Sunday, 8 September

मोटरगाड़ी एक अपने आप आगे बढ़ने वाली गाड़ी है. पेट्रोल, डीजल या विद्युत धारा इंजन (Engine) को चलने के लिए बल प्रदान करती है. मोटरगाड़ियों के वे इंजन, जिनमें पेट्रोल या डीजल ईंधन के रूप में प्रयोग होता है, अंतर-दहन इंजन कहलाते हैं. अंतर-दहन इंजन वे इंजन हैं, जिनके सिलेंडर के अंदर ही ईंधन जलता है. विद्युत इंजन में एक मोटर और गीयर बॉक्स होता है. मोटर को शक्ति बैटरी से प्राप्त होती है.

अधिकतर मोटरगाड़ियों में शक्ति-स्रोत के रूप में पेट्रोल इंजन प्रयोग में लाया जाता है. कुछ गाड़ियों में डीजल इंजन भी लगा होता है. डीजल इंजन पेट्रोल इंजनों की तुलना में अधिक भारी और महंगे होते हैं, लेकिन ये पेट्रोल इंजनों से अधिक दिन चलते हैं और इनमें काम आने वाला ईंधन सस्ता होता है. कारों के लिए अब बैटरी से चलने वाले विद्युत-इंजन भी विकसित कर लिए गए हैं. हां, इतना अवश्य है कि अभी ये अधिक लोकप्रिय नहीं हुए हैं.

पेट्रोल और डीजल, दोनों ही इंजन चार स्ट्रोकों में काम करते हैं. इनकी रचना और कार्यप्रणाली निम्न प्रकार है:-

1. पेट्रोल इंजन : इस इंजन में एक बेलनाकार बर्तन होता है, जिसमें एक पिस्टन लगा होता है. पिस्टन का संबंध एक छड़ द्वारा क्रैक शैफ्ट से होता है. जैसे ही पिस्टन गति करता है, इसकी गति क्रैंक शैफ्ट में घूर्णन, गति पैदा कर देती है, जिससे पहिये घूमने लगते हैं और गाड़ी चलने लगती है. बेलनाकार बर्तन में दो वाल्व होते हैं: एक ईंधन को अंदर भेजने के लिए तथा दूसरा जली हुई गैंसों को बाहर फेंकने के लिए. इनमें पहले को इनलैट वाल्व और दूसरे को एग्झौस्ट वाल्व कहते हैं. प्रत्येक कार्य-चक्र में ये दोनों वाल्ल एक बार बंद होते हैं और एक बार खुलते हैं.

वायु और पेट्रोल कार्बर्बोरेटर में मिश्रित होकर इनलैट वाल्व द्वारा बेलनाकार बर्तन में भेजे जाते हैं. एक विद्युत स्पार्क द्वारा इस ईंधन में आग लग जाती है. इस आग की ऊष्मा द्वारा ही इंजन अपना कार्य करता है. इस इंजन की कार्यप्रणाली निम्न प्रकार है:-

जब इंजन से कार्य कराना होता है, तब एक बाहरी बल द्वारा इनलैट वाल्व को खोला जाता है. ऐसा करने पर ईंधन सिलिंडर में प्रवेश कर जाता है. यह पहला स्ट्रोक होता है. इसे चार्जिंग स्ट्रोक कहते हैं. ऐसा हो जाने के बाद दोनों वाल्व बंद हो जाते हैं. अब ईंधन को संपीडित करते हैं और स्पार्क द्वारा इस ईंधन को जलाया जाता है. इस क्रिया को कंप्रैशन स्ट्रोक कहते हैं. ईंधन के जलने से विशाल ऊष्मा पैदा होती है. इसके दबाव के कारण पिस्टन गतिशील हो उठता है. पिस्टन की गति से गाड़ी चलने लगती है. इसको वर्किंग या पावर स्ट्रोक कहते हैं. अंत में एग्झौस्ट वाल्व खुल जाता है और बेकार गैसें सिलिंडर से बाहर निकल जाती हैं. इसको एग्झौस्ट स्ट्रोक कहते हैं. इस प्रकार इंजन का एक चक्र पूरा हो जाता है. इस प्रकार के चक्रों के बार-बार होने से गाड़ी चलती रहती है. स्कूटर आदि में दो स्ट्रोक इंजन प्रयोग होते हैं.

अधिकतर गाड़ियों में चार, छः या आठ सिलिंडर होते हैं. अधिकतर इंजन गाड़ी के अग्र भाग में लगे होते हैं. और गाड़ी के पिछले पहियों को गतिशील करते हैं. कुछ गाड़ियों में इंजन पीछे लगे होते हैं, जो गाड़ी के पिछले पहियों को ही गतिशील करते हैं.

2. डीजल इंजन इस इंजन में पेट्रोल के स्थान पर डीजल को ईंधन के रूप में काम में लाया जाता है. इसमें तीन वाल्व होते हैं. एक से वायु अंदर आती है, दूसरे से ईंधन अंदर आता है, तथा तीसरे से गैसें बाहर निकलती हैं. ये वाल्व स्वयं ही खुलते और बंद होते हैं. डीजल इंजन भी चार स्ट्रोकों में काम करता है. पहले स्ट्रोक में वायु अंदर आती है और दूसरे स्ट्रोक में इसे लगभग तीस वायुमंडलीय दाब तक दबाया जाता है. इससे वायु का तापमान 600° सेल्सियस पहुंच जाता है. तीसरे स्ट्रोक में स्प्रे के रूप में ईंधन अंदर जाता है और जलना शुरू हो जाता है. जलने की क्रिया में पैदा हुई गैसें पिस्टन पर दबाव डालती हैं, जिससे पिस्टन गतिशील हो जाता है और गाड़ी चलने लगती है. इसे वर्किंग स्ट्रोक कहते हैं. चौथे स्ट्रोक में एग्झौस्ट वाल्व खुल जाता है और बची हुई गैसें बाहर निकल जाती हैं. यह चक्र बार-बार दुहराया जाता है और गाड़ी गति करती रहती है.

डीजल इंजन की दक्षता लगभग 40% होती है. डीजल पेट्रोल की अपेक्षा सस्ता भी होता है, तथा यह आग भी कम पकड़ता है. यद्यपि यह इंजन भारी तथा महंगा होता है, लेकिन पेट्रोल इंजन की तुलना में इसका कार्यकाल अधिक होता है.

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