Sunday, 22 December

डॉ. हरगोविंद खुराना नोबेल पुरस्कार पाने वाले तीसरे भारतीय

डॉ. हरगोबिद खुराना (Dr Hargovind Khurana) विश्वप्रसिद्ध जीवरसायनशास्त्री हैं. इन्होंने डीओक्सीराइबोन्यूक्लियक एसिड (DNA) और राइबोन्यूक्लियक एसिड (RNA) को कृत्रिम संश्लेषण विधि द्वारा बनाने का आविष्कार किया. अपने इस महान् योगदान के लिए इन्हें एम. डब्ल्यू, नोरेनबर्ग और आर. डब्ल्यू. हाली के साथ 1968 का शरीर विज्ञान और औषधि क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया.

डॉ हरगोविंद खुराना की पढ़ाई

हरगोबिंद खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922 को पंजाब (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ. शुरू से ही ये पढ़ाई लिखाई में बहुत प्रखर थे. अपने अध्ययन काल में इन्होंने अनेक छात्रवृत्तियां प्राप्त कीं. डी. ए. वी. कॉलेज, लाहौर से इन्होंने प्रथम श्रेणी में बी. ए. पास किया. इनकी रुचि मुख्य रूप से जीव रसायन विज्ञान में थी. उच्चतर अध्ययन के लिए ये मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, लिवरपुल, इंग्लैंड चले गए. वहां इन्होंने प्रोफेसर ए. रॉबर्ट्सन के अधीन काम किया और 1948 में डॉक्टर ऑफ फिलोसॉफी की उपाधि प्राप्त की.

1948 में डॉ खुराना भारत वापस आ गए. यहां कोशिश करने पर भी वे उचित नौकरी न पा सके. कुछ महीने ये बिना नौकरी के ही रहे और अंत में निराश होकर ये आगे अनुसंधान के लिए वापस इंग्लैंड चले गए. वहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय में इन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता सर अलेक्जेंडर टॉड के साथ काम किया. 1952 में ये कनाडा गए और वहीं इन्होंने एक स्विट्जरलैंड के संसद सदस्य की पुत्री से विवाह कर लिया.

1953 में डॉ. खुराना औरगैनिक केमिस्ट्री ग्रुप ऑफ कामनवेल्थ रिसर्च और्गनाइजेशन के अध्यक्ष चुने गए.

1960 तक ये इस पद पर रहे. 1960 में ये अमेरिका चले गए और नोरनबर्ग के साथ इन्होंने कृत्रिम जीवन के निर्माण के क्षेत्र में काम करना आरंभ किया. विस्कान्सिन विश्वविद्यालय के एंजाइम रिसर्च इंस्टीट्यूट में इन्होंने DNA और RNA को संश्लिष्ट करने की विधि आविष्कृत की. इसी खोज के आधार पर अब बहुत सी पैतृक बीमारियों का इलाज संभव हो सका है.

1970 में ये मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी में जीवविज्ञान के प्रोफेसर नियुक्त हुए.

1968 में प्राप्त नोबेल पुरस्कार के अतिरिक्त इन्होंने और भी कई सम्मानित पुरस्कार प्राप्त किए हैं. जैसे कैमिकल इंस्टीट्यूट ऑफ कनाडा का मर्क (Merch) पुरस्कार (1958), प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कनाडियन पब्लिक सर्विस का स्वर्ण पदक (1960), डेनी हेनेमन पुरस्कार (1967), लास्कर फैडरेशन पुरस्कार (1968), और लूसिया ग्रास होरूटिज पुरस्कार (1968). डॉ. हरगोबिंद खुराना जैविक अनुसंधान पर अब तक

लगभग शोधपत्र छपवा चुके हैं. 1969 में ये भारत आए थे. भारत सरकार ने इन्हें पद्म भूषण की उपाधि से विभूषित किया. पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ ने इनको डॉक्टर आफ साइंस की आनरेरी डिग्री प्रदान की. आज हरगोबिंद खुराना विश्व के माने हुए वैज्ञानिकों में से एक हैं.

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