Friday, 20 September

शरीर में दो या दो से अधिक हड्डियां हैं, उस स्थान को संधियां (Joints) और ये जहां मिलती उसे संधिस्थल कहते हैं. इन संधियों की बनावट पर यह निर्भर करता है कि हड्डियां कितनी या किस दिशा में हिल-डुल सकती हैं. 

शरीर में संधियां के प्रकार

मुख्य रूप से शरीर में तीन प्रकार की संधियां होती हैं. इनकी ये श्रेणियां इनकी अलग-अलग गति के आधार पर बनाई गई हैं. ये श्रेणियां इस प्रकार हैं:-

  1. स्थिर या अचल संधि (Immovable Joints)
  2. आंशिक स्थिर या उपास्थि (Partially Mov- able or Cartilaginous Joints) संधि
  3. स्वतंत्र या श्लेषक संधि (Freely Movable or Synovial Joints)

स्थिर या अचल संधि: स्थिर संधि में हड्डियां सख्ती से एक दूसरे के साथ जुड़ी होती हैं, क्योंकि सख्त और मजबूत तंतुओं से हड्डियों को जकड़कर बांधा होता है. इस तरह हड्डियां अपनी स्थिति को बिल्कुल बदल नहीं सकतीं. संधियों के लिए आवश्यक लचक इन जोड़ों में बिल्कुल नहीं होती, दांतों के जबड़ों और खोपड़ी के जोड़ इसी श्रेणी की संधियां हैं. स्थिर संधि को तंतु संधि भी कहते हैं. आंशिक स्थिर या उपास्थि संधि इस प्रकार की संधियों में हड्डियों को उपास्थि (Cartilage) से जोड़ा जाता है. उपास्थि बहुत सख्त और तंतुचक्रक चीज है. इन संधियों में बहुत कम गति होती है. रीढ़ की हड्‌डी के कशेरुक उपास्थि से ही जुड़े होते हैं. इन जोडों की हड्डियां थोड़ी-सी हिल-डुल सकती हैं. इसीलिए रीढ़ थोड़ी झुक सकती है. इन कशेरुकों के बीच में उर्पास्थि-निर्मित एक चकरी फिट होती है. इनको रीढ़ की चकरियां कहते हैं. ये चकरियां एक तो रीढ़ को झुका पाने में मदद करती हैं, दूसरे ये आघात सह के रूप में भी काम करती हैं. छाती के सिरे का जोड़-जहां पसलियां छाती की हड्‌डी से मिलती हैं-भी आंशिक स्थिर संधि है.

स्वतंत्र या श्लेषक संधि: ये शरीर की मुख्य संधियां हैं. इस श्रेणी में टखने, कूल्हे, कलाई, कोहनी और घुटने के जोड़ आते हैं. इस तरह की संधियों पर जुड़ी हड्डियों के सिरों पर उपास्थि-निर्मित टोपियां चढ़ी होती हैं. उपास्थि आसानी से नष्ट नहीं होती. इसकी सतह बहुत चिकनी होती है, जो हड्डियों के बीच की रगड़ को कम करती है.

श्लेषक संधि में दो हड्डियों के बीच एक श्लेषक तरल पदार्थ भरा होता है. यह तरल पदार्थ तेल का काम है. यह हड्डियों के बीच की रगड़ को कम करता है. यह तरल पदार्थ इस जोड़ के चारों तरफ लिपटी एक झिल्ली से पैदा होता है और इस श्लेषक झिल्ली द्वारा इस जोड़ में हो रोककर रखा जाता है. इस झिल्ली के बाहर सख्त पर लचकदार तंतु इस झिल्ली को रोके रखते हैं. ये तंतु केवल हड्डियों को जोड़े ही नहीं रहते, उनके लिए हिलने-डुलने की सुविधा भी बनाए रखते हैं. झिल्ली और ये तंतु मिलकर जोड़ का कैप्सूल (Capsule) कहलाते हैं.

श्लेषक संधियों के भी कई प्रकार होते हैं, जिनका विभक्तीकरण उन संधियों की बनावट और गति की सीमाओं के आधार पर होता है. ये श्रेणियां इस प्रकार हैं:

बाल और साकेट (Ball and Sockets) संधियां : इस संधि में एक हड्‌डी का गोल सिरा दूसरी के खोल में फिट होता है. इस तरह गोल सिरे वाली हड्‌डी चारों तरफ घूम सकती है. इस तरह से उस तरफ झुक सकती है और पूरा चक्कर काट सकती है. कूल्हे का जोड़ इसी प्रकार का जोड़ है. जांघ की हड्‌डी (Femur Bone) का गोल सिरा श्रोणि-प्रदेश (Pelvis) के प्यालानुमा सिरे में फिट होता है. कंधे का जोड़ भी इसी प्रकार का होता है.

कब्जा संधि (Hinge Joints): कोहनी, घुटने और उंगलियों के जोड़, हड्डियों के सिरे एक दूसरे से इस प्रकार जुड़े होते हैं कि ये केवल एक दिशा में ही घूम सकती हैं.

कोनेदार संधि (Angular Joints) : जिन जोड़ों की दो धुरियां होती हैं, जैसे कलाई का जोड़, ऐसे जोड़ों को कोनेदार संधि कहते हैं.

धुरीय संधि (Pivotal Joints): इस तरह की संधियों में उलटने की या घूमने की गति संभव होती है, लेकिन केवल एक धुरी पर. सिर और रीढ़ की संधि इसी प्रकार की संधि है.

फिसलने वाली संधियां (Gliding Joints) : टखने, कलाई और हंसली की संधियां इस श्रेणी में आती हैं. इनमें एक हड्डी दूसरी पर फिसलती है.

किसी चोट या बीमारी का इन संधियों पर प्रभाव पड़ता है. संधिशोथ (Arthritis) बीमारी संधियों को उपास्थियों को प्रभावित करती हैं. इसमें बहुत दर्द होता है.

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