Friday, 18 October

मनुष्य हजारों वर्षों से साबुन और पानी को धुलाई के लिए इस्तेमाल करता आ रहा है. सबसे पहले साबुन लगभग 5000 वर्ष पहले मध्य-पूर्वी देशों में बनाया गया था. साबुनरहित डिटर्जेंटों का आविष्कार बहुत पुराना नहीं हैं. विश्लेषित डिटर्जेंट का आविष्कार सन् 1916 में हुआ था. तब से साबुनरहित डिटर्जेंटों का निर्माण पेट्रोकेमीकल उद्योग का एक मुख्य अंग बन गया इनके विकास के साथ कपड़े धोने के नये तरीकों के विकास में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं. सूखी धुलाई भी इन तरीकों में से एक है.

ड्राइक्लीनिंग (Dry-cleaning) कैसे की जाती है ?

ड्राइक्लीनिंग कपड़े धोने का ऐसा तरीका है, जिसमें साबुन और पानी की जगह रासायनिक विलायकों का प्रयोग किया जाता है. इनमें से बहुत से विलायक पेट्रोलियम से प्राप्त किए जाते हैं. पेट्रोल एक बहुत ही महत्वपूर्ण विलायक है, जो ड्राइक्लोनिंग में सभी दूसरे पदार्थों की अपेक्षा अधिक मात्रा में प्रयोग होता है. ड्राइक्लीनिंग में बेंजीन भी प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसकी वाष्प बड़ी खतरनाक होती है, क्योंकि यह आग बड़ी तेजी से पकड़ता है. पोलीक्लोरोएल्केंस तथा एल्केंस कुछ अधिक सुरक्षित रसायन हैं, जिन्हें ड्राइक्लीनिंग में प्रयोग किया जाता है. कार्बन टेट्राक्लोराइड और ट्राइक्लोरोइथलीन ऐसे रसायन हैं, जो कपड़ों से चिकनाई हटाने के लिए सामान्य रूप से प्रयोग होते हैं.

ड्राइक्लीनिंग संस्थानों में पहले कपड़ों पर लगे दाग हटाने का काम किया जाता है. फिर उन्हें ड्राइक्लीनिंग मशीन में साफ करने वाले द्रव या विलायक के साथ धोया जाता है. यह सफाई का प्रक्रम लगभग आधा घंटा चलता है. इसके बाद एक बार फिर साफ द्रव में डालकर कपड़ों को निचोड़ दिया जाता है. अंत में गर्म वायु द्वारा कपड़ों को सुखा लिया जाता है. यदि कपड़ों पर अब भी कोई निशान या धब्बा रह गया है. तो उचित रसायनों द्वारा उसे हाथ से हटा दिया जाता है. ग्राहक को देने से पहले कपड़ों पर स्टीम प्रेस कर दी जाती है.

साधारण साबुन की धुलाई की अपेक्षा ड्राइक्लीनिंग के कई फायदे हैं. विलायक बहुत से ऐसे धब्बों को अपने साथ घोलकर हटा देते हैं, जिन्हें साबुन या डिटर्जेंट नहीं हटा सकते. ड्राइक्लीनिंग का तरीका महंगे रेशमी और ऊनी कपड़ों के लिए अधिक उपयोगी है, क्योंकि इससे कपड़ों के रंग नहीं उड़ते. पानी के साथ अकसर रंग हल्के पड़ जाते हैं.

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