कर्नाटक की भौगोलिक स्थिति
यह प्रदेश उत्तर में महाराष्ट्र, दक्षिण में केरल एवं तमिलनाडु, पूर्व में आंध्रप्रदेश तथा पश्चिम में अरब सागर से मिलता है। राज्य 11° 30′ उत्तर से 18°30′ उत्तरी अक्षांश तथा 74° 10′ से 78° 30′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। प्रदेश के उत्तर दिशा में कृष्ण एवं इसकी सहायक नदियां [भीमा, घाट प्रभा, मालप्रभा, तुंग भद्रा और रेवती] दक्षिण में कावेरी एवं इसकी सहायक नदियां हेमवती, शिमशा, लक्ष्मण तीर्थ, अर्कावती और काबिनो] सहित अन्य महत्वपूर्ण नदियां हैं। यहां नीलगिरी पर्वत है।
ऐतिहासिक पृष्भूमि
कर्नाटक का उद्भव करूनाडू’ से हुआ है, जिसका अर्थ है- भव्य उच्च भूमि । इस राज्य पर मौर्य, नंद एवं सातवाहन राजाओं का शासन रहा। कर्नाटक पर कदंब, गंगा एवं मौर्य साम्राज्य का भी अधिकार रहा। बादामी के चालुक्य वंश [500 से 753 ई.] ने नर्मदा से कावेरी तक फैले क्षेत्र पर राज किया। उन्होंने कन्नौज के राजा हर्षवर्धन को हराया। इस वंश के शासकों ने बादामी, पट्टदकल और आइकोल में अनेक सुन्दर स्मारक बनाए। माल्खेड़ के राष्ट्रकूट राजा [753 से 973 ई.] कन्नोज के शासकों से कर वसूल करते थे कल्याण के चालुक्य राजाओं [973 से 1189 ई. और परवर्ती हेले बीड के होयसल सामंतों ने सुन्दर, कलात्मक मंदिरों का निर्माण करवाया एवं साहित्य, कला को बढ़ावा दिया। वही विजय नगर साम्राज्य [ 13361646 ई.] ने अपनी परम्पराओं का पोषण करते हुए कला, धर्म, भाषा, साहित्य के विकास में योगदान दिया। टीपू सुल्तान [1799] एवं पेशवा । 1818} जाने के कहार बाद कर्नाटक ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत मैसूर रियासत के केनरा, बीजापुर, धारवाड़ जिले. गुलबर्गा के बेलगाम जिले का एक बड़ा भाग, हैदराबाद रियासत के रायचूर व बीदर जिले, मद्रासी प्रेसिडेंसी में से साउथ कानरा जिला कोयम्बटूर जिले के कासरगोड तालुका और कालेधन गया। सन् 1973 में कर्नाटक राज्य अस्तित्व में आया।
कर्नाटक की आर्थिक स्थिति
आर्थिक स्थिति राज्य की करीब 46 प्रतिशत श्रम शक्ति कृषि एवं इससे सम्बन्धित कार्यों में लगी है। पूरे देश में उपजाई जाने वाली रागी फसल का 47 प्रतिशत भाग कर्नाटक में उत्पादित होता है। यहां की प्रमुख फसलें- ज्वार, चावल, बाजरा, मक्का, दालें, गन्ना, मूँगफली, अरंडी, अलसी हैं। सुपारी, इलायची, काजू, कालीमिर्च, संतरा एवं अंगूर प्रमुख नकदी फसलें हैं। कर्नाटक रेशम, साबुन, इलेक्ट्रॉनिक सामान एवं चंदन का तेल बनाने में अग्रणी है। इसके अलावा मशीनी औजार, रेल डिब्बों, वायुयान, सीसा, बैटरी, उर्वरक, लैम्प, चीनी मिट्टी के बर्तन, सूती कपड़े, सीमेंट, कागज, मोटर साइकिल सहित अन्य उद्योग हैं। राज्य जल विद्युत उत्पादन में अग्रणी है। बंगलुरु को ‘सिलिकॉन वैली’ के नाम से जाना जाता है। प्रदेश में सोना, चांदी, लौह अयस्क, मैंगनीज, ताम्बा, क्रोमाइट, चूना-पत्थर, चीनी मिट्टी, ग्रेनाइट, कोरण्डम एवं रत्न पाए जाते हैं।
परिवहन
कर्नाटक में सड़क मार्गों की कुल लम्बाई करीब 1,52,599 किमी. है। राष्ट्रीय राजमार्ग 3,843 किलोमीटर है। रेल मार्गों की कुल लम्बाई लगभग 2,980 किमी है। ब्रॉडगेज 2,508 व मीटरगेज 472 किलोमीटर है। यहां बेलगाम, बंगलुरु, मंगलौर और हुबली में प्रमुख हवाई अड्डे हैं। बेंगलुरु, न्यू मंगलौर और कारवाड़ में वर्ष भर खुले रहने वाले प्रमुख बंदरगाह है।
