Sunday, 8 September

कोढ़ (Leprosy) एक बहुत ही खतरनाक बीमारी है जो अधिकतर उमस भरे, उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण मौसम वाले प्रदेशों में होती है. अधिकतर एशिया, दक्षिणी अमेरिका, जापान, कोरिया और प्रशांत महासागर के द्वीपों में मिलते हैं. यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है. यद्यपि यह छूत की बीमारी है, फिर भी यह इतनी आसानी से नहीं फैलती जैसा कि हम पहले सोचते थे.

कोढ़ माइकोबैक्टीरियम लेपरी बैसिल्स (Myco- bacterium leprae bacillus) नाम के जीवाणुओं के कारण होता है. ये आदमी की खाल और स्नायु-तंत्र को प्रभावित करते हैं और शरीर पर जगह-जगह सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं और गांठें उभर आती हैं. ये अधिकतर कानों, चेहरे, अंडकोशों, हाथों और पैरों पर होती हैं. मुंह की अंदरूनी सतह और नाक भी इससे प्रभावित हो सकती है. यदि यह बीमारी फैलकर आंखों तक पहुंच जाती है, तो बीमार अंधा हो जाता है. हाथ की और पैरों की उंगलियां इस बीमारी से प्रभावित होने पर एकदम संवेदनहीन हो जाती हैं और उनकी दशा लगभग लकवा मारे हुए अंगों जैसी हो जाती है.

कोढ़ दो प्रकार का होता है: लिप्रोमेटस या कटेनियस और ट्यूबरकुलाइड (lipomatous or cutaneous and tuberculoid). लिप्रोमेटस में शरीर की पेशियां सूज जाती हैं और इनके दानेदान लोथड़े खाल, चेहरे, अंडकोश और ऊपरी गले पर उभर आते हैं. पर ट्यूबराकुलाइड में बदन पर चकत्ते पड़ जाते हैं, जिनके चारों तरफ लाल उभरे हुए दायरे बन जाते हैं. चकत्तों वाले हिस्से बिल्कुल संवेदनहीन हो जाते हैं, यानी बाहरी वातावरण के प्रति इसमें कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. इसमें त्वचा के बाल झड़ जाते हैं, त्वचा मोटी पड़ जाती है और हड्डियों तथा जोड़ों में टेढ़ापन आ जाता है.

कोढ़ के इलाज के लिए सल्फोन की गोलियां लंबे अरसे खानी पड़ती हैं, जिससे इस बीमारी का बढ़ना रुक जाता है. अधिक बिगड़े हुए केस में आपरेशन की जरूरत पड़ सकती है. इस बीमारी में सल्फोक्जोन और सोलपसोन दवाइयां भी खाई जाती हैं. ये दवाइयां काफी महंगी होती हैं. इस रोग को दूर करने के लिए डिटोफल नामक मलहम को त्वचा पर लगाने से भी लाभ पहुंचता है. इसमें एक ऐसा तत्व होता है जो कोढ़ उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को खत्म कर देता है. प्रायः इस मलहम का उपयोग डेप्सोन थेरापी (Dapsone therapy) के साथ किया जाता है. यदि मोटे-मोटे आंकड़े इकट्ठे किए जाएं तो मालूम होगा कि सही इलाज पांच में से एक मरीज का ही हो पाता है.

इकट्ठे किए गए ब्यौरों के अनुसार दुनिया भर में लगभग 2,000,000 कोढ़ के मरीज हैं और जिन लोगों को इस बीमारी की छूत लग चुकी हो, उनकी संख्या 10,000,000 के लगभग हो सकती है. यह अभी तक पता नहीं चल सका है कि इसके रोगाणु बीमारी कैसे फैलाते हैं. ऐसा लगता है कि बीमार आदमी के साथ लंबे अरसे तक नजदीकी शारीरिक संबंध दूसरे आदमी के, जिसकी रोग अवरोधक शक्ति कमजोर हो, मरीज बना सकते हैं. यह बीमारी बच्चे को जैनेटिक प्राप्त नहीं होती. मरीज माता-पिता से यदि बच्चों को शुरू सालों में ही अलग कर दिया जाए तो बच्चों को इस बीमारी का छूत नहीं लगता.

विश्व स्वास्थ्य संस्था (World Health Organisation – WHO), UNICEF तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस बीमारी की रोकथाम के बहुत प्रयास कर रही हैं. भारत की प्रसिद्ध समाज सुधारक मदर टेरेसा कोढ़ियों की अनन्य सेवा कर रही थीं. इनको नोबेल पुरस्कार दिया गया था.

हमारे देश में सरकारी अस्पतालों और गैर सरकारी समाज-सेवा करने वाली संस्थाओं द्वारा भी कोड़ को दूर करने तथा उसका इलाज करने के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं.

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