Tuesday, 17 September

ईसा से 800 वर्ष पहले एशिया माइनर के मैगनीसिया नामक स्थान पर काले रंग का एक पत्थर मिला जिसमें लोहे को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण था. इस पत्थर को लोडस्टोन (Loadstone) कहा जाता है. चूंकि यह सबसे पहले मैगनोसिया में मिला था, इसलिए इसे मैगनेट (Magnet) के नाम से पुकारा जाने लगा. वास्तव में यह पत्थर लोहे का एक अयस्क (Ore) था, जिसे आज मैगनेटाइट कहते हैं.

प्रयोगों से पता चला कि इस पत्थर को लोहे के बुरादे में रखने पर लोहे का बुरादा इससे चिपक जाता था. लोहे का बुरादा कहीं अधिक मात्रा में चिपकता था. तो कहीं कम मात्रा में, कुछ हिस्से ऐसे भी थे, जहां बुरादा बिल्कुल नहीं चिपकता था. इसके जिन हिस्सों पर बुरादा सबसे अधिक मात्रा में चिपकता था, उन्हें चुंबकीय ध्रुवों के नाम से पुकारा गया और जिस क्षेत्र में बुरादा बिल्कुल नहीं चिपकता था, उसे उदासीन क्षेत्र का नाम दिया गया, बाद में प्रयोगों ने यह सिद्ध किया कि इस पत्थर को यदि किसी धागे से बांधकर लटका दिया जाए तो इसके दो सिरे सदा ही उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरते थे. इन दोनों सिरों को उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का नाम दे दिया गया. मैगनेट के इस गुण को 13वीं शताब्दी में चीन के लोगों ने अपनी समुद्री यात्राओं में दिशा ज्ञात करते के लिए इस्तेमाल किया.

इस विषय में और अधिक अनुसंधान करने पर पाया गया कि यदि दो पत्थरों के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पास-पास लाए जाएं तो उनमें आकर्षण होगा, परंतु दो पत्थरों के दो उत्तरी ध्रुवों या दो दक्षिणी ध्रुवों में प्रतिकर्षण होता है. इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि असमान ध्रुवों में आपस में आकर्षण होता है, जबकि समान ध्रुवों में आपस में प्रतिकर्षण होता है. एक मनोरंजक तथ्य यह है कि यदि लोडस्टोन को लोहे की छड़ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक बहुत बार रगड़ा जाए तो लोहे की छड़ भी चुंबक बन जाती है. ऐसे चुंबकों को कृत्रिम चुंबक कहते हैं. चुंबक बनाने की यह विधि बहुत दिनों तक प्रचलित रही.

धीरे-धीरे चुंबकत्व के क्षेत्र में खोज करने वाले वैज्ञानिकों ने कृत्रिम चुंबक बनाने की एक नयी विधि निकाल ली. इस विधि में लोहे की छड़ पर तांबे का तार लपेटकर तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जातो है जिससे लोहे की छड़ चुंबक बन जाती है. ऐसे चुंबकों को इलैक्ट्रोमैगनेट कहते हैं. इनका इस्तेमाल विद्युत-मोटरों में होता है.

इस क्षेत्र में अगला महत्वपूर्ण आविष्कार सन् 1600 में सर विलियम गिलबर्ट (William Gilbert) ने किया, उन्होंने यह सिद्ध किया कि हमारी धरती एक विशाल चुंबक की तरह काम करती है. इसके भी दो ध्रुव हैं, जो भौगोलिक उत्तर-दक्षिण से थोड़ा हटकर हैं. यही कारण है कि स्वतंत्रतापूर्वक लटका हुआ चुंबक सदा ही उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरता है.

कुछ वर्षों तक और भी कई महत्वपूर्ण आविष्कार चुंबकत्व के क्षेत्र में हुए, लेकिन चुंबकत्व के विषय में सही जानकारी 19वीं शताब्दी में ही प्राप्त हुई. आज वैज्ञानिकों को पता चल गया है कि परमाणुओं में भ्रमण करने वाले इलेक्ट्रोनों द्वारा हो चुंबकीय गुण पैदा होते हैं. हर पदार्थ परमाणुओं से बना है और प्रत्येक परमाणु में केंद्रीय नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रोन विभिन्न कक्षाओं में घूमते रहते हैं. इलेक्ट्रोनों पर ऋणात्मक आवेश होता है. जब भी कोई आवेशित कण गति करता है, तो एक चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है. इनकी गति से पदार्थ चुंबक की तरह बर्ताव करता है. कभी-कभी विभिन्न इलेक्ट्रोनों की गति से पैदा हुआ चुंबकत्व एक दूसरे के प्रभाव से उदासीन हो जाता है और पदार्थ अचुंबकीय हो जाता है.

चुंबकत्व लोहे, कोबाल्ट और निकल में सबसे अधिक होता है. इन्हीं धातुओं को चुंबक बनाने के काम में लाया जाता है. इनमें भी सबसे अधिक लोहे के चुंबक ही बनाए जाते हैं, क्योंकि एक तो यह आसानी से मिल जाता है और दूसरे बाकी दोनों धातुओं से सस्ता है. चुंबक आमतौर पर स्टील से बनाए जाते हैं.

electricmegnetmoter4487386907325846955
इलेक्ट्रो मैगनेटिक मोटर

चुंबक हमारे सामान्य जीवन में बहुत ही उपयोगी हैं. इससे दिक्सूचक बनाए जाते हैं, जो समुद्री यात्राओं में जलयानों के मार्ग-दर्शन के काम आते हैं. इनको रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, माइक्रोफोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों में भी प्रयोग में लाया जाता है, चुंबक इलैक्ट्रिक जेनेरेटर्स और मोटरों में भी काम आते हैं.

एक पुंषक के चारों ओर शक्ति के चुंबकीय क्षेत्र बन जाते हैं. जब लोहे का बुरादा एक चुंबकीय एड़ के ऊपर रखे काई के ऊपर छिड़का जाता है तो वे मुड़ी हुई रेखाओं जैसा रूप ले लेते हैं, इन्हें ही शक्ति की रेखाएं कहते हैं

Share.
Exit mobile version