाइफाइड की जांच

किसी भी रोगी को टाइफाइड है या नहीं, यह जानने के लिए उसके खून की जांच करवानी होती है. इसे विडेल टैस्ट (Widel Test) कहते हैं. यह जांच रोग शुरू होने के दूसरे सप्ताह में करवाई जाती है. इसके अतिरिक्त रोगी के शरीर से बहुत थोड़ा सा खून लेकर, अथवा उसके मल-मूत्र से प्रयोगशाला में टाइफाइड के जीवाणुओं का विकास किया जा सकता है. इस रीति से रोग के पहले सप्ताह में ही टाइफाइड का पता लग सकता है.

टाइफाइड का इलाज और सावधानी

आरंभ में इस बीमारी इलाज इसके लक्षण देखकर होता था. सन् 1948 के बाद एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) द्वारा इस बीमारी का विशेष इलाज निकाला गया, जो बहुत प्रभावशाली सिद्ध हुआ. इस बीमारी में बदन पर ठंडे पानी की पट्टियां रखकर बुखार को बढ़ने से रोका जाता है. कुछ बहुत ही बिगड़े हुए मामलों में डॉक्टर रोगी को खून देने की सलाह देते हैं, या रक्त-प्लाज्मा के इंजेक्शन देते हैं.

अब टाइफाइड का इलाज करने के लिए डॉक्टर रोगी को बिस्तर पर विश्राम करने की सलाह देते हैं. इसके साथ ही क्लोरोमाइसेटिन (Chloro-mycetin) नामक दवायें देते हैं. दस्त या पेचिश के कारण शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाने पर रोगी के शरीर में नसों द्वारा ग्लूकोज आदि पहुंचाया जाता है.

लोगों को इस महामारी के समय स्वास्थ्य संबंधी सभी नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए, बीमार को रसोई से दूर रखना चाहिए, टाइफाइड के मरे हुए जीवाणुओं से तैयार वैक्सीन (Vaccine) किसी भी व्यक्ति को सालों बीमार होने से बचा सकती है.

लगभग 60 साल पहले टाइफाइड की महामारी में हजारों लोग मर जाते थे, पर अब नयी-नयी दवाइयों के आविष्कार और विकास से इस पर काबू पा लिया गया है.

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