Friday, 18 October

छत्तीसगढ़ की भौगोलिक स्थिति

मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्व में 17°48′ उत्तरी अक्षांश से 24° उत्तरी अक्षांश तथा 84° 14′ पूर्वी देशांतर से 84° 25′ पूर्वी देशांतर तक विस्तृत है। भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र पूर्णतः पठारी है। यहां की भूमि ऊंची-नीची एवं बीच-बीच में बड़े मैदान है। राज्य में तेज गर्मी व साधारण ठंड रहती है। यहां छोटे छोटे पर्वत है, जिसमें बस्तर के पर्वत, रायपुर में सिहावा पर्वत, अमरकंटक पर्वत श्रेणी आती है यहां अत्यधिक वर्षा होती है, लेकिन आर्द्रता रहती है। सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र अबूझमाड़ है, यहां औसतन 187.5 सेमी. वर्षा होती है। यह बस्तर के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है।

राज्य में महानदी, ग्रावती, शिवनाथ, पैरी, खारून, खसर्दा, ईब, शंख, कन्हर, लालगर, अरपा, न्यारी, हाय, सुरही, अमनेर, सबरो, नारंगी, बौरठिग, गुडरा, निबरा प्रमुख नदियां हैं। 59,285.27 हेक्टेयर भूमि पर बने हैं यहां कृषि योग्य भूमि 44 प्रतिशत है। राज्य की 85 प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित है। यहां की प्रमुख फसल चावल है। यहां गेहूं, तिलहन, ज्वार दालें मक्का, गन्ना, अरहर सहित अन्य फसलें भी उगाई जाती हैं।

छत्तीसगढ़ 1 नवम्बर, 2000 को भारत का 26वां राज्य बना। राज्य का गठन मध्य प्रदेश के एक हिस्से से हुआ। छत्तीसगढ़ यहां के आदिवासी लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग के फलस्वरूप अस्तित्व में आया। इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण एवं महाभारत में मिलता है। इस क्षेत्र पर छठी और बारहवीं शताब्दियों के बीच सरयूपारियों, पांडुवंशी, सोमवंशी, कलचुरी और नामवंशी शासकों ने शासन किया। कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ पर 980 से लेकर 1791 तक राज क्या। छत्तीसगढ़ के पूर्व में दक्षिण झारखण्ड और ओडिशा से, पश्चिम में महाराष्ट्र एवं  मध्य प्रदेश से, उत्तर दिशा में उत्तर प्रदेश और पश्चिमी दिशा में झारखंड से और दक्षिण दिशा में आंध्रप्रदेश  है। छत्तीसगढ़ क्षेत्रफल के अनुसार देश में नौवे स्थान पर है। जनसंख्या के आकलन में इसका 17वां स्थान है।

छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था

छत्तीसगढ़ में इमारती लकड़ी, तेंदू पत्ता, बांस तथा वन उत्पाद पर आधारित कई इकाइयां हैं। राज्य में खनिज उद्योग भी प्रचुर हैं, जिसमें चूना पत्थर, तांबा, कोयला, लौह- अयस्क, खनिज, मैंगनीज, कोरण्डम, प्रेलेमाइट, रॉक फॉस्फेट मुख्य हैं। राज्य में लोहा-इस्पात कारखाना भिलाई में एवं जूट मिल रायगढ़ में हैं। यहां सोने, हीरे, कोयले सहित अन्य खनिजों की खाने हैं। राज्य में मिट्टी के बर्तन, लाख का सामान, खिलौने, लकड़ी-जरी का काम, चमड़े का काम, धातु के बर्तन बनाए जाते हैं।

राज्य के लिए परिवहन

छत्तीसगढ़ अंचल में 119 रेलवे स्टेशन एवं 1,159 किमी. लंबी रेलवे लाइन है। इसमें ब्रॉडगेज 1,070 और नैरोगेज 89 किलोमीटर है। यहां के मुख्य रेलवे स्टेशन रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, रायगढ़ हैं। यहां भिलाई, बिलासपुर, रायपुर, अंबिकापुर, जशपुर, नगर, कोरबा, सारंगढ़ आदि स्थानों पर हवाई अड्डे है। राज्य में सड़कों की कुल लम्बाई करीब 35,372 किमी. है। इसमें राष्ट्रीय राजमार्ग 2,184 किलोमीटर है।