यहां के त्योहार
यहां के लोग मुख्यतः उगाड़ी, दशहरा, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दिवाली महाशिवरात्रि, नाग पंचमी आदि त्योहार मनाते है। यहां के प्रमुख मेलों में श्री विथप्पा, गोडाची, श्री येल्लम्मा देवी, बनाशंकरी देवी आदि शामिल है।
कर्नाटक के पर्यटन स्थल
बेंगलुरु
बागों के शहर के लिए प्रसिद्ध बंगलुरु शहर अपनी सम जलवायु के लिए जाना जाता है। सोलहवीं शताब्दी में बसा यह शहर हैदर अली और टीपू सुल्तान की राजधानी के लिए भी मशहूर है। नंदी हिल- कहा जाता है कि नंदी पर्वतमाला पर कई लड़ाइयां लड़ी गई थी। अब यह बेहद खूबसूरत स्थल के रूप में तब्दील हो गया है। इस पर लगभग हजार वर्ष पुराने दो मंदिर हैं। टीपू सुल्तान गर्मियों में यहां आया करते थे।
बन्नरघट्टा– पशु-पक्षी प्रेमियों के लिए यह जगह स्वर्ग समान है। यह 104 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां चौति, शेर आदि वन्यजीव देखे जा सकते हैं। लाल बाग-यहा बागों में लाल बाग सबसे खूबसूरत एवं दर्शनीय स्थल है। इसे 18 शताब्दी में हैदर अली व टीपू सुल्तान ने बनवाया था। यह আ 240 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसमें दुर्लभ पौधों का विशाल संग्रह, पुराने पेड़, फव्वारे, कमल फूल, गुलाब आन, हिरण उद्यान आदि देखे जा सकते हैं। टीपू सुल्तान का किला- यहां टीपू सुल्तान का विशाल किला देखा जा सकता है। इसे मूलतया केंपेगोडा ने बनवाया था। बाद में हैदर अली ने इसका जीर्णोद्धार करवाया ।
मुख्य संग्रहालय व आर्ट गैलेरी-बेंगलुरु की ऐतिहासिक जानकारी के लिए यहां के संग्रहालय से काफी सूचनाएं जुटाई जा सकती हैं। 1886 में बने इस संग्रहालय में पुरातत्व तथा कलात्मक वस्तुओं के साथ प्राचीन आभूषणों का बड़ा संग्रह भी है। यहां के अन्य दर्शनीय स्थलों में कब्बन पार्क, बुल टेंपल, सचिवालय व विधानसभा, चामराज सागर आदि मुख्य हैं ।
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मैसूर
मैसूर चंदन की हस्तनिर्मित वस्तुओं व सिल्क की साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। यह नगरी कभी वोडयार राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। यहां का दशहरा प्रसिद्ध है। बड़ी संख्या में पर्यटक उसे दखने आते हैं।
चामुंडा देवी मंदिर– इस मंदिर का मुख्य द्वार चांदी का बना हुआ है। इस द्वार की ऊंचाई 15 फीट है। गर्भगृह में चामुंडादेश्वरी की पांच फीट ऊंची प्रतिमा है। यह स्वर्ण जड़ित दुर्लभ मूर्ति हैं इसके अलावा यहां कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें मुख्य हैं- राजेंद्र पैलेस, जगमोहन पैलेस, मैसूर राजमहल, ललित महल आदि।
वृंदावन गार्डन- मैसूर का वृंदावन गार्डन जग प्रसिद्ध है। यहां संगीतमय फव्वारे लगे हुए है। यह गार्डन कृष्णा राजा वोड्यार की स्मृति में बनवाया गया। सरू व अशोक जैसे खूबसूरत पेड़ें से आच्छादित यह गार्डन 4.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इस गार्डन में सौ से भी अधिक स्पीकर लगे हुए हैं, जिनसे मधुर ध्वनि सुनाई देती रती है।