Friday, 18 October

प्रकृति ने भारत को अपने अकूत संसाधनों से सजाया है यहां भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़ पौधों और खनिजों से पाए जाते हैं

भौगोलिकता आधार पर भारत के वनों के प्रकार 

  1. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन: यह वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां औसत तापमान 24 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे अधिक होता है। वर्षा 200 सेमी. से अधिक, आर्द्रता 70 प्रतिशत, वृक्ष की ऊंचाई 50 मीटर तक होती है। ये वन महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, अण्डमान एवं निकोबार, लक्षद्वीप, पश्चिम बंगाल, असम में मिलते हैं। यहां रबर, महोगनी, एबोनी, नारियल, बांस, सिनकोना, आयरन वुड आदि वृक्ष मिलते हैं।
  2. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पतझड़ वन 100-200 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्र में मिलते है। इनका विस्तार पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, असम में है। यहां सागवान, साल, शीशम, चंदन, पलाश, शहतूत, बांस, खैर, पैक, हल्दु आदि वृक्ष मिलते हैं।
  3. उष्णकटिबंधीय वन: 50-100 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्र में मिलते हैं। वृक्षों की लंबाई 6-9 मीटर तक होती है। इनका विस्तार पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी राजस्थान में है। यहां आम, महुआ, बरगद, शीशम, हल्दी, कीकर, बबूल आदि वृक्ष मिलते है।
  4. मरुस्थलीय तथा अर्द्धमरुस्थलीयः 50 सेमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्र में। ये वन दक्षिण-पश्चिम हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात, कर्नाटक में मिलते है। इनमें मुख्यतः खेड़ा, खैर, खजूर, रामबांस, नागफनी आदि वृक्ष पाए जाते है। पर्वतीय वन पूर्वी हिमालय में दालचीनी, अमूरा, ओक, मेपिल, एलडर, बर्च, सिल्वर फर, पाइन, स्यूस, जेनीफर।पश्चिमी हिमालय में साल, सेमल, हाक, शीशम, जामुन, बेर, चीड़, देवदार, नीला पाइन, एल्ब, आर्मी आदि।
  5. अल्पाइन वन हिमालय पर्वत पर 2400 मी. से अधिक ऊंचाई पर उपलब्ध। 24003600 के बीच) (ओक, मेपिल, सिल्वर फर, पाइन, जूनीफर 36004800 मी. की ऊंचाई पर टुण्ड्रा प्रकार की वनस्पति। अल्पाइन वन में वृक्ष पूर्णतया कोणधारी होते है। 
  6. ज्वारीयवनः गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, नदियों के डेल्टा प्रदेश में। मुख्य वृक्षः मैनग्रोव एवं सुंदरी।
  7. समुद्रतटीय वन‌‌ मुख्यवृक्षः ताड़, नारियल, केसूरिना।‌ नदी तट के वन, ‌‌वृक्ष:खैर, पेड़, इमली

विस्तारः मैदान की नदियों के किनारे खादर प्रदेशों में। भारत की 6.8 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वन पाए जाते हैं‌‌ जिसका 51 प्रतिशत भाग आरक्षित, 29 प्रतिशत भाग संरक्षित तथा 12 प्रतिशत अवर्गीकृत है। लगभग 7 प्रतिशत भाग को अन्य वनों की श्रेणी में रखा गया है। भारत के लगभग 22 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते है।

भारत के ऊर्जा संसाधन

भारत में कोयला, खनिज तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार, विद्युत ऊर्जा के प्रमुख संसाधन है।

कोयला

भारत के कुल कोयला भंडार का एक तिहाई झारखण्ड में तथा एक चौथाई ओडिशा में संचित है। वास्तव में झारखण्ड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तथा छत्तीसगढ़ में भारत के 90 प्रतिशत कोयला भण्डार संचित है। भारत के कोयला क्षेत्र निम्नलिखित है