उत्सव – मेले

राज्य में जनजातियों द्वारा दंतेश्वरी, मेघनाद, रसनवा, कासार का पर्व मनाया जाता है। राजिम का मेला, चम्पारण्य का मेला, रतनपुर का मेला, खलारी का मेला, दंतेश्वरी मेला आयोजित होता है। यहां होली, दिवाली, गोवर्धनपूजा, पोला, नोवाखाई सहित अन्य त्योहार मनाए जाते हैं। यहां सुआ, करमा, डंडा या रहस, राउत, सरहुल, नाचा, घासियाबाज प्रमुख नृत्य हैं।

छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थल

यहां वनों की अधिकता के कारण काफी संख्या में वन्यजीव पाए जाते हैं। राज्य में जगदलपुर में चित्रकोट जलप्रपात, सरगुजा में जोगीमारा की गुफाएं, रायपुर में भोरमदेव, विमलेश्वर मंदिर, डोंगरगढ़ सहित कई पर्यटन स्थल है यहां इन्द्रावती, कांगेर, कुटरू एवं संजय राष्ट्रीय उद्यान में बाघ मिलते हैं।

जगदलपुर-जगदलपुर पहाड़ियों से घिरा हरा-भरा सुंदर स्थान है। यहां पुराना बस्तर महल है, जिसके एक भाग में अभी भी शाही राजघराने के लोग रहते हैं, दूसरी ओर मेडिकल कॉलेज अवस्थित है। यहां कई अद्भुत जलप्रपात हैं। इंद्रावती नदी के पास गंगा मुंडा और दलपत सागर झील स्थित है जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। दलपत सागर झील छत्तीसगढ़ राज्य की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। इसे 400 साल पहले राजा दलपत देव काकतीय ने बनाया था। वर्तमान में यह मछलियों का सबसे बड़ा स्रोत है। यहां दशहरे व दीपावली के दौरान आदिवासियों का मेला भरता है, जिसमें आदिवासी हस्तकला आदि का प्रदर्शन किया जाता है। इनके अलावा अन्य पर्यटन स्थलों में चित्रकूट प्रपात, तीरथगढ़ प्रपात, कांगेर नदी, केशकाल घाटी, कांगेर वाट राष्ट्रीय उद्यान, कैलाश गुफाएं, कुटुम्ब गुफाएं, अचानकमार अभयारण्य आदि दर्शनीय हैं।

रायपुर-यह छत्तीसगढ़ की राजधानी भी है। इसे कलचुरि वंश के राजा रामचंद्र ने बसाया था। कई वर्षों तक यह हैहय वंश के राजाओं की राजधानी भी रहा। यह तेजी से विकसित होता हुआ शहर है। यहां कई महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र हैं।

चंपारन– यह गांव धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। वल्लभ संप्रदाय के संस्थापक संत वल्लभाचार्य की यह जन्मस्थली है। यहां इनका मंदिर बनाया गया है। पास ही स्थित चपकेश्वर मंदिर भी दर्शनीय है। यहां प्रतिवर्ष माघ माह में एक मेला लगता है। इससे यहां काफी रौनक रहती है।

तुरतुरिया– घने जंगलों से घिरा यह स्थान तुरतुरिया नदी के किनारे स्थित है। यहां बौद्धों के अवशेष विद्यमान हैं। उनके बनाए हुए विशाल खम्बे, ईंटों के बने स्तूपों के अवशेष, स्नानागार आदि मुख्य हैं। इसके अलावा यहां चार भुजा वाले भगवान विष्णु और गणेश की प्रतिमा भी मिली हैं।

लक्ष्मण मंदिर व गंगेश्वर मंदिर, सिरपुर– इसे प्राचीन समय में श्रीपुर कहते थे। यह स्थान महानदी के किनारे स्थित है। लक्ष्मण मंदिर को भारत का प्राचीन मंदिर माना जाता है, जो विशुद्ध ईंटों से बनाया हुआ है। इसके अलावा शेषनाग की छत्रछाया में भगवान शिव की प्रतिमा, विष्णुजी की मूर्ति, श्रृंगारित कृष्ण अपनी लीला करते हुए आदि की प्रतिमाएं भी हैं। आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इण्डिया ने यहां एक म्यूजियम का निर्माण किया है।

रतनपुर-हिन्दू धर्म के अनुसार यह चार युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में प्रसिद्ध शहर रहा। यहां पुराने किले के अवशेष हैं, जहां गणेश जी की आकर्षक मूर्ति है। तांडव नृत्य करते हुए शिव और ब्रह्मा व विष्णुजी की मूर्तियां भी किले के प्रवेश द्वार पर हैं। यहां मंदिर के पास आकर्षक तालाब है।

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