पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों का साचौगिक है, जिसके एक अणु (Molecule) में हाइड्रोजन के दो परमाणु (Atom) और ऑक्सीजन का एक परमाणु होता है. यदि हम हाइड्रोजन के परमाणु की संरचना पर विचार करें, तो देखते हैं कि इसके नाभिक में एक प्रोटॉन होता है. इस हाइड्रोजन को हम प्रोटियम (Protium) कहते हैं. जटिल वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चलता है कि हाइड्रोजन के परमाणु तीन प्रकार के होते इन्हें प्रोटियम (Protium), ड्यूटेरियम (Deute- rium) और ट्राइटियम (Tritium) कहते हैं.
प्रोटियम के नाभिक में केवल एक प्रोटॉन होता है, ड्यूटेरियम के नाभिक में एक प्रोटॉन और एक न्यूट्रॉन होता है और ट्राइटियम के नाभिक में एक प्रोटॉन तथा दो न्यूट्रॉन होते हैं. प्रकृति में मिलने वाली हाइड्रोजन में (99.98%) प्रोटियम, लगभग (0.15%) ड्यूटेरियम तथा 10″ भागों भारी पानी (D,O) में हाइड्रोजन की जगह ड्यूटेरियम होता है. ड्यूटेरियम हाइड्रोजन का एक आइसोटोप है
में एक भाग ट्राइटियम होती है. ट्राइटियम स्वभाव से रेडियोएक्टिव (Radioactive) है. जब ड्यूटेरियम के दो परमाणु ऑक्सीजन के एक परमाणु से संयोग करते हैं, तो भारी पानी का एक अणु बनाते हैं.
प्राकृतिक स्रोतों से मिलने वाले सामान्य जल के 6760 भागों में एक भाग भारी पानी होता है. साधारण पानी का अणु भार 18 है, जबकि भारी पानी का अणु भार 20 होता है. भारी पानी का घनत्व, हिमांक (Freezing Point) तथा स्वथनांक (Boiling Point) साधारण पानी की तुलना में अधिक होते हैं.
भारी पानी (Heavy Water) का आविष्कार सन् 1931 में अमेरिका के रसायनशास्त्री हेरोल्ड क्लेटन यूरे (Harold Clayton Eure) ने किया था. इस अनुसंधान के लिए उन्हें 1934 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था. सन् 1933 में लेविस और डोनाल्ड ने सामान्य पानी की इलेक्ट्रालीसिस करके कुछ मिलीलीटर भारी पानी बनाया था. भारी पानी साधारण जल की इलेक्ट्रालीसिस करके बनाया जाता है. जब पानी की इलेक्ट्रालीसिस की जाती है, तो कैथोड पर निकलने वाली गैस हाइड्रोजन होती है. इस प्रकार बचे हुए पानी ड्यूटेरियम की मात्रा बढ़ती जाती है. साधारण पानी के सैकड़ों लीटर की इलेक्ट्रालीसिस के अंत में बचा हुआ कुछ पदार्थ भारी पानी हो जाता है.
इलेक्ट्रालीसिसकी क्रिया ऊंचे पैमाने की जाती है. हमारे देश में ट्रांबे (मुंबई) के भाभा अनुसंधान केंद्र में भारी पानी के निर्माण के लिए एक विशाल प्लांट लगा हुआ है. नांगल में भी भारी पानी का निर्माण होता है.
नाभिकीय भट्ठियों में तेज गति से चलने वाले न्यूट्रानों की गति धीमी करने के लिए भारी पानी को मॉडरेटर (Moderator) के रूप में काम में लाया जाता है. प्रयोगशालाओं में इसे रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं में आइसोटोप ट्रेसर के रूप में प्रयोग किया जाता है. इससे ड्यूटेरियम तथा दूसरे यौगिक भी बनाए जाते हैं. नाभिकीय भट्ठियों के तापक्रम को नियंत्रित रखने के लिए इसका उपयोग एक प्रशीतक (Coolant) के रूप में भी किया जाता है.