माचिस (Matchbox) की तीलियां लकड़ी या कार्डबोर्ड के मोम लगे कागज से बनाई जाती है, टुकड़ों या जिनके एक सिरे पर कुछ ज्वलनशील पदार्थों का मिश्रण लगा होता है. इन्हें आग पैदा करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. माचिस की तीली के मसाले लगे सिरे को जब किसी खुरदरी सतह या माचिस के रसायन लगे तल से रगड़ा जाता है, तो एकदम आग पैदा होती है, जिससे तीली जल उठती है.
क्या आप जानते हो कि माचिस की तीली के सिरे पर कौन से पदार्थ प्रयोग में लाए जाते हैं?
माचिस उद्योग में लाल फासफोरस सबसे अधिक प्रयोग में आता है. माचिस मुख्यरूप से दो प्रकार की होती है: 1. लूसी फेर या घर्षण माचिस और 2. सुरक्षित माचिस
1. घर्षण माचिस (friction match) : घर्षण माचिस वह है, जिसे किसी भी खुरदरे तल पर रगड़ने से आग पैदा हो जाती है. इसमें लगभग 8 सेमी. लंबी तथा 0.3 सेमी. व्यास की लकड़ी की तीली होती है. इसके एक सिरे का रंग लाल और सफेद या नीला और सफेद होता है. इस तीली का एक चौथाई भाग पिघले हुए गंधक या मोम मे डुबाया जाता है. इसके सिरे पर फासफोरस
ट्राइसल्फाइड का सफेद पेस्ट में कांच का चूर्ण या बालू मिला दी जाती है. तीली का लाल या नीला हिस्सा रगड़ने से जलता नहीं है, लेकिन जब सफेद भाग आग पकड़ लेता है, तो यह हिस्सा जलने लगता है. इसी पदार्थ के द्वारा तीली के शेष भाग में आग पहुंचती है. इन तीलियों का निर्माण मशीनों द्वारा होता है, जो एक घंटे में लाखों तीलियां तैयार कर देती हैं.
ये तीलियां जरा-सी रगड़ से आग पकड़ लेती हैं, अतः इनका प्रयोग अधिक सुरक्षित नहीं है. इसी कारण इन्हें आम प्रयोग में नहीं लाया जाता. दिन- प्रतिदिन के काम के लिए सुरक्षित दियासलाई ही प्रयोग में लाई जाती है.
2. सुरक्षित माचिस (Sefty Matchbox) : यह खोल पर लगे विशेष रसायनों की रगड़ से ही जलती है. इनकी तीलियों के जलने वाले सिरे पर फासफोरस ट्राइसल्फाइड को छोड़कर सभी ऊपर दिए गए रसायन प्रयोग में आते हैं. फासफोरस ट्राइसल्फाइड के स्थान पर लाल फासफोरस प्रयोग में लाया जाता है. ये तीलियां स्वयं आग नहीं पकड़ती है, इसलिए इन्हें सुरक्षित माचिस का नाम दिया गया है.
सबसे पहली माचिस सन् 1627 में जान वाल्कर नामक अंग्रेज फार्मसिस्ट ने बनाई थी. इसमें लकड़ी के एक टुकड़े के सिरे पर एंटीनी सल्फाइड, पोटाशियम क्लोरेट, गोंद तथा स्टार्च लगाया गया था. जब इसे जलाया गया था, तो इससे आग की चिनगारियां चारों तरफ निकल पड़ी थीं. सबसे पहली सुरक्षित माचिस का निर्माण सन् 1844 में स्वीडन के रसायनशास्त्री गुस्ताव ई. पाश्च (Gustave E. Pasch) ने किया था.