  • मध्य प्रदेश में सिंगरौली, सोहागपुर, कोरबा, तातापानी, झिलमिल, चिरमिरी, करार, रामपुरा आदि महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र है। 
  • झारखण्ड के मुख्य कोयला क्षेत्र झरिया, बोकारो, रामगढ़, चंद्रपुरा तथा गिरीडीह है।
  • पश्चिम बंगाल के मुख्य कोयला क्षेत्र रानीगंज, बर्दवान, पुरुलिया तथा बांकुरा है। 
  • आंध्र प्रदेश में सिंगरेनी, कोठागुडम तथा तंदूर की खानों से कोयला निकाला जाता है।
  • महाराष्ट्र का अधिकांश कोयला वर्धा घाटी में पाया जाता है। चंद्रपुर प्रमुख उत्पादक जिला है। इस जिले में प्रमुख कोयला क्षेत्रों के नाम चंद्रपुर, घुगुस, बल्लारपुर तथा वरोर है।
  • ओडिशा में तलचर सबसे महत्वपूर्ण कोयला उत्पादक क्षेत्र है। 

खनिज तेल तेल प्राय

अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। भारत में खनिज तेल युक्त अवसादी चट्टानों का विस्तार 17.2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर है। इसमें से 3.20 लाख वर्ग किमी महाद्वीपीय मग्नतट है जो सागर तल से 200 मीटर की गहराई तक है। शेष उत्तरी तथा तटीय मैदानी भाग में विस्तृत है। तेलधारी परतों वाले 13 महत्वपूर्ण बेसिन है, जिन्हें तीन वर्गों में रखा गया है। कैम्बे बेसिन, ऊपरी असम तथा मुंबई अपतट बेसिन में उत्पादन हो है। राजस्थान, कावेरी-कृष्ण गोदावरी बेसिन, अंडमान, गंगा घाटी तथा त्रिपुरा-नगालैण्ड वलय मेखला में तेलघानी परतें पाई जाती है परंतु यहां पर उत्पादन आरंभ नहीं हुआ है। राजस्थान के बाड़मेर में तेल उत्पादन प्रारंभ हो गया है। कच्छ-सौराष्ट्र, केरल-कोंकण तथा महानदी में ऐसी भू-वैज्ञानिक संरचनाएं पाई जाती हैं जहां से तेल प्राप्त किया जा सकता है।

प्राकृतिक गैस

हमारे देश में प्राकृतिक गैस की संचित राशि 70,000 करोड़ घन मीटर है। अधिकांश गैस कैम्बे बेसिन में, कावेरी अपतट तथा जैसलमेर जिले में तनोट से प्राप्त की जा रही है। गैस के परिवहन के लिए एबीसी पाइप लाइन का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जल विद्युत: भारत में जल विद्युत के उत्पादन को निम्नलिखित दशाएं प्रभावित करती है 

  1. पर्याप्त मात्रा में जल का प्रवाह बारहमासी होना चाहिए।
  2. जल काफी ऊंचे स्थान से गिरना चाहिए। यह स्थान प्राकृतिक हो सकता है अथवा नदी पर बांध बनाकर प्राप्त किया जा सकता है। 
  3. उपयोग के लिए बाजार उपलब्ध होना चाहिए, क्योंकि विद्युत को संचित नहीं किया जा सकता। 
  4. पर्याप्त पूंजी की व्यवस्था होनी चाहिए।

कई बहुउद्देश्यीय नदी-घाटी परियोजनाएं जैसे भाखड़ा नंगल, दामोदार घाटी, हीराकुंड, चंबल घाटी आदि प्रथम पंचवर्षीय योजना की अवधि में प्रारम्भ की गई थी। जल विद्युत शक्ति के समेकित विकास को नियोजित और संगठित करने के उद्देश्य से 1975 में नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन (एनएचपीसी) की स्थापना की गई।

