Sunday, 8 September

आज की दुनिया 100 वर्ष तो क्या 50 वर्ष पहले तक की दुनिया से अधिक चमकीली और रंगीन दिखाई देती है. इस रंगीनी का कारण विभिन्न प्रकार के रंगों का विकास है. रंगों के विकास के कारण ही आज हमें अनेक रंगों के कपड़े देखने को मिलते हैं.

क्या आप जानते हैं कि ये रंग क्या हैं और कैसे बनाए जाते हैं?

पिछली शताब्दी के मध्य तक हमारे उपयोग के लिए कुछ ही रंग उपलब्ध थे. ये रंग पौधों और फूलों से प्राप्त होते थे. उस समय तक नील के पौधे से नीला रंग प्राप्त किया जाता था. मैडर नाम का लाल रंग, सैफ्लोवर नाम का पीला रंग तथा टर्मेरिक नाम का दूसरा पीला रंग कुछ समुद्री जीवों से प्राप्त किया जाता था.

सन् 1856 में रंग बनाने की कला में एक कृत्रिम रंग के विकास से एक महान उपलब्धि हुई. यह कृत्रिम रंग था मैवीन (Mavviene) यह रंग कुनैन बनाते समय विलियम पर्किन के हाथों अनायास ही बन गया था. इस आविष्कार के बाद कोलतार से दूसरे रंग बनाने के प्रयास किए गए. इन प्रयासों के फलस्वरूप हजारों किस्म के कृत्रिम रंग विकसित हो गए

ये रंग ऊन की रंगाई करने में बहुत ही कारगर सिद्ध हुए, लेकिन सूती कपड़ों से ये धुलाई करने पर फीके पड़ जाते थे. इस समस्या का समाधान सूती कपड़ों को दैनिक एसिड या धातुओं के लवणों के साथ क्रिया कराकर रंगने से हो गया.

इन रंगों के बाद एजो (Azo) रंगों का विकास हुआ. एजो रंगों के दो हिस्से होते हैं, जो सूती कपड़ों की रंगाई में प्रयोग होते हैं. पहले कपड़े को एक हिस्से के साथ रंगकर दूसरे हिस्से के घोल में डुबोया जाता है. दोनों हिस्सों की रासायनिक क्रिया से कपड़े पर एक रंग पैदा होता है. ये रंग पक्के होते हैं और धोने पर कभी नहीं छूटते.

वाट (Vat) रंग एक दूसरा स्थायी समूह है, जो सूती कपड़ों की रंगाई के लिए बहुत ही उत्तम सिद्ध हुआ है. ये रंग डेनिम को नीला रंग देने के लिए प्रयोग होते हैं. जब कपड़े को रंग दिया जाता है, तो इसकी कुछ रसायनों के साथ क्रिया कराई जाती है, जिससे रंग पक्का हो जाता है.

आज हमारे पास कोलतार और पेट्रोलियम उत्पादों से बने अनेक रंग हैं, जो केवल कपड़ों को रंगने में ही प्रयोग नहीं होते, बल्कि प्लास्टिक, चमड़े, कागज, तेल, रबर, साबुन, खाद्य पदार्थों, श्रृंगार प्रसाधनों तथा धातु-तलों को रंगने में भी प्रयोग किए जाते हैं.

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