Sunday, 8 September

माइक्रोफोन (Microphone) एक ऐसा यंत्र है, विद्युत-संकेतों में जो ध्वनि तरंगों को बदल देता है. ये संदेश फिर दूर स्थानों तक संचरित किए जा सकते हैं और दूर स्थान पर फिर इन्हें ध्वनि तरंगों में परिवर्तित किया जा सकता है. रेडियो और टेलीविजन केंद्रों पर संदेश संचरण व्यवस्थाओं में माइक्रोफोनों को प्रयोग किया जाता है. इनके द्वारा ध्वनि-संदेशों को विद्युत धारा में बदलकर दूरस्थ स्थानों तक संचरित किया जाता है. जनता को भाषण देने वाली पद्धतियों तथा सिनेमाघरों में भी माइक्रोफोनों से यही काम लिया जाता है.

क्या आप जानते हो की माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत तरंगों में कैसे बदल देता है?

टेलीफोन का वह भाग, जिसके सामने हम बोलते हैं, एक प्रकार का साधारण माइक्रोफोन है. वास्तव में माइक्रोफोनों को हम दो वर्गों में बांट सकते हैं:

  1. दाव टाइप
  2. वेग टाइप

दाव टाइप : दाव या प्रेशर टाइप (Pressure Type) माइक्रोफोन में धातु की एक पतली चादर होती है, जिसे डायफ्राम कहते हैं. यह एक फ्रेम में ढोल पर चढ़ी खाल की तना रहता है. यह डायफ्राम विद्युत परिपथ का एक हिस्सा होता है. जब ध्वनि- तरंगें डायफ्राम से टकराती हैं, तो यह कंपन करने लगता है, इसके कंपन करने से संदेश के अनुसार विद्युत परिपथ में विद्युत-धारा उत्पन्न हो जाती है. दाव माइक्रोफोन कई प्रकार के होते हैं, जैसे कंडेंसर माइक्रोफोन, मूविंग कॉयल माइक्रोफोन, क्रिस्टल माइक्रोफोन तथा कार्बन माइक्रोफोन आदि.

(क) कंडेंसर माइक्रोफोन कंडेंसर माइक्रोफोन में कंपन करते हुए डायफ्राम से कंडेंसर की कैपेसिटी बदलती है.

(ख) मूविंग कॉयल माइक्रोफोन: इस माइक्रोफोन में तार की एक कुंडली होती है, जो डायफ्राम के साथ जुड़ी रहती है. जैसे-जैसे डायफ्राम कंपन करता है, वैसे ही कुंडली भी गति करती है. यह गति एम के आकार के चुंबक के साथ होती है. कुंडली की गति से चुंबकीय बल रेखाएं कटती हैं. इनके कटने से विद्युत- चुंबकीय विभव पैदा होता है. यह विद्युत विभव विभिन्न संदेशों की आवाज के अनुसार ही होता है. इस प्रकार ध्वनि-संदेश विद्युत धारा में बदल जाता है.

(ग) क्रिस्टल माइक्रोफोन ये पीजो इलेक्ट्रिक प्रभाव के आधार पर काम करते हैं. जब किसी क्वार्ट्ज के क्रिस्टल पर दबाव डाला जाता है, तो उसमें एक विद्युत-विभवांतर पैदा हो जाता है. ऐसे क्रिस्टल को पीजो इलेक्ट्रिक क्रिस्टल कहते हैं. क्रिस्टल माइक्रोफोन में हम ऐसा हो क्रिस्टल प्रयोग में लाते हैं. इसका एक सिरा मजबूती से कस दिया जाता है और दूसरा हिस्सा डायफ्राम के साथ जोड़ दिया जाता है. जब डायफ्राम कंपन करता है, तो क्रिस्टल के ऊपर – दाब-परिवर्तन होता है. इस दाब परिवर्तन से ध्वनि तरंगों के अनुसार विद्युत-विभवांतर पैदा होता है और प्रकार संदेश विद्युत धारा में बदल जाता है. यह विद्युत-धारा क्रिस्टल के तल से लगे तारों द्वारा प्राप्त कर ली जाती है. यही विद्युत धारा दूर स्थानों तक संचरित कर दी जाती है.

(घ) कार्बन माइक्रोफोन : यह ठीक टेलीफोन के ट्रांसमीटर की भांति कार्य करता है. इसमें कार्बन के दाने (Gramules) विद्युत-धारा में विभवांतर पैदा होता है जिससे संदेश बनते हैं. रिबन माइक्रोफोन में कॉयल की जगह धातु का पतला फीता (Ribbon) लगा होता है. 2. वेग टाइप : वेग या विलोसिटी माइक्रोफोन में

एल्युमिनियम की एक बहुत ही पतली पत्ती होती है, जो चुंबकीय क्षेत्र के बीच में रख दी जाती है. संदेश की ध्वनि तरंगों से यह पत्ती कंपन करती है, जिसके परिणामस्वरूप चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है.

इससे विद्युत चुंबकीय-विभवांतर अर्थात विद्युत-धारा पैदा हो जाती है. यह विद्युत धारा तारों में बहती है और इस के प्रकार ध्वनि-संदेश विद्युत धारा में बदल जाता है. टॉमस एल्वा एडीसन के अतिरिक्त माइक्रोफोन विकास का श्रेय और भी कई वैज्ञानिकों को जाता है. संसार का पहला प्रेक्टीकल माइक्रोफोन सन् 1878 में अमेरिका के डेविड एडवर्ड ह्यूजेज ने बनाया था. दूसरे वैज्ञानिकों में इमाइल बर्लिनर, फिलिप रीज, फ्रांसिस ब्लेक और हेनरी हनिंग्स के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं.

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