भारत के खनिज संसाधन

लौह अयस्क

भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण विभाग के अनुसार भारत में लौह-अयस्क का कुल भण्डार 2300 करोड़ टन है जो विश्व का लगभग 20 प्रतिशत है इसमें से 68.17 प्रतिशत हेमेटाइट है। हेमेटाइट मुख्यतः झारखण्ड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, गोवा तथा कर्नाटक में पाया जाता है। मैग्नेटाइट अयस्क मुख्यतः पश्चिमी तटीय प्रदेश में जाता है। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश में मैग्नेटाइट अयस्क पाया जाता है। इस समय भारत का लगभग 95 प्रतिशत लोहा पांच राज्यों (गोवा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिशा तथा कर्नाटक) में होता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर तथा दुर्ग महत्वपूर्ण लौह उत्पादक जिले हैं। बस्तर की बैलाडिला तथा दुर्ग की डाली व रझरा खानें विख्यात है। इसके अतिरिक्त रायगढ़, बिलासपुर, मण्डला तथा सरगुजा जिलों में भी लौह अयस्क का खनन किया जाता है। गोवा भारत का लगभग 22 प्रतिशत लोहा पैदा करता है। हाल ही में गोवा में लोहे के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

गोवा में लोहे के विशाल भण्डार है, परन्तु यहां पर पाया जाने वाला लोहा लिमोनाइट तथा सिडेराइट किस्म का है, जिसमें शुद्ध लोहे का अंश 40 प्रतिशत से 60 प्रतिशत होता है। उत्तरी गोवा, मध्यवर्ती गोवा तथा दक्षिणी गोवा में लगभग 315 खानों से लौह अयस्क निकाला जाता है। कर्नाटक भारत का लगभग 20 प्रतिशत लोहा पैदा करता है। यहां बेलारी तथा चिकमंगलूर जिले में बाबाबूदन पहाड़ी, कालाखड़ी, केम्मनगुंडी तथा कुद्रेमुख महत्त्वपूर्ण लौह उत्पादक क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त चित्रदुर्ग, शिमोगा, धारवाड़ तथा तुमकुर जिलों में भी लोहा प्राप्त किया जा सकता है। झारखण्ड भारत का 17 प्रतिशत लोहा पैदा करता है। झारखण्ड की लौह उत्पादक पेटी ओड़िशा की लौह उत्पादक पेटी से जुड़ी हुई है। यहां उच्चकोटि का हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट लोहा मिलता है। इस राज्य में सिंहभूम सबसे प्रमुख उत्पादक जिला है। इसके अतिरिक्त धनबाद, हजारीबाग, संथाल तथा रांची जिलों में मैग्नेटाइट लोहा मिलता है। ओडिशा भारत का 14 प्रतिशत लोहा पैदा करता है। यहां भी हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट किस्म का उत्तम लोहा मिलता है। क्योंझर, मयूरभंज, संबलपुर, कटक तथा सुन्दरगढ़ यहां प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

महाराष्ट्र भारत का केवल 2.4 प्रतिशत लोहा पैदा करता है। इस राज्य के प्रमुख उत्पादक जिले चन्द्रपुर तथा रत्नागिरी हैं। इन क्षेत्रों से 60 प्रतिशत से 70 प्रतिशत लोहा वाला हेमेटाइट लौह-अयस्क मिलता है। अन्य उत्पादों में तमिलनाडु में सेलम जिला सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। घटिया किस्म का लोहा कोयम्बटूर, मदुरई तथा रामनाथपुरम जिलों में पाया जाता है। आंध्र प्रदेश में कृष्णा, कर्नूल, गुंटूर, कुडप्पा, अनन्तपुर, खम्माम, वेल्लोर आदि जिलों में लोहे के भण्डार पाए जाते हैं। विशाखापट्टनम के इस्पात कारखाने से इन स्थानों का महत्व बढ़ गया है। राजस्थान में जयपुर, जयपुर, अलवर, सीकर, बूंदी तथा भीलवाड़ा जिलों में हेमेटाइट लोहा मिलता है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में भी लोहे के भण्डार हैं तथा उत्तराखंड के गढ़वाल, अल्मोड़ा तथा नैनीताल जिलों में लगभग एक करोड़ टन लोहे के भण्डार होने का अनुमान है।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और मण्डी जिले में लोहा मिलता है। हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले में लगभग चार किलोमीटर लम्बी पट्टी में मैग्नेटाइट लोहे के लगभग 36 लाख टन भण्डार है। पश्चिमी बंगाल के बर्दवान, बीरभूम तथा दार्जिलिंग जिलों में लोहे के भण्डार हैं। जम्मू-कश्मीर में जम्मू तवी उधमपुर जिलों में लिमोनाइट किस्म का घटिया लोहा पाया जाता है। गुजरात के भावनगर, भावनगर, पोरबन्दर, जूनागढ़, वडोदरा तथा खंडेश्वर क्षेत्रों में घटिया किस्म का लोहा मिलता है। केरल के कोझीकोड जिले में भी लोहा होने के प्रमाण मिले हैं ।

