Monday, 16 December

उड़ीसा की भौगोलिक स्थिति

ओडिशा 17°45′ से 20°25′ अक्षांश एवं 81°25′ से 87°25′ पूर्वी देशान्तरों के बीच स्थित है। उत्तर में बिहार, पश्चिम में मध्य प्रदेश, पूर्वोत्तर में पश्चिम बंगाल, दक्षिण में आंध्र प्रदेश व पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। यहां मीठे व खारे पानी की झीलें हैं। चिलका झील उनमें से एक है, जो करीब 11 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैली है। कई क्षेत्रों में अधिक तो कहीं न्यून वर्षा होती है। इससे प्रदेश में बाढ़ एवं सूखे की स्थिति बनी रहती है। यहां ब्राह्मणी, महानदी एवं वैतरणी नदियां भी हैं।

उड़ीसा की ऐतिहासिक स्थिति

ओडिशा प्राचीन काल में कलिंग के नाम से प्रसिद्ध था। मौर्य साम्राज्य के शक्तिशाली सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के बाद इसे अपने साम्राज्य में मिलाया। सन् 795 में महाशिव गुप्त ययाति द्वितीय ओडिशा का सबसे शक्तिशाली राजा बना। चौदहवीं शताब्दी में यहां पांच शासकों ने शासन किया। 1803 में ब्रिटिश आधिपत्य से पूर्व ओडिशा मराठों के भी अधीन रहा। अप्रैल 1936 में ओडिशा को अलग राज्य का दर्जा दिया गया। ओडिशा को कलिंग, उत्कल, उम्र के प्राचीन नामों से भी जाना जाता है।

उड़ीसा की आर्थिक स्थिति

राज्य की करीब 65 प्रतिशत जनता कृषि कार्यों में लगी है। यहां मुख्य रूप से चावल, तिलहन, दालें, गन्ना, नारियल और मेस्ता मुख्य रूप से उत्पादित होते हैं। राज्य में इस्पात, फेरोमोम, आयरन, एल्यूमीनियम, सीमेंट, सीसा, खाद, कागज, चीनी, सूती कपड़ा उद्योग हैं। ग्रेफाइट एवं क्रोमाइट के उत्पादन में प्रदेश अग्रणी है। इसके अलावा यहां डोलोमाइट, मैंगनीज, लौह अयस्क, चूना-पत्थर, अग्नि मृतिका [फायरक्ले] क्वार्ट्ज एवं क्वार्टजाइट खनिज मुख्य रूप से पाए जाते हैं।

राज्य का परिवहन

प्रदेश में सड़कों की कुल लम्बाई 2,37,034 किमी. है। राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई 3,704 किमी. है। राज्य में 2,284 किमी. लम्बी रेल लाइन हैं, जिसमें 2,193 किमी. ब्रॉडगेज एवं 91 किमी. नैरोगेज लाइनें हैं। राज्य में 17 हवाई पट्टियां व 17 हेलीपैड हैं। भुवनेश्वर का हवाई अड्डा 1994 में सीमा शुल्क हवाई अड्डा घोषित कर दिया गया। पारादीप राज्य का एकमात्र प्रमुख बंदरगाह है। इसके अलावा चूड़ामणि, धर्मा, बहावलपुर में मछली पकड़ने के बंदरगाह हैं।

यहां के त्योहार

ओडिशा में कई मंदिर महोत्सव होते है, जो मुख्यतः भगवान जगन्नाथ से जुड़े है। इनमें पुरी की रथ यात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध है। जगन्नाथ की यह रथ यात्रा श्रद्धालुओं और पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है। यहां की लोक परम्परा और सांस्कृतिक विरासत को पुरी बीच उत्सव, कोणार्क उत्सव और कलिंग महोत्सव में भी देखा जा सकता है। यहां के आदिवासियों के मुख्य उत्सवों में चैत पर्व और बाली यात्रा शामिल है। राष्ट्रीय स्तर के त्योहारों में यहां दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, दशहरा और दिवाली आदि मनाए जाते है।

