Sunday, 8 September

हम में से अधिकांश लोग सर सी.वी. रमन (C V Raman) के नाम से परिचित हैं. वे संसार के महानतम वैज्ञानिकों में से पहले भारतीय वैज्ञानिक थे, जिन्होंने सन् 1930 में भौतिकशास्त्र में अपने विशेष आविष्कार (रमन प्रभाव) के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था. इस खोज को उन्हीं के नाम पर ‘रमन प्रभाव’ के नाम से जाना गया. इसके अतिरिक्त भी उन्हें बहुत से विशेष पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें से 1958 में प्राप्त लेनिन शांति पुरस्कार विशेष रूप से उल्लेखनीय है.

चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म दक्षिण भारत में त्रिचनापल्ली में 7 नवंबर 1888 को हुआ था. इनके पिता, वाल्तेयर के मिसेज ए. वी. एन. कालिज में भौतिकशास्त्र के प्रोफेसर थे. रमन बचपन से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि वाले विद्यार्थी थे. 12 वर्ष की आयु में इन्होंने मैट्रिक पास किया. इसके बाद उच्चतर अध्ययन के लिए उन्होंने प्रेसिडेंसी कालिज, मद्रास में दाखिला ले लिया. यहीं से उन्होंने 1904 में बी.ए. और 1907 में भौतिकशास्त्र में एम. ए. पास किया. एम.ए. में रमन महोदय ने विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया. जब वे प्रेसिडेंसी कालिज के ही थे उन्होंने मेल्डे के ध्वनि संबंधित सिद्धांत को संशोधित किया. उन्होंने प्रकाश के विवर्तन (Diffraction) के सिद्धांत पर भी काम किया. 1906 में इस विषय पर उनका पहला शोधपत्र प्रकाशित हुआ.

1907 में सिविल सर्विस की एक परीक्षा पास करने के बाद वे कलकत्ता डेपुटी एकाउंटेंट जनरल नियुक्त हुए, 1915 में उनकी भेंट श्री आशुतोष मुखर्जी से हुई, जो इंडियन साइंस एसोसियेशन के सचिव थे. रमन इस एसोसिएशन के सदस्य बन गए और उन्होंने अपना अनुसंधान कार्य आरंभ कर दिया. उनकी भौतिकशास्त्र में इतनी रुचि थी कि सन् 1917 में उन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकशास्त्र के प्रोफेसर बन गए, 1921 में जब वह यूरोप की ओर समुद्र यात्रा कर रहे

थे, तो उन्होंने भूमध्य महासागर का अद्भुत चमचमाता हुआ नीला रंग देखा और बाद में ग्लेशियर का नीला रंग. भारत लौटने पर इन्होंने पानी में से और पारदर्शी बर्फ के टुकड़ों या अन्य माध्यमों से गुजरती सूर्य की किरणों के प्रकीणर्न पर अनेक प्रयोग किए, इन्होंने समुद्र के नीले रंग का भेद समझाया. इन्हीं अनुसंधानों को धीरे-धीरे व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाते हुए श्री रमन 1928 में’ रमन प्रभाव ‘तक पहुंच गए. रमन प्रभाव के अध्ययन के लिए इन्होंने मर्करो आर्क से एकरंगी प्रकाश और एक स्पेक्ट्रोग्राफ इस्तेमाल किया. कई पदार्थों से प्रकाश किरणों को गुजार कर उन्होंने स्पैक्ट्रम में कुछ नई लाइनें प्राप्त कीं, जिन्हें बाद में रमन लाइनों का नाम दिया गया. इस नये प्रभाव का नाम ‘रमन प्रभाव’ रखा गया. सन् 1924 में सी. बी. रमन लंदन की रायल सोसाइटी के सदस्य नियुक्त हुए. इसी अध्ययन के लिए 1930 में इन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.

रमन महोदय ने चुंबकीय आकर्षण और संगीत वाद्यों के सिद्धांतों के क्षेत्र में भी अनुसंधान कार्य किया. ये 15 वर्ष तक प्रोफेसर के पद पर बने रहे.

1933 में वे बंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के डायरेक्टर बने. इस पद पर वे दस साल तक रहे. 1934 में इन्होंने इंडियन एकेडेमी ऑफ साइंसेज की नींव रखी, जिसके यह प्रथम अध्यक्ष बने. 1943 में इन्होंने रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की. इसके बाद जीवन भर ये अनुसंधान कार्य करते रहे. 21 नवंबर 1970 को बंगलोर में इनका स्वर्गवास हो गया.

Share.
Exit mobile version