तांबा

झारखंड-(1) सिंहभूम तांबा पट्टी है, पाथरगोरा राखा, रोम- सिद्धेश्वर, राम चंदर पहाड़, तामा पहाड़ एवं तुरमडोहा। (2) हिसातु-बेलबाथन पट्टी में करीब चार दर्जन प्राप्ति स्थल पैले है। उनमें प्रमुख क्षेत्र है बारागंडा, चण्डीयो, मलकडीहा, गंगनपुर, नांगी तूल सितवर, घिराह एवं वाहामारी।

राजस्थान-(1) खेतड़ी तांबा पट्टी (झुंझुनूं जिला) संभावित क्षेत्र है: मंधान कुंधान, कालीहान एवं चांदमारी। (2) पुर-बीकेरा-भिंडर पट्टी: संभावित निक्षेप अलवर जिला के दरोला में। (3) अन्य पाली, सिरोही, सीकर, उदयपुर व चूरू।

मध्य प्रदेश-मलजखंड (बालाघाट जिला)। कर्नाटक-चित्रदुर्ग जिला में इनगलडाहू एवं हारुन जिला में कल्याणी।

आंध्र प्रदेश- मैलारम (खम्माम जिला), गनी (कुर्नूल जिला) एवं बंडवा मुट्टू, नाला कोड़ा एवं टोकोंडा, अग्निगुंडाला पट्टी (गुंटूर जिला)।

सोना

1. मुख्य कोलार (कर्नाटक), हुट्टी (कर्नाटक) 2. संभावित जमाव- रामगिरि (अनन्तपुर जिला), आंध्र प्रदेश, गडग (कर्नाटक), वायनाड (तमिलनाडु), कुन्ट्रकोचा (झारखण्ड)।

लघु प्राप्ति स्थल- गूटी (अनन्तपुर जिला), विसनाथम (चितूर) और गवनीकोड़ा (कर्नूल) आंध्र प्रदेश राज्य में,

बिहार राज्य में पिथौरा (नालंदा), झारखण्ड राज्य में सोना पेट (रांची) एवं पहाड़ डिट्टा, लोवा और मारा (सिंहभूम) गुजरात में अलेक पहाड़ी (जामनगर) और केरल में कोझिकोड एवं कन्नूर जिला। बहुत सी नदियों ने सोने को बहाकर अपनी जलोढ़ और कंकरीली सतह पर बिछा दिया है। यह असम, झारखण्ड

एवं हिमाचल प्रदेश में देखने को मिलता है। 0 बहुत सी नदियों में सुबनसिरी, लोहित, दिहांग, बूढी दिहांग, जांगलू एवं पोनी (असम-अरुणाचल) में, सोन, स्वर्णरेखा तथा दक्षिण कोयल (सिंहभूम, झारखण्ड) सोना पेट, करकटी, नारी तथा जुमार (रांची, झारखण्ड में) तथा देश के विभिन्न भागों में अनेक स्रोतों में स्वर्ण प्राप्त किया जाता है।

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