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उड़ीसा के पर्यटन स्थल

पुरी

पुरी का जगन्नाथ मंदिर जग प्रसिद्ध है। यह बंगाल की खाड़ी के तट पर बसा है। इसके साथ ही पुरी की प्राकृतिक खूबसूरती भी दर्शनीय है। मीलों तक फैला समुद्र तट पर्यटकों को खूब लुभाता है। रथयात्रा के अवसर पर यहां लाखों लोग इकट्ठे होते हैं। इसका आयोजन जून-जुलाई में किया जाता है। इस दौरान शोभायात्रा निकलती है। इसमें मंदिर के आकार में रथ को सुंदर तरीके से सुशोभित किया जाता है। यह मंदिर 12वीं शताब्दी की स्थापत्य कला की उत्कृष्ट मिसाल है। यहां जगन्नाथ, बलभद्र तथा सुभद्रा की चंदन निर्मित प्रतिमाएं हैं। मंदिर के चार प्रवेशद्वार हैं। मंदिर 214 फीट ऊंचा है तथा एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां स्थित चिल्का झील में नौका विहार का आनंद लिया जा सकता है। पुरी के दक्षिण-पश्चिम में स्थित इस झील में मछली पकड़ने की सुविधा भी है।

भुवनेश्वर

पुराने समय में कलिंग के नाम से मशहूर भुवनेश्वर‌‌ अपनी ऐतिहासिकता, वास्तुशिल्प कला तथा आध्यात्मिकता के लिए दर्शनीय है। मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी सदी में यहां अपने जीवन का आखिरी युद्ध लड़ा था। यहां कलात्मक मंदिर और खूबसूरत झील देखने लायक हैं। नागर शैली में बने विभिन्न मंदिरों की उत्कृष्ट वास्तुकला देखकर पर्यटक मंत्रमुग्ध रह जाते हैं । यहां के दर्शनीय स्थलों में बिन्दुसागर झील उल्लेखनीय है, जो बड़ी खूबसूरत है। इसके चारों और स्थित पत्थरों से इसकी सुंदरता को चार चांद लग गाए हैं। लिंगराज मंदिर 11वीं सदी की वास्तुकला की अनूठी मिसाल है। मंदिर की कलात्मक मूर्तियां तथा दीवारों की नक्काशी देखने लायक है। यहां ग्रेनाइट का बना हुआ बड़ा शिवलिंग है। यह आधा शिव व आधा विष्णु है। इसके अलावा खण्डगिरि व उदयगिरि की गुफाएं हैं। इसमें ओडिशा के इतिहास को देखा जा सकता है। उदयगिरि की बौद्ध गुफाएं तथा खण्डगिरि का पारसनाथ मंदिर दर्शनीय हैं। अन्य दर्शनीय स्थलों में धौली पहाड़ी पर स्थित शांति स्तूप है, जिसके चारों तरफ बुद्ध की प्रतिमाएं स्थापित हैं। नंदन कानन पार्क वन्य प्राणी एवं वानस्पतिक उद्यान के रूप में मशहूर है।

कोणार्क

कोणार्क विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के लिए जाना जाता है सूर्य मंदिर की शिल्प कला देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं  इसके साथ ही समुद्री तट की खूबसूरती भी देखने लायक है। यहां तैराकी का भी लुत्फ उठाया जा सकता है। कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण सूर्य के काल्पनिक रथ का रूप दे कर किया गया है। इसके सामने समुद्र से सूर्य उदय होता दिखाई देता है। इसमें सूर्य अपने विशाल 24 पहियों तथा 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर दिनभर की यात्रा के लिए निकलता हुआ दिखाया गया है। रथ के 7 घोड़े सूर्य प्रकाश के रंगों तथा 24 पहियों को इसकी परिक्रमा के प्रतीक के रूप में दिखाया गया है। यह मंदिर ओड़िशा के स्वर्णकाल तथा कलिंग शैली की शिल्पकला का स्वरूप है। इसके अलावा यहां दुर्लभ कलाकृतियों वाला संग्रहालय भी दर्शनीय है।

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